केरल में राजनीति सांप्रदायिक रंग लेती नज़र आ रही है। विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है, इस वजह से राजनीतिक दलों के बीच दाँव-पेच तेज़ हो गए हैं और उन्होंने अपने विरोधियों पर तीख़े हमले शुरू कर दिये हैं। लेकिन पहली बार केरल की राजनीति में सांप्रदायिक मुद्दे हावी होते नज़र आ रहे हैं।
सोने की तस्करी के मामले में बुरी तरह से उलझी वाम मोर्चा सरकार अब संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई से राजनयिक रास्ते से पवित्र कुरान और खजूर मँगवाने को लेकर विपक्षी पार्टियों के निशाने पर है।
बिना ज़रूरी दस्तावेज़ों के राजनयिक रास्ते से आई पवित्र कुरान की कई सारी प्रतियों और अठारह हज़ार किलो खजूर की खेप स्वीकार करने के लिए सीमा शुल्क विभाग ने केरल सरकार के ख़िलाफ़ दो मामले दर्ज़ कर जांच शुरू की है। आरोप है कि वामपंथी नेताओं ने निजी इस्तेमाल के लिए अरब से सामान मँगवाए, जोकि विदेशी मुद्रा नियमन अधिनियम (एफसीआरए) का उल्लंघन है।
मामले का पता चलते ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी हरकत में आये और मामले की जांच शुरू की। इस मामले में निशाने पर रहे केरल के उच्च शिक्षा मंत्री के. टी. जलील ने स्वीकार किया था कि रमज़ान महीने में अरब से कुरान की जो प्रतियाँ आयीं थीं, वे उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को दी थीं।
कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन
इसके बाद जांच एजेंसियों ने जलील से पूछताछ की। मामले की जांच अब भी जारी है। लेकिन इस मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टियों- कांग्रेस और बीजेपी, ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, जलील और वाम मोर्चा सरकार पर तीखे हमले शुरू कर दिये। कांग्रेस ने जलील के इस्तीफे की मांग की और अपनी मांग के समर्थन में राज्यभर में कई जगह प्रदर्शन किए। सचिवालय के सामने भी कांग्रेसियों ने जमकर नारेबाजी की।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार में मंत्री जलील के जरिये खुद मुख्यमंत्री विजयन ने अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति की है। विदेश से गैर कानूनी तरीके से कुरान की प्रतियाँ मंगवाकर उन्हें लोगों में बांटकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की है।
अब कांग्रेस भी सांप्रदायिक?
इन आरोपों के जवाब में वामपंथी नेताओं ने आरोप लगाया कि अब कांग्रेस भी बीजेपी की भाषा बोल रही है और सांप्रदायिकता की राजनीति करने लगी है। उधर, बीजेपी ने भी मौके का पूरा फायदा उठाने की कोशिश में विजयन सरकार के ख़िलाफ़ राज्यभर में आंदोलन तेज़ कर दिया है।
'कुरान विरोधी' प्रदर्शन?
बीजेपी नेताओं का आरोप है कि वाम मोर्चा की सरकार मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए तुष्टीकरण की राजनीति में मग्न है। कांग्रेस और बीजेपी के लगातार बढ़ते हमलों के जवाब में वामपंथी पार्टियों ने भी अपना रुख और सख्त कर लिया और विजयन सरकार के विरोध में किए जा रहे प्रदर्शनों को 'कुरान विरोधी' करार दिया।
मार्क्सवादी पार्टी के प्रदेश सचिव कोडिएरी बालाकृष्णन ने राज्य के मंत्री जलील का जमकर बचाव किया और एक बयान में कहा कि कुरान की प्रतियाँ लोगों को देना अपराध नहीं है और एक साज़िश के तहत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी वामपंथियों के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। इस साज़िश में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी मुसलिम लीग भी शामिल हो गई हैं।
अय्यप्पा स्वामी मंदिर प्रकरण
गौर करने वाली बात है कि इससे पहले सबरीमला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मुद्दे को लेकर भी केरल की राजनीति पर सांप्रदायिक रंग चढ़ गया था। वामपंथियों ने महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का पुरजोर समर्थन किया था। जबकि बीजेपी और कांग्रेस ने पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए मंदिर में महिलाओं को प्रवेश न देने की मांग को लेकर राज्यभर में आंदोलन किया था। अब राजनीति कुरान की प्रतियों को मतदाताओं को देने को लेकर शुरू हुई है।
गौर करने वाली बात यह भी है कि कुरान की प्रतियों और खजूर के अलावा भारी मात्रा में सोना भी राजनयिक रास्ते से केरल पहुंचा। यह सोना भी निजी इस्तेमाल के लिए मंगवाया गया था।
चूंकि राजनयिक रास्ते से मँगवाए गए सोने की कीमत करोड़ों में थी, इसलिए सीमा शुल्क विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मामला दर्ज़ कर जांच शुरू की। जांच एजेंसियों ने मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश और उसके साथियों संदीप नायर और सरिथ पीएस को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी से पहले मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश केरल सरकार की एक संस्था में काम करती थीं और उनके मुख्यमंत्री कार्यालय के कुछ बड़े अधिकारियों से अच्छे सम्बन्ध थे।
मुख्यमंत्री विजयन के प्रधान सचिव शिव शंकर के स्वप्ना सुरेश से सीधे संबंध होने की बात जब जगजाहिर हुई तो विजयन ने उन्हें अपने कार्यालय से हटा दिया। विपक्ष का आरोप है कि स्वप्ना सुरेश मंत्री जलील के भी लगातार संपर्क में रही हैं। इसी वजह से मंत्री जलील को इस्तीफा देना चाहिए।
सांप्रदायिक राजनीति?
बहरहाल, इतना साफ है कि केरल की राजनीति में सांप्रदायिक मुद्दे हावी होने लगे हैं। धर्म के नाम पर राजनीति शुरू हो चुकी है। मई, 2021 में केरल में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव सिर्फ नौ महीने दूर हैं और इसी वजह से राज्य में सारा माहौल चुनावी हो गया है। अब तक विकास, सिद्धांतों और जन-समस्याओं को लेकर केरल में विधानसभा चुनाव होते रहे हैं, लेकिन हालिया घटनाओं और राजनीतिक आंदोलनों से स्पष्ट हो गया है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में ‘सांप्रदायिकता’ भी मुद्दा रहेगी।
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