अडानी समूह पर संकट के दौरान सत्य हिन्दी के यूट्यूब चैनल पर इस मुद्दे पर
गरमागरम बहस जारी है। वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन सिंह और अन्य विशेषज्ञों ने बताया
कि अडानी समूह की मंशा क्या थी, उसने ऐसा क्यों किया। लेकिन तमाम तटस्थ पत्रकार और आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर
ज्यादा चिंतित नजर आ रहे हैं कि इतने बड़े आर्थिक घटनाक्रम की केंद्र सरकार ने अभी
तक जांच का आदेश तक नहीं दिया। पत्रकार राजीव रंजन सिंह ने सत्य हिन्दी पर कहा -
उन्होंने कहा 19 लाख करोड़ की वैल्यू वाले समूह के
लिए बीस हजार करोड़ रुपये जुटाना बहुत बड़ी बात नहीं थी। इसको अगर उन्हें संस्थागत
निवेश ही चाहिए था तो समूह क्वालिफाइड इंस्टिट्यूशनल प्लसमेंट कर देना था। उससे कम
से कम बाजार में इतनी बडी डिजास्टर नहीं होती।
राजीव रंजन ने कहा कि गौतम अडानी के सलाहकार उनको गलत
सलाह दे रहे हैं। उन्हें टीवी प्रोग्राम में जाकर यह नहीं बताना चाहिए था, लेकिन
उन्होंने ऐसा शायद इसलिए किया कि वो बताना चाह रहे हों कि उनके समूह का बॉंन्ड
एक्सपोजर विदेशी निवेश ज्यादा है, और भारतीय बैंको पर उनकी निर्भरता कम है। औऱ भारत
सरकार की तरफ से उन्हें कोई विशेष छूट प्राप्त नहीं है। यही वह वो जगह है जहां से
अडानी समूह में गिरावट शुरु हो गई। इसने विदेशी लोगों का ध्यान आकर्षित किया जिसने
इसकी जांच करनी शुरु की।
एक चीज बहुत साफ है कि लोग तो सवाल पूछेंगे कि जब एफपीओ
पूरी तरह से बिक गया जिसकी आपने पूरे विश्वास के साथ घोषणा भी की ऐसे में केवल एक
दिन बाद ही आपने उनको वापस क्यों ले लिया, इसकी इनहेरिटेंस स्ट्रेंथ पर सवाल आएगा।
दूसरा बड़ा सवाल ये है कि जब आपके पास इंस्टिटयूशन का इतना बड़ा सपोर्ट है, तब फिर
आपने क्वालिफाइड इंस्टिट्यूशनल सपोर्ट क्यों नहीं किया, एफपीओ से पैसा जुटाने की
क्यों सोची। आपने न केवल बॉंड एक्सपोजर के बारे में मार्केट को क्यों बताया, बाजार
के हिसाब से ऐसा करना अच्छी बात है। लेकिन उसकी साथ जो शॉर्ट सेलर आकर्षित हुए हैं,
जिसके कारण 900-1000 प्वाइंट की गिरावट बहुत बड़ी गिरावट है, वो भी बजट वाले दिन, जबकि
सरकार ने बजट में अच्छे संकेत दिये हैं। उस दिन मार्केट का क्रेश होना बड़ी बात
है। उसका कारण तो आप ही हैं, सरकार ने खूब सवाल तो उठेंगे ही कि जब आपको खुद पर
विश्वास नहीं था ता एफपीओ लाना ही नहीं चाहिए था।
सरकारी संस्थाओं की स्थिति बात करते हुए राजीव रंजन कहते हैं कि इंडिया में
कोंगलोमेरेट बनाए जाते हैं। एलआईसी ने खूब सारी इक्विटी खरीदी हुई है। जबकि एक एलआईसी
सरकारी संस्था है, सरकारी संस्थाओं के बहुत सारे नियम कानून होते हैं। किसी भी कंपनी
में निवेश से पहले सरकारी संस्थाएं, कंपनी की खूब जांच पड़ताल के बाद और ही किसी
कंपनी में निवेश करती हैं। एलआईसी से भी सवाल किया जाएगा कि आपने डेब्ट इक्विटी रेशियो
चेक किया था कि नहीं, ऐसे कौन से पैरामीटर देखे की आपने 36 हजार करोड़ रुपये लगा
दिये, कॉरपोर्ट गवर्नेंस देखा की नहीं देखा। बैंको से भी सवाल होगा कि आपका 81-82 हजार
करोड़ का एक्सपोजर है, डेब्ट इक्विटी रेशियो चेक किया, कॉरपोर्ट गवर्नेंस देखी की
नहीं देखी, आपने किस बिनाह पर इतना बड़ा लोन दे दिया।
बहुत सारे सवाल उठेंगे, अभी तक फॉर्चून इंडिया ही सवाल
पूछ रहा था। लेकिन अब उम्मीद है कि मेनस्ट्रीम मीडिया भी सवाल पूछेगा, देखिए क्या
होता है।
प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि यह देश की लिए अच्छी खबर है. अडानी की
कॉर्पोरेट गवर्ननेंस पर तो पहले से ही सवाल उठ रहे थे। अडानी की कॉर्पोरेट गवर्ननेंस
सबसे बदतर हालात में है। अब तो सबकुछ जाहिर हो गया है। बैंक की गवर्ननेंस पर भी सवाल
उठेंगे। एलआईसी के गवर्ननेंस पर भी सवाल उठने चाहिए जिसने अपने कुल निवेश का एक
प्रतिशत केवल एक कंपनी में लगा रखा है।
राजीव ने कहा कि चालीस प्रतिशत मार्कट उड़ जाने के बाद
आप कह रहे हैं कि हमने इनवेस्टर का इंटरेस्ट कैसे हो गया। सेबी की बात पर राजीव कहते हैं कि सेबी देश के लोगों
के प्रति जिम्मेदार है या फिर किसी और के। हिंडनबर्ग कह रहा है कि वह डेढ़ साल से
इसकी चांज कर रहा है, लेकिन सेबी क्या कर रही थी। आपकी सैलरी टेक्सपेयर के पैसे से
जाती है। सेबी से कभी भी कोई सवाल पूछो, उसकी तरफ से कभी जवाब नहीं मिलता है। आखिर
सेबी क्या छुपा रहा है?
वरिष्ठ पत्रकार लोक जोशी ने कहा कि अड़ानी की जेब से कुछ नहीं गया है। सबसे ज्यादा नुकसान
हुआ वो छोटा निवेशक है। इसमें एलआईसी, एसबीआई, एक्सिस बैंक को जवाब देना होगा। यह
निवेश सेंटिमेंट को खराब करता है। अगर एक बार यह सेंटिमेंट बिगड़ता है तो इसे वापस
बनाने में सालों लग जाते हैं।
भारत में कुछ भी बिकता है तो वहां अडानी दिखते हैं, हर जगह औऱ हर सेक्टर में
एक्सपेशंन कर रहे हो, सरकार, मीडिया, विपक्ष तक सब चुप हैं।
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