महंगाई के मोर्चे पर तो कुछ राहत की ख़बर आई है। रिजर्व बैंक के आशावाद पर मोहर भी लग गई और उसकी यह बात सही भी साबित हुई कि महंगाई शायद अब उतार पर है। खुदरा महंगाई का आंकड़ा सोलह महीनों में सबसे नीचे पहुंच गया है। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि दाम गिर गए हैं। इसका मतलब बस यह है कि महंगाई बढ़ने की रफ्तार में कमी आई है।

दुनिया के अमीर से अमीर देशों को भी इस वक्त भारत और चीन में संभावनाएँ क्यों दिख रही हैं? क्या वजह से कि इस मुसीबत के दौर में ये दो देश हैं जो तरक्की की दौड़ में आगे रहेंगे? लेकिन यह तरक्की टिकी रहेगी?
रिजर्व बैंक ने जब इस बार ब्याज दरें बढ़ाने के सिलसिले पर ब्रेक लगाया तो उसे यह भरोसा था कि महंगाई दर में अब कुछ कमी दिखनेवाली है। हालांकि उस वक्त तक खुदरा महंगाई का आंकड़ा छह परसेंट से नीचे नहीं आया था। यानी अगर रिजर्व बैंक एक बार और दरें बढ़ाने का एलान करता तो उसकी कोई खास आलोचना नहीं होती। बाज़ार को उम्मीद तो यही थी कि अभी कम से कम एक बार दरें और बढ़ेंगी। लेकिन रिजर्व बैंक ने उम्मीद से पहले ही खुशखबरी दे दी।