बिंदु और कनकदुर्गा आख़िर सबरीमला मंदिर के भीतर कैसे पहुँच गईं? क्या आपको पता है कि यह एक ज़बर्दस्त मनोवैज्ञानिक प्रयोग था, जिसे एक मनोविज्ञानी ने एक ख़ास तकनीक के साथ पूरी तैयारी के साथ किया था और वह इसमें पूरी तरह सफ़ल रहे?
बिंदु और कनक ने मंदिर के भीतर जाने के लिए न कोई भेष बदला, न वे चोरी-छुपे वहाँ गई थीं, और न ही किसी ख़ुफ़िया दरवाज़े से अंदर घुसी थीं। आपको जान कर बड़ी हैरानी होगी कि ये दोनों महिलाएँ पूरे रास्ते भारी भीड़ के साथ चलते हुए मंदिर तक गईं थी, लेकिन उन पर किसी की नज़र नहीं पड़ी! वह वीआईपी गेट से मंदिर के भीतर गईं। ज़ाहिर है कि गेट वीआईपी होगा, तो वहाँ सुरक्षा भी कड़ी होगी, लेकिन किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं!
- यही नहीं, बिंदु और कनक दोनों ने प्रौढ़ महिलाओं की तरह साड़ियाँ भी नहीं पहनी थीं, बल्कि वे चूड़ीदार पहने थीं। युवा दिख रही थीं। फिर भी सबरीमला में दर्शन के लिए आई भीड़ का ध्यान उनकी तरफ़ नहीं गया! कैसे हुआ यह करिश्मा? ये महिलाएँ वहाँ आम लोगों की तरह तस्वीरें खींचते, विडियो बनाते हुए भीड़ के साथ चलती रहीं। फिर भी किसी ने उन्हें वहाँ जाने से क्यों नहीं रोका?
यह कोई जादू नहीं था। कोई सम्मोहन की ट्रिक भी नहीं थी। बल्कि यह मनोविज्ञान के एक सिद्धाँत का चमत्कार था। मनोविज्ञान व्यक्तियों के व्यवहार और किसी स्थिति में उनकी प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। इस अध्ययन के लिए उसमें तरह-तरह की तकनीकें और प्रयोग किए जाते हैं। ऐसा ही एक प्रयोग है 'अदृश्य गुरिल्ला' का। कनक और बिंदु को सबरीमला के भीतर पहुँचाने के लिए त्रिशूर के मनोविज्ञानी डॉ. प्रसाद अमोरे ने इसी 'अदृश्य गुरिल्ला' तकनीक का प्रयोग किया।
इस बारे में वेबसाइट 'द न्यूज़ मिनट' ने डॉ. अमोरे से विस्तार से बातचीत कर एक रिपोर्ट छापी है। डॉ. अमोरे का कहना है कि मनोविज्ञान का एक सामान्य-सा सिद्धाँत है कि अगर लोगों का ध्यान किसी एक ख़ास चीज़ या बात की तरफ़ फ़ोकस कर दिया जाए, तो वे आसपास घट रही बहुत-सी बातों पर ध्यान नहीं दे पाते। 'अदृश्य गुरिल्ला' यही प्रयोग है, जिसमें कुछ लोगों के समूह को एक विडियो दिखाया जाता है और उनसे किसी ख़ास बात पर ध्यान देने को कहा जाता है। लोग उस बात पर ध्यान देते हुए नज़र गड़ाए हुए विडियो को देखते हैं। विडियो में बहुत-सी दूसरे दृश्यों के साथ एक गुरिल्ला भी पल भर के लिए दिखता है। लेकिन जब विडियो ख़त्म होता है और लोगों से पूछा जाता है तो पता चलता है कि वह विडियो में कोई गुरिल्ला नहीं देख पाए। इतने भारी भरकम शरीर वाले गुरिल्ला पर लोगों की नज़र इसीलिए नहीं पड़ पाती क्योंकि वह विडियो में किसी और चीज़ को बारीकी से तलाश रहे थे।
प्रसाद अमोरे ने इसी तकनीक का इस्तेमाल किया। सबरीमला में इसके पहले जिन महिलाओं ने घुसने की कोशिश की थी, उन सबने पहले से इसकी घोषणा की थी। फिर वह पुलिस के घेरे में मंदिर की तरफ़ बढ़ती थीं। इसलिए लोगों के मन में ये दोनों बातें और छवियाँ बैठ चुकी थीं। यानी उन्हें पहले से पता हो जाएगा कि महिलाएँ मंदिर में आने की कोशिश करेंगी और वह जब आएँगी, तो पुलिस उनकी सुरक्षा में होगी।
- 'अदृश्य गुरिल्ला' प्रयोग से संकेत लेते हुए अमोरे ने निष्कर्ष निकाला कि अगर महिलाएँ बिना किसी शोर-शराबे के, बिना किसी घोषणा के और पुलिस की मौजूदगी के बिना अकेले भीड़ का सामान्य हिस्सा बन कर जाएँगी, तो उन पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा क्योंकि लोगों के अवचेतन मन पर यही छवि बनी हुई है कि ऐसी कोई महिला पुलिस घेरे में ही आएगी।
दरअसल, कोई यह सोच ही नहीं सकता था कि जब महिलाओं के मंदिर प्रवेश को लेकर माहौल इतना आंदोलित हो, तब कोई महिला अकेले बिना किसी सुरक्षा के मंदिर में आने का साहस करेगी। इन महिलाओं ने इसी का फ़ायदा उठाया।
यानी लोगों के सामने से गुजरीं ज़रूर, लेकिन लोगों के लिए ‘अदृश्य’-सी रहीं।
बिंदु और कनकदुर्गा जितनी आसानी से घुसीं तैयारी उतनी आसान नहीं रही। उन्हें काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी।
दोनों महिलाएँ सबसे पहले अपनी जैसी सोच वाले लोगों से जुड़ीं। इनमें सबसे ख़ास रहे डॉ. प्रसाद अमोरे। तीनों फ़ेसबुक पेज Navodhana Keralam Sabarimalaiyilek पर जुड़े। इस फ़ेसबुक पेज को एक इंजीनियर और सामाजिक कार्यकर्ता श्रेयास कनारन ने शुरू किया था। वे मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पक्षधर रहे हैं।
बिंदु और कनकदुर्गा ने दिसंबर में प्रयास किया था, लेकिन तब वे असफल रहे थे। इसके बाद उन्होंने विरोध करने वालों से मनोवैज्ञानिक तरीसे से निपटने की तैयारी शुरू कर दी। ‘द न्यूज़ मिनट’ से बातचीत मे डॉ. अमोरे ने कहा कि सरकार कोई सख्त कार्रवाई कर नहीं सकती थी, इसलिए मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाना ज़रूरी था। इसीलिए ‘अदृश्य गुरिल्ला’ वाला तरीका अपनाया गया।
ऐसे चली पूरी तैयारी
अदृश्य गुरिल्ला तकनीक के तहत मंदिर में चोरी-छुपे नहीं, बल्कि वीआईपी गेट से घुसना तय किया गया था। चार पुलिस कर्मियों को भी सादे कपड़े में रखने का फ़ैसला लिया गया। मंदिर में स्थिति असामान्य होने पर भी व्यवहार सामान्य रखने की ट्रेनिंग दी गई। मंदिर में घुसने से पहले पूरी प्रक्रिया का कई बार रिहर्सल किया गया। तैयारी पूरी होने पर ही वे मंदिर में घुसने के लिए गईं।
एंबुलेंस से नहीं गई थीं दोनों
डॉ. अमोरे ने उन ख़बरों को नकार दिया कि दोनों को एंबुलेंस से ले जाया गया था। उन्होंने इससे भी इनकार किया कि वे पिछले दरवाजे से गुप्त तरीके से गई थीं। उन्होंने कहा कि दोनों खुलेआम गई थीं, इसके विडियो हैं उनके पास। उन्होंने आगे कहा कि दोनों चाय की स्टॉल पर भी गई थीं और महिला टायलेट का भी इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा कि पूरी चीज़ें इसलिए संभव हो सकीं क्योंकि दोनों भीड़ में गई थीं।
सपोर्ट नेटवर्क: चार किरदार हैं
- दो महिलाएँ, बिंदु और कनकदुर्गा, जो मंदिर में घुसीं।
- मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रसाद अमोरे जिन्होंने यह तरीका बताया।
- चार पुलिस कर्मी जो मंदिर में महिलाओं के आसपास रहे।
- जॉनसन नाम का एक व्यक्ति जिसने उन्हें मंदिर तक पहुँचाया।
क्या सरकार को जानकारी थी?
इस सवाल के जवाब में डॉ. अमोरे कहते हैं कि सरकार को जानकारी थी। लेकिन वह कहते हैं कि स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी नहीं दी गई थी। उनका कहना है कि पहले महिलाओं के घुसाने के एक प्रयास की जानकारी पुलिस से लीक हो गई थी। इस कारण इस बार चार पुलिस कर्मियों को दूसरे ज़िले से चुनकर लाया गया था। इसके अलावा किसी को भी महिलाओं के मंदिर में घुसने की इस योजना के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी।
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