अंधकार पर विजय का त्योहार है दिवाली। अंधकार के भी कई प्रकार होते हैं। दिवाली से जुड़ी तमाम कथाओं, किंवदंतियों में आपको उनके दर्शन भी होते हैं और आभास भी। लेकिन इस वक़्त दीपावली या दिवाली का इंतजार सबसे ज्यादा इस उम्मीद के साथ हो रहा है कि वो हमारी जिंदगी में छाई मायूसी, बेबसी और निराशा को खत्म करने और अर्थव्यवस्था पर छाए मंदी के बादलों को छांटने की राह आसान करे।

खास बात यह है कि अभी तक जो बिक्री बढ़ी है उसमें सरकारी या प्राइवेट नौकरियों में लगे लोगों या दूसरे कारोबारियों और किसानों ने अपने पास से खर्च किया है। न तो हाल में सरकार ने जनता की जेब में पैसे डालनेवाली कोई स्कीम खोली है और न ही सरकारी कर्मचारियों के लिए। लेकिन अब सब तरफ ख़बर गर्म है कि दिवाली के पहले ही बोनस की रक़म खातों में आ जाएगी।
लक्ष्मी पूजन के पर्व दिवाली और उससे ठीक पहले खरीदारी का शगुन पूरा करनेवाला त्योहार धनतेरस बरसों से देश के व्यापार और उद्योगों के लिए बड़ी उम्मीदों और खुशहाली का वक्त रहा है। सो दिवाली के जश्न का असली ट्रेलर तो धनतेरस पर ही दिखेगा। लेकिन इससे पहले गणेशोत्सव और नवरात्र पर इस बार ऐसे संकेत साफ़ दिख चुके हैं कि बाज़ार में खरीदारी का माहौल बन रहा है। एक नहीं, अनेक तरफ से इस बात के संकेत साफ दिखने लगे हैं कि इस बार दिवाली और उसके बाद नए साल तक चलनेवाला पूरा त्योहारी मौसम वाक़ई जश्न मनाने का वक़्त होने जा रहा है। यह जश्न सिर्फ़ हमारी आपकी खरीदारी और घर की सजावट तक सीमित नहीं है। सारी दुनिया के बड़े अर्थशास्त्रियों और एजेंसियों की नज़र इसी पर टिकी हुई है कि भारत में फेस्टिव सीजन इस बार कैसा रहता है। वजह यह है कि भारत अब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और अगर भारत मंदी की मार से निकलकर तेज़ रफ्तार से दौड़ने लगता है तो फिर बाक़ी दुनिया के लिए भी आगे की राह काफी आसान हो जाएगी।