उन्होंने कहा कि इन नोटिफ़ाइड स्ट्रैटेजिक क्षेत्रों में एक या अधिकतम दो बड़ी सरकारी कंपनियाँ रहेंगी। यदि अधिक कंपनियाँ हुईं तो उनका विलय कर दिया जाएगा। इसके अलावा निजी क्षेत्र की कंपनी काम करेगी।
इसके अलावा तमाम क्षेत्रों में निजी कंपनियाँ ही होंगी वे ही काम करेगी। उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा और सरकारी कंपनियां उन क्षेत्रों में काम नहीं करेंगी।
क्या होगा नेहरूवादी अर्थव्यवस्था का?
पर्यवेक्षकों का कहना है यह बहुत ही बड़ा आर्थिक सुधार है और से 'बिग टिकट रिफ़ॉर्म' कहा जा सकता है।इसका असर यह होगा कि आने वाले कुछ सालों में पूरी अर्थव्यवस्था बदल जाएगी और नेहरूवादी आर्थिक मॉडल ध्वस्त हो जाएगा। सार्वजनिक और निजी कंपनियों के एक साथ फलने फूलने का मॉडल भी ख़त्म हो जाएगा।
बिक जाएंगी सरकारी कंपनियाँ?
धीरे-धीरे सार्वजनिक क्षेत्र ही ख़त्म हो जाएगा। इसकी वजह यह है कि इन स्ट्रैटेजिक क्षेत्रों के अलावा हर क्षेत्र से सार्वजनिक उपक्रमों को हटा लिया जाएगा। दूसरी बात यह होगी कि स्ट्रैटेजिक क्षेत्र में भी एक-दो सरकारी कंपनिया ही रहेंगी और उनके सामने बड़े कॉरपोरेट हाउसेस होंगे।पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी अगली परिणति यह होगी कि तमाम सरकारी कंपनियाँ धीरे-धीरे बेची जाएँगी। पहले सरकारी हिस्सेदारी कम की जाएगी और उसके अगले चरण के रूप में उन्हें बेच दिया जाएगा। नया सार्वजनिक उपक्रम नहीं आएगा। इसका नतीजा यह होगा कि सार्वजनिक उपक्रम पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा।
फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में भी सार्वजनिक क्षेत्र है और मजबूत है। पर भारत उससे आगे निकल अमेरिका की राह पर चल पड़ेगा, यानी सरकार की कोई कहीं भूमिका नहीं रहेगी।
अपनी राय बतायें