महाराष्ट्र का राजनैतिक नाटक अगर षड्यंत्रकारी ढंग से मुख्यमंत्री बने देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफ़े के साथ एक मुकाम पर पहुँची लगती है तो यह काफ़ी राहत देने वाली चीज है। राहत आगे के लिए बहुत सुधार की उम्मीद से न होकर गिरावट की इंतहा न दिखने से है। बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन विधानसभा ज़रूर जीत गया था पर चुनाव पूर्व से ही दाँव-पेच चालू हो गए थे। मुक़ाबले वाला कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन कहीं लड़ाई में नहीं लग रहा था।
चाणक्य का खेल: महाराष्ट्र की चेतावनी, संभल जाओ मोदी-शाह जी!
- विचार
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- 27 Nov, 2019

अभी मोदी-शाह का सूरज शीर्ष पर पहुँचकर मद्धिम पड़ता दिखता है तो उसे रेखांकित करने की ज़रूरत है। और यह ज़रूरत और भी तब बढ़ जाती है जब लगता है कि यह जोड़ी मुल्क और समाज के बुनियादी स्वभाव या धर्म को न समझ कर अपनी चलाने लगी थी। महाराष्ट्र की चेतावनी अगर उन्हें जगा दे तो उनका ही भला होगा।
चुनावी लाभ के लिए एनसीपी नेता शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार ही नहीं, उनके क़रीबी माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल पटेल के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामलों का इस्तेमाल उन्हें दबाने के लिए किया जाने लगा था। शायद यही तरीक़ा नाराज़ शिवसेना को बराबर-बराबर सीट लड़ने के लोकसभा चुनाव के वायदे से नीचे उतरने के लिए आजमाया गया। कांग्रेस तो मरी-सी रही पर शरद पवार ने प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस समेत केंद्र सरकार के इस ‘भ्रष्टाचार निवारण अभियान’ को यह घोषित करके चुनावी मुद्दा बनाया कि वे ख़ुद सरेंडर करने जा रहे हैं। तब चुनावी हवा प्रभावित होते देखकर इस तरीक़े को रोका गया, पर चुनावी नतीजे आते ही वही खेल शुरू हो गया।