बहुत जल्द ही आर्थिक मंदी देश के शासन में राजनैतिक लड़ाई का रूप लेने जा रही है। मंदी से राजस्व वसूली में आई गिरावट के बाद केंद्र ने राज्यों की हिस्सेदारी में कटौती शुरू कर दी है। उसने विलासिता की चीजों पर जीएसटी के ऊपर लगने वाले उपकर वसूलने के बाद भी राज्यों के हिस्से के लगभग बीस हज़ार करोड़ रुपए नहीं दिए हैं। मामला सिर्फ़ भुगतान न करने या देरी का नहीं है। केंद्र ने यह भुगतान न करने का पत्र राज्यों को लिखा है और राजस्व में आ रही गिरावट को वजह बताया है, जबकि जीएसटी क़ानून के अनुसार राज्यों का हिस्सा रोका नहीं जा सकता है। केरल समेत कई राज्यों ने विरोध किया है और 18 दिसंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह मुद्दा ज़ोर-शोर से उठने की उम्मीद है। कई राज्यों के राजस्व में इतनी कमी आ गई है कि वे अपने कर्मचारियों का वेतन देने में परेशानी महसूस करने लगे हैं। राज्य राजस्व वसूल कर सिर्फ़ अपने अधिकारियों-कर्मचारियों के ऊपर ख़र्च करे यह मुश्किल तो है ही विलासिता की चीजों और सिगरेट-शराब जैसी चीजों पर नया उपकर लगाकर और वसूली करे यह भी आसान विकल्प नहीं है।
पसरती जा रही है मंदी, सरकार को क्यों नहीं दिख रही?
- अर्थतंत्र
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- 5 Dec, 2019

मंदी को स्वीकार न करके भी सरकार जो क़दम उठा रही है वह मंदी से लड़ने की उल्टी दिशा है। कई बार लगता है कि यह समझ का फेर या ग़लती न होकर अपने प्रिय लोगों का खजाना भरने और बाक़ी सभी को भगवान भरोसे छोड़ने की सोची-समझी रणनीति है। आर्थिक सलाहकार सलाह न माँगे जाने से परेशान होकर भाग रहे हैं और सारे फ़ैसले अनपढ़ लोग ले रहे हों तो इसे मात्र समझ का फेर मानना भी मूर्खता ही होगी।