आने वाले कुछ महीनों में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें केरल भी शामिल है। हिंदू मतदाताओं को अपना आधार मानने वाली बीजेपी को केरल में हिंदू के साथ ही ईसाई मतदाताओं का भी साथ चाहिए। इसके पीछे वजह राज्य में ईसाई समुदाय की बड़ी आबादी का होना है। बीजेपी राज्य में ऐसी सोशल इंजीनियरिंग बना रही है, जिसमें हिंदू व ईसाई- दोनों समुदायों के मतदाताओं के वोट उसे मिलें।
केरल में अल्पसंख्यकों की आबादी लगभग 46 फ़ीसदी है। इसमें 27 फ़ीसदी मुसलमान और 19 फ़ीसदी ईसाई हैं। बीजेपी जानती है कि केरल में अगर उसे अगर सत्ता तक पहुंचना है तो सिर्फ़ हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण से काम नहीं चलेगा। क्योंकि हिंदू मतों का बड़ा हिस्सा लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ़) के बीच बंट जाता है। ऐसे में बीजेपी को ईसाई समुदाय से सियासी मदद मिलने की आस है।
दक्षिण में विस्तार का मिशन
उत्तर भारत के बाद बीजेपी दक्षिण में सियासी विस्तार की दिशा में तेज़ी से क़दम बढ़ा रही है। उसकी कोशिश देश के उन हिस्सों में अपनी पहुंच बढ़ाने की है, जहां अब तक उसे अछूत समझा जाता था। पिछले छह साल में उसने वाममोर्चा के गढ़ त्रिपुरा से लेकर हरियाणा में 4 से 48 सीटों तक पहुंचने में सफलता हासिल की है। इसी तरह वह दक्षिण में तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में जबरदस्त जनसंपर्क में जुटी हुई है।
तेलंगाना-तमिलनाडु पर नज़र
दक्षिण में विस्तार के लिए बीजेपी कितनी लालायित है, इसका पता इससे चलता है कि कुछ दिन पहले हुए हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में उसने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक को चुनाव मैदान में उतार दिया था। इसके अलावा भूपेंद्र यादव से लेकर तमाम बड़े नेताओं को प्रचार में झोंका था और उसके नेताओं ने थोक में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाले बयान दिए थे। ये हाल तब था जब वहां विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक़्त है। इसके अलावा तमिलनाडु में बीजेपी सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रही है।
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हिंदु मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश
बीजेपी केरल में अपनी सरकार चाहती है। सबरीमला मंदिर के मुद्दे पर उसने हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करने की बात कही थी और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर भी विरोध दर्ज कराया था। तब उसने साफ मैसेज दिया था कि वह अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के पक्ष में खड़ी रहेगी। 20 लोकसभा सीटों वाले केरल में बीजेपी का तिरुवनंतपुरम, कासरगोड और पल्लाकाड सीटों पर अच्छा असर है। केरल में आरएसएस की भी मजबूत उपस्थिति है, ऐसे में इस राज्य में सरकार बनाने का सपना बीजेपी लंबे वक़्त से देख रही है।
केरल में इस बात की चर्चा है कि ईसाई समुदाय के नेता इस बात से नाराज हैं कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ़ में इंडियन यूनियन मुसलिम लीग के मुसलिम नेताओं का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इस पर बीजेपी की नज़र है और वह ईसाई समुदाय के नेताओं को लुभाने के मिशन में जुट गई है।
मोदी से मिलेंगे ईसाई धार्मिक नेता
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, केरल में चर्च से जुड़े धार्मिक नेता जल्द ही अपने कुछ मसलों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल सकते हैं। इसमें दो अहम मसले हैं। पहला यह कि अल्पसंख्यकों को मिलने वाली स्कॉलरशिप का 80 फ़ीसदी फ़ायदा मुसलिम छात्रों को मिलता है। ईसाई समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्हें स्कॉलरशिप का 40 फ़ीसदी हिस्सा मिलना चाहिए, जबकि उन्हें सिर्फ़ 20 फ़ीसदी मिलता है। और दूसरा ईसाई लड़कियों को मुसलिम लड़कों द्वारा लव जिहाद के जाल में फंसाना।
इसी साल जनवरी महीने में केरल के सबसे बड़े साइरो-मालाबार कैथोलिक चर्च ने कहा था कि ‘लव जिहाद’ केरल की सच्चाई है और ईसाई लड़कियों को फंसा कर, यौन उत्पीड़न के बाद ब्लैकमेल कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है और उन्हें इसलामिक स्टेट में शामिल होने को मजबूर किया जाता है।
चर्च से जुड़े धार्मिक नेता इन मुद्दों पर बीजेपी का समर्थन करने के लिए तैयार दिखते हैं। इसका संकेत बीते शुक्रवार को उस वक़्त मिला, जब राजभवन में हुए एक कार्यक्रम में गवर्नर आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने साइरो-मालाबार कैथोलिक चर्च के मुख्य आर्क बिशप को ‘जस्टिस फॉर ऑल, प्रीजूडिस टू नन’ लिखी बुक की एक कॉपी दी। यह बुक मिज़ोरम के गवर्नर और केरल बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष एस. श्रीधरन पिल्लई ने लिखी है।
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पिल्लई को नवंबर में चर्च के धार्मिक नेताओं ने डिनर पर बुलाया था और उनसे अपने समुदाय से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा की थी। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, पिल्लई इस पर सहमत हुए थे कि वे ईसाई समुदाय के मुद्दों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने रखेंगे। इसके अलावा ईसाई समुदाय की ओर से प्रधानमंत्री को अपने मुद्दों को लेकर एक ज्ञापन दिए जाने की बात भी कही गई है।
एलडीएफ़ भी चाहती है ईसाई वोट
हाल ही में एलडीएफ़ की सरकार ने सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला किया था। इसे राज्य के ईसाई समुदाय को लुभाने वाले फ़ैसले के रूप में देखा गया। चर्च से जुड़े धार्मिक नेताओं ने इसका खुलकर स्वागत किया। केरल कांग्रेस (मनी) के एलडीएफ़ में आने से ही इस फ्रंट को ईसाई समुदाय का समर्थन मिलेगा क्योंकि कांग्रेस (मनी) का ईसाई समुदाय में अच्छा प्रभाव है।
केरल में बीजेपी की रणनीति साफ है। हिंदू वोटों के साथ ही वह ईसाई समुदाय का वोट भी पाना चाहती है। इसका पता इससे चलता है कि स्थानीय निकाय के चुनाव में बीजेपी ने ईसाई समुदाय के 500 लोगों को टिकट दिया।
केरल को राष्ट्रीय स्तर पर जगह
बीजेपी आलाकमान ने केरल को अहमियत देते हुए राज्य के नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर जगह दी है। हाल ही में घोषित हुई बीजेपी की कार्यकारिणी में कांग्रेस से बीजेपी में आए और कभी सोनिया गांधी के क़रीबी रहे टॉम वडक्कन और कांग्रेस से ही आए एपी अब्दुल्लाकुट्टी को पार्टी ने क्रमश: प्रवक्ता और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। ऐसा करके पार्टी ने मैसेज दिया है कि केरल में ईसाई के साथ ही मुसलिम समुदाय के नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर जगह देने के पीछे सीधा मक़सद राज्य में अपना विस्तार करना है।
कई मुद्दों पर घिरी वाम मोर्चा सरकार
सोने और ड्रग्स की तस्करी के मामलों से घिरी केरल की वाममोर्चा सरकार चुनाव से ठीक पहले मुश्किलों में फंस गई है। इन दोनों मामलों की आंच मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंची है और सीपीएम के वरिष्ठ नेता बालकृष्णन कोडियेरि को पार्टी से इस्तीफ़ा देना पड़ा है। इसके अलावा कुरान की तस्करी के मामले में भी वाम मोर्चा सरकार की खूब फजीहत हुई थी। इन मामलों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही वाम मोर्चा सरकार पर हमलावर हैं।
बड़ी जीत का दावा
केरल बीजेपी के अध्यक्ष के.सुरेंद्रन ने कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए आश्चर्यजनक होंगे। उन्होंने दावा किया कि यह पहला मौक़ा होगा जब बीजेपी तिरूवनंतपुरम नगर निगम में 61 सीटें जीतेगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा कोच्चि, कोल्लम, कोझिकोड और कन्नूर में भी बीजेपी को बड़ी सफलता मिलेगी।
2014 के लोकसभा चुनाव में केरल में बीजेपी का वोट शेयर 10.33 फ़ीसदी था जो 2016 के विधानसभा चुनाव में 15.10 फ़ीसदी हो गया हालांकि उसे 1 ही सीट मिली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे 15.6 फ़ीसदी वोट मिले।
विधानसभा चुनाव में एलडीएफ़ और यूडीएफ़ की कड़ी टक्कर के बीच बीजेपी किंगमेकर बनकर उभर सकती है।
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