सऊदी अरब स्थित अरब अमेरिकन कंपनी (सऊदी अरैमको) के दो तेल संयंत्रों पर ड्रोन हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अब तक कच्चे तेल की क़ीमत 12 डॉलर प्रति बैरल बढ़ चुकी है। इसे अब तक की एक बार में हुई सबसे बढ़ी बढ़ोतरी माना जाता है। एक अध्ययन के मुताबिक़, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमत 1 डॉलर बढ़ने से भारत को सालाना 10,700 करोड़ रुपये का अतिरिक्त ख़र्च करना होता है। इस हिसाब से यदि यह क़ीमत साल भर टिकी रह गई तो भारत को लगभग 1,28,400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा। पहले से मंदी में चल रही अर्थव्यवस्था, रुपए के लगातार अवमूल्यन और गिरते निर्यात के बीच यह स्थिति भारत के लिए बेहद बुरी होगी। यह इसकी अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बड़ा चोट साबित हो सकता है।
सोमवार की सुबह न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में कच्चे तेल की कीमत यकायक 12 डॉलर प्रति बैरल बढ़ गई। यह बढ़ोतरी कुछ सेकंड में ही हो गई। यह इतनी जल्दी में हुआ और ज़ोरदार हुआ कि दो मिनट के लिए एक्सचेंज में कारोबार रोक दिया गया।
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क्या है मामला?
सऊदी अरब की सरकारी कंपनी सऊदी अरैमको के अबक़ैक और ख़ुरैश स्थित दो कच्चा तेल संयंत्रों पर शनिवार को 10 ड्रोनों से हमले किए गए। समझा जाता है कि यमन के हूती विद्रोहियों ने ये हमले किए हैं, जिनके साथ सऊदी अरब की छिटपुट लड़ाई लगभग तीन साल से चल रही है। इस लड़ाई में यह सबसे बड़ा हमला था, जिसमें हूती विद्रोहियों को कोई नुक़सान नहीं हुआ, पर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को इसका नुक़सान झेलना होगा।इन हमलों की वजह से सऊदी अरैमको को रोज़ाना 57 लाख बैरल तेल का नुक़सान हो रहा है, क्योेंकि इसे संयंत्र के कई हिस्सों को बंद कर देने पड़े हैं। इसे तुरन्त तेल सप्लाई में कटौती करनी पड़ी है। अंतरराष्ट्रीय कच्चा तेल बाज़ार में 1990 के बाद यह अब तक की सबसे बड़ी कटौती है। ईराक़ ने 1990 में पड़ोसी देश क़ुवैत पर हमला कर दिया था, जिससे तेल की सप्लाई कम हो गई थी।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सऊदी अरब जल्द ही इस स्थिति पर काबू पा लेगा और तेल की आपूर्ति बढ़ा देगा क्योंकि उसके पास पहले से भी कुछ तेल भंडार में है। पर स्थिति सामान्य होने में कई हफ़्ते लग सकते हैं क्योंकि कारखानोें के जिन हिस्सों को बंद कर दिया गया है, उनकी मरम्मत और साफ़-सफ़ाई में समय लगना स्वाभाविक है।
भारत अपनी ज़रूरतों के 85 प्रतिशत से भी अधिक कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से खरीदता है, जिसके लिए उसे डॉलर में भुगतान करना होता है। ईरान से तेल खरीदना बंद कर देने के बाद से उसे अधिक क़ीमत चुकानी होती है क्योंकि, उसे ईरान छूट देता था, बीमा प्रीमियम खुद भरता था और तेल की सप्लाई का भी आंशिक खर्च उठाता था। यह सब बंद हो चुका है। ऐसे में बढ़ी हुई क़ीमत पर तेल खरीदना भारत को बहुत ही महँगा साबित होने वाला है।
भारत पर क्या असर पड़ेगा?
रुपया डॉलर के मुक़ाबले 72 की सीमा पार कर चुुका है। यदि भारतीय मुद्रा मजबूत हुई तो भी यह उसके आसपास ही मँडराती रहेगी। रिज़र्व बैंक ने बहुत पहले ही कह दिया है कि रुपया को बाज़ार से एडजस्ट करना होगा, यानी केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप कर इसे संभालने की कोई कोशिश नहीं करेगा। इसका कोई मतलब इसलिए भी नहीं है कि इस तरह के उपायों से क़ीमत एक-दो दिन के लिए ही संभलती है, वह भी कृत्रिम तरीके से और उसके लिए रिज़र्व बैंक को बहुत पैसा चुकाना होता है। ऐसे में भारत का आयात बिल बेतहाशा बढ़ेगा, पहले से कमज़ोर रुपया, और गिरेगा। बहुत मुमिकन है कि इसका संकेत आज ही देखने को मिल जाए। फिर क्या होगा?भारत का आयात बिल बढ़ेगा, रुपये का अवमूल्यन होगा, चालू खाते का घाटा बढ़ेगा, बजट में वित्तीय घाटा बढेगा। सकल घरेलू उत्पाद पर इसका असर पड़ना लाज़िमी है। यह सब उस वक़्त होगा जब भारत पहले से ही आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है। नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है, बैंकिग व्यवस्था फटेहाल है, ख़पत और उत्पादन गिर चुके हैं, बेरोज़गारी चरम पर है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए जिन उपायों की घोषणा की है, वे नाकाफ़ी हैं। इसका कोई ख़ास नतीजा नहीं मिलने को है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही 5 खरब डॉलर इकॉनमी की बात कर रहे हों और इस पर सवाल उठाने वालों को 'प्रोफ़ेशनल पेसिमिस्ट' क़रार दें, अर्थव्यवस्था फटेहाल है, यह तो ख़ुद सरकारी एजेन्सियों के आँकड़ों से साफ़ है। ऐसे में तेल की कीमत बढ़ने और उसके लिए भारत को ज़्यादा पैसे चुकाने से स्थिति और बिगड़ेगी।
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