चीनी कैलेंडर के हिसाब से 2022 बाघ का वर्ष था। हिम्मत और हौसले का साल। और सच मानें तो यह पूरा साल हर मोर्चे पर दुनिया के हिम्मत और हौसले का इम्तिहान ही लेता रहा। और साल ख़त्म होते-होते यूँ लग रहा है मानो सामने फिर पानी से भरी एक बड़ी खाई आ गई है, अब इसे पार करने के लिए छलांग लगानी है, या पानी कम होने का इंतज़ार करना है? यह सवाल भारत की ही नहीं, दुनिया की अर्थव्यवस्था के सामने खड़ा है। और इसकी वजह यह है कि कोरोना महामारी के प्रकोप से निकलने की भविष्यवाणी के साथ शुरू हुआ साल ख़त्म होते-होते न सिर्फ उस उम्मीद पर पानी फेर चुका है बल्कि यह नई चिंता पैदा हो गई है कि क्या हम 1970 के दशक जैसे गंभीर आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़े हैं जहां आर्थिक तरक्की कछुए की चाल पर पहुंच जाए और महंगाई खरगोश की रफ्तार से कुलांचे भरती दिखाई पड़े। यह चिंता विश्व बैंक के इकोनॉमिक आउटलुक में जताई गई है।