कहाँ तो पिछले साल महामारी की मंदी से निकल कर इस साल अर्थव्यवस्था में आने वाले उछाल की बातें हो रही थीं। कहाँ लड़ाई, रुकती सप्लाई और महँगाई के कारण दुनिया भर में मंदी का माहौल पैदा हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रीय ख़ुफ़िया विभाग के निदेशक एवरिल हेन्स का कहना है कि राष्ट्रपति पुतिन का मंसूबा यूक्रेन में लंबी लड़ाई लड़ने का है। पुतिन के विजय-दिवस भाषण पर मॉस्को के अख़बारों में छपी टिप्पणियों से भी यही संकेत मिल रहा है। इधर यूरोप के देश भी रूस के ख़िलाफ़ लामबंद होते जा रहे हैं। अभी तक सामरिक गुटबाज़ी से परहेज़ करने वाले स्वीडन और फ़िनलैंड जैसे देश नाटो में शामिल होने के आवेदन कर चुके हैं।
महँगाई से जूझती दुनिया में मंदी की दस्तक; भारत कैसे निपटे?
- अर्थतंत्र
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- 22 May, 2022

रुपए के दाम गिरने से भारत के निर्यातकों को ज़रूर फ़ायदा होगा और उनका व्यापार और मुनाफ़ा बढ़ सकता है। लेकिन आयातों के महँगा होने से नुक़सान भी होगा। भारत निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है। इसलिए रुपया गिरने से लाभ की तुलना में नुक़सान ज़्यादा होता है।
यूरोपीय संघ ने फ़ैसला किया है कि रूस के कच्चे और संशोधित तेल का आयात छह माह के भीतर पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा। यूक्रेन का कहना है कि वह अपनी ज़मीन से होकर यूरोप को गैस पहुँचाने वाली कुछ पाइपलाइनों को बंद करने वाला है। यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप में गैस के दाम बढ़कर चार से पाँच गुणा हो चुके हैं। गैस पाइपलाइन बंद करने से उनमें और भी उछाल आएगा और यूरोप के देशों में महँगाई को लेकर मचा हाहाकार और बढ़ जाएगा। यूक्रेन के दक्षिण में कालासागर तट की बंदरगाह ओडेसा पर रूसी बमबारी तेज़ होती जा रही है। यूक्रेन के लगभग सारे अनाज और खाने के तेल का निर्यात ओडेसा से होता रहा है। इसके बंद होने से दुनिया भर में अनाज, खाने के तेल और पशुचारे के दाम और बढ़ेंगे।