सोना सदियों से हर किसी को ललचाता रहा है। क्या राजा, क्या रंक सभी इसके मोहपाश में बंधे हुए रहे। भारत में तो सोना हमेशा समृद्धि का प्रतीक रहा और इसे खरीदने के लिए लोग खासकर महिलाएं उत्सुक रहती हैं। गहने ही तो महिलाओं की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं और इसलिए तरह-तरह के गहने ज्वेलरी शो रूम में दिखते हैं। सोने के प्रति इसी दीवानगी के कारण भारत दुनिया का सबसे बड़ा सोना आयातक देश बन गया।
दुनिया में सबसे ज्यादा सोना भारतीय खऱीदते हैं और गहने बनवाते हैं। भारत में सोने का आयात हर सरकार के लिए समस्या रही क्योंकि इससे हमारा व्यापार घाटा बढ़ता है। पिछले बजट में सरकार ने सोने पर कस्टम ड्यूटी में 6 फीसदी कटौती कर दी थी जिसके कारण सोने का आयात लगातार बढ़ रहा है। नवंबर 2024 में इसमें सर्वाधिक बढोतरी हुई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक नवंबर महीने में नवंबर में भारत में सोने का रिकॉर्ड आयात हुआ और यह बढ़कर 14.8 अरब डॉलर पर पहुंच गया जो अक्टूबर के कुल आयात 7.13 अरब डॉलर से दो गुना ज्यादा है। यानी सोने का आयात हमेशा से कहीं ज्यादा होने लगा है।
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जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो उसने भी इस समस्या का हल ढूंढना शुरू किया। वित्त मंत्रालय ने इस सिलसिले में कई प्रस्ताव रखे जिनमें सबसे चर्चित था-सॉवरेन गोल्ड बॉंड स्कीम जिसे एसजीबी कहा जाता है। 2015 में जारी इस स्कीम के तहत भारतीय नागरिकों को यह सुविधा दी गई कि वे सोने की बजाय उसके बॉंड खरीदें। यानी शो रूम वगैरह में जाने की बजाय वे ऐसे सरकारी बॉंड में पैसा लगायें जो उन्हें ब्याज भी दे और उनके खरीदे हुए सोने की गांरटी दे।
यह डिजिटल गोल्ड का एक बेहतरीन उदाहरण था जिसमें ग्राहकों को इसमें यह फायदा था कि उन्हें 2.75 फीसदी ब्याज (बाद में इसे घचाकर 2.5 फीसदी कर दिया गया था) का वायदा किया गया जबकि बॉंड के परिपक्व हो जाने के बाद जितना सोना उन्होंने खरीदा था उतना वापस होगा लेकिन रुपये में। सरकार को इससे फायदा यह था कि इस तरह की स्कीम से सोने का आयात घटेगा और देश का व्यापार घाटा भी घटेगा।
- यह सोचकर कि आने वाले समय में सोने की कीमतें बढ़ेंगी लाखों लोगों ने इस स्कीम में निवेश किया। पांच साल के बाद इसकी मैच्युरिटी होनी थी। बाद में सरकार को इस स्कीम में भारी घाटा भी उठाना पड़ा और इस साल इसे बंद कर दिया गया। फायदा हुआ उन लाखों निवेशकों को जिन्होंने इस स्कीम में पैसा लगाया था।
2015 में जब स्कीम की पहली किस्त जारी हुई तो सोने का दाम रखा गया 2684 रुपये प्रति ग्राम था। निवेशकों ने कुल 245 करोड़ रुपये का डिजिटल गोल्ड खरीदा था। लेकिन जिस रफ्तार से सोने के दाम बढ़े उसकी सरकारी तंत्र ने कल्पना भी नहीं की थी। मैच्युरिटी पर सरकार को कुल 610 करोड़ रुपये का खर्च हुआ जो कुल खरीद का 229 फीसदी था।
- इतना ही नहीं सरकार ने निवेशकों को 2.5 फीसदी की दर से ब्याज भी दिया। यानी यह स्कीम सरकार के लिए कोई फायदे का सौदा नहीं हुई। यहां पर सरकार से चूक हुई कि उसने सिर्फ 6-7 फीसदी की दर से साधारण ब्याज देने का वायदा किया होता तो उसे इस तरह का झटका नहीं लगता।
2023 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने फरवरी महीने में आखिरी बार सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी किया था जो 8008 करोड़ रुपये मूल्य का था। वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में 18,500 करोड़ रुपये का आवंटन सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के लिए किया गया था। लेकिन अंतरिम बजट में यह आवंटन 26,852 करोड़ रुपये था। यानी सरकार की देनदारी काफी बढ़ गई क्योंकि सोने के दाम भी काफी बढ़ गये थे।
इसके बाद से यह स्कीम बंद कर दी गई। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम के बारे में आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने जानकारी दी कि उधारी लागत को देखते हुए इस स्कीम को बंद करने का फैसला लिया है। सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना होता है कि इस एसेट क्लास को सपोर्ट देना है या नहीं। यह विकल्प केंद्र सरकार के लिए ज्यादा महंगा साबित हो रहा था, इसलिए इसे बंद करने का निर्णय लिया गया है। यानी सरकार को देर से ही समझ में आ गया कि यह स्कीम घाटे का सौदा है और इससे उसके खजाने से पैसे जा रहे हैं।
इस स्कीम को बनाने वालों ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि सोने के दाम इस स्तर पर चले जायेंगे कि सरकार को स्कीम की मैच्युरिटी पर इतनी बड़ी रकम देनी होगी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पिछले कुछ सालों में सोने की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। अकेले 2024 में सोने की कीमतों में 11 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई जबकि योजनाकारों ने इस बात पर विचार ही नहीं किया कि सोना इतना बढ़ जायेगा। 2019 में सोने के दाम 35,000 रुपये प्रति दस ग्राम थे जो 2024 में बढ़कर 75,000 रुपये प्रति दस ग्राम हो गये। यानी दुगने से भी ज्यादा। हाल में सोने की कीमतें बढ़कर 84,900 प्रति ग्राम पर जा पहुंची थी। इस कारण से सरकार को काफी घाटा हुआ और निवेशकों की चांदी हो गई। एक कारण और भी था कि वित्त मंत्री ने पिछले बजट में सोने पर कस्टम ड्यूटी में 6 फीसदी की कटौती कर दी थी जिससे यह आकर्षक हो गया और लोगों ने बड़े पैमाने पर खरीदारी की जिससे स्कीम को धक्का पहुंचा। दरअसल सोने की कीमतें इतनी बढ़ेंगी ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। अंतर्राष्ट्रीय कारणों से खासकर विपरीत परिस्थितियों जैसे युद्ध या महामारी के कारण सोने के दाम हमेशा बढ़ जाते हैं। इसके अलावा अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव के कारण भी सोने के दाम बढ़ जाते हैं।
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इस स्कीम की एक बड़ी खामी यह थी कि सरकार ने इसके लिए सोने की खरीदारी नहीं की यानी कोई बैक अप नहीं किया जिससे उसके दाम जब आसमान छूने लगे तो उसे घाटा उठाना पड़ा। बाबुओं की अदूरदर्शिता से यह सब हुआ क्योंकि उन्होंने सोने की संभावित कीमतों के बारे में कभी ध्यान नहीं दिया और सिर्फ एक औसत कीमतों पर स्कीम बनाई। लेकिन जिन लोगों ने इस स्कीम में पैसा लगाया उन्हें बढ़िया लाभ मिला।
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