कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
जीत
कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
जीत
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
जीत
केरल में विधानसभा चुनाव होने तक वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस के बीच किसी भी स्तर पर ‘दोस्ती’ नहीं रहेगी और दोनों एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी की तरह बर्ताव करेंगे। अगले साल मई माह में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी वामपंथी मोर्चा को मुख्य चुनौती कांग्रेस से ही मिलने वाली है।
केरल के सभी वामपंथी नेता मानते हैं कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर या फिर किसी अन्य स्तर पर कांग्रेस से राजनीतिक दोस्ती निभाई गई तो इसका सीधा नुक़सान वाम मोर्चा सरकार को होगा। उधर, राज्य के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने आलाकमान से साफ कह दिया है कि केरल में विधानसभा चुनाव होने तक राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी नेताओं के साथ किसी तरह की बैठक न की जाये और वामपंथियों के समर्थन में किसी तरह का कोई बयान न दिया जाये।
सूत्रों ने बताया कि केरल के कांग्रेसी नेताओं के दबाव की वजह से ही पिछले दिनों विपक्षी मुख्यमंत्रियों की बैठक में केरल के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता पिनराई विजयन को नहीं बुलाया गया। इस बैठक की अध्यक्षता स्वयं सोनिया गांधी ने की थी। बैठक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने हिस्सा लिया था।
उधर, वामपंथी पार्टियों के करीबी सूत्रों का कहना है कि विजयन ने इस बैठक की अध्यक्षता सोनिया गांधी द्वारा किए जाने पर आपत्ति जताई थी। वामपंथियों ने किसी मुख्यमंत्री को इस बैठक की अध्यक्षता करने का सुझाव दिया था। इस सुझाव को कांग्रेस आलाकमान ने नहीं माना और इसी वजह से इस बैठक में विजयन ने हिस्सा नहीं लिया।
बहरहाल, इतना तय है कि केरल में विधानसभा चुनाव होने तक वामपंथी पार्टियां कांग्रेस से दूरी बनाए रखेंगी और मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर भी हमले करेंगी ताकि केरल में सत्ता बनी रहे। वहीं, अब तक बीजेपी का विरोध करने के लिए हमेशा वामपंथी पार्टियों का साथ लेती रही कांग्रेस भी केरल में वामपंथी सरकार पर ज़बरदस्त हमले बोलेगी ताकि वह केरल में दुबारा सत्ता में लौट सके।
इतिहास बताता है कि केरल में मार्क्सवादियों के नेतृत्व वाले वामपंथी मोर्चा यानी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच सत्ता की लड़ाई रही है।
कांग्रेस को उम्मीद है कि इतिहास अपने आप को दोहराएगा और इस बार उसके नेतृत्व वाले यूडीएफ की जीत होगी। लेकिन कांग्रेस के नेताओं का एक बात का डर सता रहा है कि कहीं बीजेपी उसका खेल न बिगाड़ दे।
केरल में अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं बीजेपी कभी बड़ी खिलाड़ी नहीं रही। मुक़ाबला हमेशा सीधा और एलडीएफ और यूडीएफ के बीच ही रहा। लेकिन पिछले कुछ सालों में केरल में बीजेपी की ताक़त काफी बढ़ी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उससे अनुबद्ध संस्थाएं भी केरल में काफी सक्रिय हुई हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी 1 सीट जीतने में कामयाब रही थी। राजगोपाल के रूप में बीजेपी को केरल में अपना पहला विधायक मिला था। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी भले ही केरल से एक भी सीट नहीं जीत पायी हो, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में भारी बढ़ोतरी हुई थी। बीजेपी को 13 फीसदी वोट मिले थे। कई कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि बीजेपी सत्ता विरोधी वोट काटेगी जिससे सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा और फायदा वामपंथी पार्टियों को।
बड़ी बात यह है कि कई कांग्रेसी नेता इन दिनों पार्टी आलाकमान से नाराज़ चल रहे हैं। गांधी परिवार और कांग्रेस मुख्यालय में के. सी. वेणुगोपाल के लगातार बढ़ते प्रभाव से कई नेता नाखुश हैं।
इन नेताओं की शिकायत है कि आलाकमान वरिष्ठ और वफादार नेताओं को दरकिनार कर वेणुगोपाल पर ज़रूरत से ज़्यादा विश्वास कर रहा है। कई नेताओं को यह भी लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की शीर्ष वामपंथी नेताओं से दोस्ती का खामियाजा भी केरल में कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है। इन नेताओं का कहना है कि कई मतदाता अब यह मानने लगे हैं कि कांग्रेस और वामपंथी अलग नहीं हैं। ऐसी स्थिति में कई मतदाता विकल्प के रूप में बीजेपी की ओर देखने लगे हैं।
उधर, पश्चिम बंगाल में नए कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी को हराने के लिए वामपंथियों के साथ समझौता करने की बात कहकर कांग्रेस और वाम मोर्चा के नेताओं को तकलीफदेह स्थिति में डाल दिया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस अगर वामपंथियों से हाथ मिला लेती है तो इसका प्रतिकूल असर केरल में कांग्रेस की सत्ता वापसी की संभावनाओं पर पड़ेगा।
इस स्थिति में केरल में वामपंथी वोट स्थिर रहेगा जबकि कांग्रेसी और सत्ता विरोधी वोट के बीजेपी के पास जाने की संभावना बनेगी। इससे कांग्रेस को नुकसान होगा और वामपंथियों को फायदा। इसी वजह से केरल के कांग्रेसी नेता वामपंथियों से किसी तरह का कोई समझौता न करने और वामपंथियों के साथ राजनीतिक बैरी की तरह व्यवहार करने के लिए पार्टी आलाकमान पर लगातार दबाव बना रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि अगर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथियों के बीच चुनावी करार हो जाता है और केरल में दोनों विरोधी की तरह व्यवहार करते हैं तब केरल के कई कांग्रेसी नेता बीजेपी में चले जाएंगे। बीजेपी भी अपना जनाधार बढ़ाने और बड़े नेताओं को अपनी ओर खींचने में जुट गई है। बीजेपी ने एक नई रणनीति के तहत हिन्दू और ईसाई लोगों/नेताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश शुरू की है।
बीजेपी के रणनीतिकार मानते हैं कि लाख कोशिश के बावजूद भी केरल में मुसलमान उसके खेमे में आने वाले नहीं हैं। इसी वजह से बीजेपी हिन्दू और ईसाई वोटबैंक को अपना बनाने की कोशिश में जुट गई है। बीजेपी की नज़र कांग्रेस के वोटबैंक की तरफ है क्योंकि वामपंथी वोट बैंक स्थिर तो है ही वह बीजेपी विरोधी भी है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें