अंधकार पर विजय का त्योहार है दिवाली। अंधकार के भी कई प्रकार होते हैं। दिवाली से जुड़ी तमाम कथाओं, किंवदंतियों में आपको उनके दर्शन भी होते हैं और आभास भी। लेकिन इस वक़्त दीपावली या दिवाली का इंतजार सबसे ज्यादा इस उम्मीद के साथ हो रहा है कि वो हमारी जिंदगी में छाई मायूसी, बेबसी और निराशा को खत्म करने और अर्थव्यवस्था पर छाए मंदी के बादलों को छांटने की राह आसान करे।
लक्ष्मी पूजन के पर्व दिवाली और उससे ठीक पहले खरीदारी का शगुन पूरा करनेवाला त्योहार धनतेरस बरसों से देश के व्यापार और उद्योगों के लिए बड़ी उम्मीदों और खुशहाली का वक्त रहा है। सो दिवाली के जश्न का असली ट्रेलर तो धनतेरस पर ही दिखेगा। लेकिन इससे पहले गणेशोत्सव और नवरात्र पर इस बार ऐसे संकेत साफ़ दिख चुके हैं कि बाज़ार में खरीदारी का माहौल बन रहा है। एक नहीं, अनेक तरफ से इस बात के संकेत साफ दिखने लगे हैं कि इस बार दिवाली और उसके बाद नए साल तक चलनेवाला पूरा त्योहारी मौसम वाक़ई जश्न मनाने का वक़्त होने जा रहा है। यह जश्न सिर्फ़ हमारी आपकी खरीदारी और घर की सजावट तक सीमित नहीं है। सारी दुनिया के बड़े अर्थशास्त्रियों और एजेंसियों की नज़र इसी पर टिकी हुई है कि भारत में फेस्टिव सीजन इस बार कैसा रहता है। वजह यह है कि भारत अब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और अगर भारत मंदी की मार से निकलकर तेज़ रफ्तार से दौड़ने लगता है तो फिर बाक़ी दुनिया के लिए भी आगे की राह काफी आसान हो जाएगी।
आर्थिक गतिविधि पर नज़र रखनेवाली दुनिया की दिग्गज समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग का कहना है कि पिछले महीने की त्योहारी खरीदारी से ही उन्हें यह दिख रहा है कि भारत अब दुनिया में सबसे तेज़ रफ्तार ग्रोथ की तरफ बढ़ रहा है। दरअसल यह त्योहारी खरीदारी ही भारतीय अर्थव्यवस्था को वो दम दे रही है कि वो इतनी तेज रफ्तार से तरक्की कर सके। ब्लूमबर्ग एक ट्रैकर चलाता है जिसमें वो आठ पैमानों पर लगातार अर्थव्यवस्था की नब्ज टटोलते रहते हैं। इनमें कहीं अच्छी और कहीं चिंताजनक तसवीर दिखने के बावजूद एक से सात के पैमाने पर भारत की सुई लगातार तीसरे महीने पांच पर टिकी हुई है। इस पैमाने को वो एनिमल स्पिरिट डायल कहते हैं, यानी यहां से आगे बढ़ने की इच्छा और क्षमता का पैमाना। साफ है कि देश तरक्की की छलांग के लिए तैयार हो रहा है।
यह कहने का आधार मिलता है मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज दोनों ही तरह के कारोबारों में नए ऑर्डरों के साथ बढ़े उत्साह से। देश से निर्यात में पिछले साल के मुकाबले तेईस परसेंट का उछाल और पिछले महीने के मुकाबले 1.6% की बढ़त है। आयात में भी अच्छी बढ़त है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी वजह है सोने की खरीदारी में जबर्दस्त उछाल।
पिछले सितंबर के मुकाबले सोने के आयात में इस बार 254% की बढ़ोत्तरी हुई है। जुलाई से सितंबर के बीच भारत ने 139 टन सोना आयात किया है। यह 2019 में आए 124 टन से भी ज्यादा है और पिछले साल के मुकाबले तो पूरा 47% ऊपर है। आम तौर पर माना जाता है कि सोना संकट की करेंसी है यानी सोना ज्यादा बिकने का मतलब यह होना चाहिए कि लोगों के मन में भविष्य को लेकर आशंकाएं हैं। लेकिन इस बार की बिक्री का मतलब वो हो नहीं सकता। वजह सामने है। शेयर बाज़ार भी लगातार कुलांचे भर रहा है। अगर माहौल में आशंकाएं होतीं तो शेयर बाज़ार में दिखाई पड़तीं।
सोने की बिक्री बढ़ने का एक और अर्थ भी मानना चाहिए। कोई भी इंसान अपनी बुनियादी ज़रूरतों को छोड़कर या पेट काटकर तो सोना चांदी खरीदेगा नहीं। इसलिए सोने की मांग या बिक्री बढ़ने का सीधा अर्थ यह भी मानना चाहिए कि अब लोगों के हाथ में कुछ फालतू रक़म बच रही है।
काफी समय से टल रहे मंगलकार्य भी अब होने लगे हैं इसलिए भी आभूषणों की मांग बढ़ रही है।
खास बात यह है कि अभी तक जो बिक्री बढ़ी है उसमें सरकारी या प्राइवेट नौकरियों में लगे लोगों या दूसरे कारोबारियों और किसानों ने अपने पास से खर्च किया है। न तो हाल में सरकार ने जनता की जेब में पैसे डालनेवाली कोई स्कीम खोली है और न ही सरकारी कर्मचारियों के लिए। लेकिन अब सब तरफ ख़बर गर्म है कि दिवाली के पहले ही बोनस की रक़म खातों में आ जाएगी। प्राइवेट कंपनियों में भी यही बोनस का समय है और उनका बोनस आने और ख़र्च होने की ख़बर छोटे बड़े व्यापारियों के लिए अपने आप खुशखबरी बन जाती है।
यह खुशखबरी सिर्फ व्यापारियों और उद्योगों तक ही सीमित नहीं है। जैसा ब्लूमबर्ग ने कहा, बाज़ार में बहार का सीधा मतलब होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से पटरी पर लौट रही है और तब भारत एक बार फिर दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला देश बन जाएगा। यह बहुत ज़रूरी भी है क्योंकि आर्थिक तरक्की के मामले में कोरोना से पहले ही भारत की स्थिति चिंताजनक हो चुकी थी और न सिर्फ दुनिया पर सिक्का जमाने के लिए बल्कि अपनी एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी को खुशहाल और आबाद रखने के लिए भी ज़रूरी है कि भारत जल्दी से जल्दी अपनी ग्रोथ की रफ्तार बढ़ाए।
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यह और भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि रॉयटर्स ने दुनिया के पांच सौ अर्थशास्त्रियों के बीच सर्वे में पाया है कि दुनिया की ग्रोथ की रफ्तार अगले साल साढ़े चार परसेंट ही रहने जा रही है, जबकि इस साल यह आंकड़ा 5.9% का था। और उसके अगले साल तो वो सिर्फ साढ़े तीन परसेंट ही ग्रोथ का अंदाजा लगा रहे हैं। इसमें चीन की ग्रोथ साढ़े पांच परसेंट रहने का अनुमान भी शामिल है। इन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन के अलावा एशिया के बाकी देशों पर कोरोना की मार बहुत गंभीर थी लेकिन वो उससे उबरने के लक्षण दिखा रहे हैं। चिंता सिर्फ वहीं रहेगी जहां आबादी के काफी हिस्से को अब भी टीके नहीं लग पाए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत का रिजर्व बैंक इस बात पर एकमत हैं कि चालू वित्तवर्ष में भारत की जीडीपी साढ़े नौ परसेंट की रफ्तार से बढ़ेगी।
लेकिन अनेक जानकारों का मानना है कि इकोनॉमी जिस तरह से रफ्तार पकड़ रही है वो इससे कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ सकती है और तमाम विशेषज्ञों को गलत साबित कर सकती है। यह एक ऐसा मामला है जिसमें ज्यादातर विशेषज्ञों को गलत साबित होने पर भी खुशी ही होगी।
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