अडानी समूह के ख़िलाफ़ ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ की रिपोर्ट उस पर समूह की प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया पर जवाब- सब देखने के बाद लग रहा है कि महा शक्तिशाली भारत सरकार अपने सबसे करीबी (दानादाता, प्रचारक, उद्धारक और खरीदार) को नुक़सान से बचा नहीं पाई है। कुल मिलाकर, आरोप जितने अडानी पर हैं उतने ही सरकार पर और अडानी से जिन सवालों के जवाब मांगे गए हैं, उनकी चर्चा करने की बजाय वे इधर-उधर की बातें कर रहे हैं और सरकार ने हमेशा की तरह चुप्पी साध रखी है।
रिपोर्ट की ख़ास बातों में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि अडानी समूह बड़े पैमाने पर, दिन के उजाले में, धोखाधड़ी करने में सक्षम रहा है क्योंकि निवेशक, पत्रकार, नागरिक और यहाँ तक कि राजनेता प्रतिशोध के डर से बोलने से बचते हैं। हमने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में 88 प्रश्नों को शामिल किया है। यदि गौतम अडानी वास्तव में पारदर्शिता को अपनाते हैं, जैसा कि वे दावा करते हैं, तो उत्तर देने के लिए ये प्रश्न आसान होने चाहिए। हम अडानी की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। अडानी की सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक में हेरा-फेरी के सबूत आश्चर्यजनक नहीं लगने चाहिए। वैसे भी, सेबी ने अडानी एंटरप्राइजेज के स्टॉक को पंप करने (कृत्रिम रूप से बढ़ाने/फैलाने) के लिए अडानी के प्रवर्तकों सहित 70 से अधिक संस्थाओं और व्यक्तियों के खिलाफ वर्षों जांच और मुकदमा चलाया है।’
ऐसे आरोपों और इन तथ्यों के बाद कायदे से तथा सामान्य स्थितियों में पूंजी बाजार, सेबी के साथ अडानी और निवेशकों की रक्षा व उनकी राहत के लिए भारत सरकार का एक बयान भी आना ही चाहिए था। ख़बरों की पुष्टि करने के लिए निर्धारित और फिर मुक्त किए गए प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो को बताना चाहिए कि इसपर कितना यकीन किया जाए। सरकार को यह भी कहना चाहिए कि मामले को गंभीरता से लिया गया है जांच कराई जाएगी या आरोपों में दम नहीं है। सरकार उचित कार्रवाई करेगी और आप अपनी समझ व सूचना के अनुसार निवेश करें। अगर बाजार से निवेशकों का भरोसा उठ जाएगा तो क्या होगा, कैसे चलेगा? फिर अडानी को भी मोदी सरकार के होने का क्या फायदा होगा? पर सरकार शांत है क्योंकि कुछ कर नहीं सकती है। आगे की सोच कर या जवाब देने की तैयारी करके काम करने का रिवाज ही नहीं है।
यह दिलचस्प है कि रिपोर्ट में ही कहा गया है, (अनुवाद मेरा) "व्यापक शोध के बाद, हमने यूएस-ट्रेडेड बॉन्ड और गैर-भारतीय-ट्रेडेड डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स के माध्यम से अडानी ग्रुप की कंपनियों में शॉर्ट पोजीशन ली है। यह रिपोर्ट केवल भारत के बाहर कारोबार की जाने वाली प्रतिभूतियों के मूल्यांकन से संबंधित है। यह रिपोर्ट प्रतिभूतियों पर सिफारिश की तरह नहीं है। यह रिपोर्ट हमारी राय और खोजी टिप्पणी का प्रतिनिधित्व करती है और हम प्रत्येक पाठक को अपने स्वयं के उचित परिश्रम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।" जाहिर है, आम निवेशक यह सब इस स्तर पर नहीं कर पाएगा और दूर रहेगा। बचाव के लिए सरकार का आश्वासन ज़रूरी है लेकिन अभी तक वह नदारद है।
दूसरी ओर, रिपोर्ट बहुत विस्तार में है और मैं चाहकर भी पूरा नहीं पढ़ पाया। अंग्रेजी में लिखी इस रिपोर्ट में ऐसे कई आरोप हैं जिन्हें पढ़ते हुए लगा कि यह कैसे संभव है, मैं सही समझ तो रहा हूं, अनुवाद गलत तो नहीं हो रहा है और बार-बार मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए अंग्रेजी की कॉपी देखनी पड़ी, विस्तार ढूंढना पड़ा और तब यकीन हुआ कि जवाब अडानी समूह को नहीं, भारत सरकार को देना चाहिए।
रिपोर्ट में यहाँ तक बताया गया है कि फलां काम एक ही ऑडिटर ने किए जो कई वर्ष से समूह से जुड़े हुए थे और फलां मामले में दस्तखत करने वाला फलां ऑडिटर 23 या 24 साल का है और बमुश्किल स्कूल (पढ़ाई) से बाहर आया है। और इसके लिए नाम, हस्ताक्षर, फोटो तथा पैन कार्ड की कॉपी तक है।
इस रिपोर्ट में दूसरी महत्वपूर्ण बात शेल कंपनियों की है। उनसे अडानी समूह का कनेक्शन जोड़ने के लिए रिपोर्ट में दावा किया गया है, हमने विनोद अडानी या करीबी सहयोगियों द्वारा नियंत्रित 38 मॉरीशस शेल संस्थाओं की पहचान की है। हमने ऐसी संस्थाओं की पहचान की है जो साइप्रस, यूएई, सिंगापुर और कई कैरिबियाई द्वीपों में विनोद अडानी द्वारा गुप्त रूप से नियंत्रित हैं। हमारा शोध इंगित करता है कि अडानी समूह से जुड़ी अपतटीय शेल कंपनियां और अडानी समूह से जुड़े धन में कई सबसे बड़ी "सार्वजनिक" (यानी, गैर-प्रवर्तक) कंपनियां हैं जिनके पास अडानी का स्टॉक है और यह अडानी की कंपनियों की डीलिस्टिंग का कारण बनेगा बशर्ते भारतीय प्रतिभूति नियामक, सेबी के नियम लागू किए जाएं।
दूसरी ओर, मोदी सरकार का शेल कंपनियों के खिलाफ खास अभियान है, लगभग शुरू से। संसद में दी गई एक सूचना के अनुसार, विशेष अभियान के तहत 4,32,796 लाख नॉन ऑपरेशनल कंपनियां आधिकारिक रिकार्ड से हटा दी गई हैं। इनमें से 49921 कंपनियां पिछले वित्त वर्ष में हटाई गईं। यह 27 जुलाई 2022 की सूचना है यानी पिछला वित्त वर्ष 2021-22 हुआ। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, सरकार का दावा है कि उसने शेल कंपनी और फ्रॉडलेन्ट (धोखेबाज) शेल कंपनियों को बंद करने का विशेष अभियान चलाया है। भले ही शेल कंपनी की कोई परिभाषा नहीं है। खबर यह भी है कि नीरव मोदी ने 2017 में शेल कंपनियों के जरिए 5921 करोड़ रुपए काले से सफेद किए। और ‘नीरव भाई’ तथा उनके फरार होने की कहानी और उससे पहले समूह में उनकी फोटो तो आपको याद ही होगी। हालांकि यह अलग मुद्दा है।
शेल कंपनियों पर आता हूं। रिपोर्ट के अनुसार, “हमारी जांच में मॉरीशस की संपूर्ण कॉर्पोरेट रजिस्ट्री को डाउनलोड करना और सूचीबद्ध करना शामिल है। इससे पता चला है कि विनोद अडानी, कई करीबी सहयोगियों के माध्यम से, अपतटीय (ऑफशोर) शेल इकाइयों के एक विशाल गोरख-धंधे का प्रबंध भी करता है। 'डिलीवरी वॉल्यूम' एक अनूठा दैनिक डेटा बिंदु है जो संस्थागत निवेश प्रवाह की रिपोर्ट करता है। हमारे विश्लेषण में पाया गया कि अडानी की कई सूचीबद्ध कंपनियों में अपतटीय संदिग्ध स्टॉक पार्किंग संस्थाओं की वार्षिक 'डिलीवरी वॉल्यूम' का हिसाब 30%-47% तक का है। यह एक स्पष्ट अनियमितता है जो यह दर्शाता है कि अडानी के स्टॉक संदिग्ध अपतटीय संस्थाओं के माध्यम से 'धुलाई के काम' या अन्य हेरा-फेरी वाले ट्रेडिंग करते रहे हैं।”
रिपोर्ट के अनुसार, 2007 (पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे) के सेबी के एक फैसले में कहा गया है कि, "अडानी के प्रमोटर्स के खिलाफ लगाए गए आरोप, कि उन्होंने केतन पारेख की संस्थाओं को अडानी के शेयरों में हेराफेरी करने में मदद की और उकसाया, साबित होते हैं"। समूह की संस्थाओं को उनकी भूमिकाओं के लिए मूल रूप से प्रतिबंध की सजा मिली थी, लेकिन बाद में उसपर जुर्माना लगा दिया गया था, जो इस समूह के प्रति सरकार की उदारता का एक स्पष्ट प्रदर्शन है और यह दशकों लंबा पैटर्न बन गया है।
एक अन्य विनोद अडानी-नियंत्रित मॉरीशस इकाई जिसे इमर्जिंग मार्केट इन्वेस्टमेंट डीएमसीसी कहा जाता है, का कोई कर्मचारी लिंक्डइन पर सूचीबद्ध नहीं है, कंपनी की कोई ऑनलाइन उपस्थिति नहीं है, उसने किसी ग्राहक या सौदे की घोषणा नहीं की है, और यह संयुक्त अरब अमीरात में एक अपार्टमेंट से चलता है। इसने अडानी पावर की सहायक कंपनी को 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया है।
सरकार जब देश में शेल कंपनियां बंद करवाने का दावा कर रही है तो यह कंपनी कैसे चल रही है और अंबानी को इससे कर्ज कैसे मिल गया और मिला तो पता क्यों नहीं चला, कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
गौतम अडानी ने एक साक्षात्कार में दावा किया है, "आलोचना के प्रति बहुत खुला दिमाग होना ... हर आलोचना मुझे खुद को सुधारने का अवसर देती है।" इन दावों के बावजूद, अडानी ने बार-बार सरकार और नियामकों पर सवाल उठाने वालों का पीछा करने के लिए अपनी अपार शक्ति का उपयोग करते हुए आलोचनात्मक पत्रकारों या टीकाकारों को जेल में डालने या मुकदमेबाजी के माध्यम से चुप कराने की कोशिश की है। दिलचस्प यह कि इस मामले में भी अदालती कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। हालांकि, हिनडनबर्ग ने भी कहा है कि हम तैयार है। मुझे नहीं लगता कि इस मामले में इससे ज्यादा कुछ होना है।
अडानी समूह की ओर से रिपोर्ट की साख खराब करने की कोशिश की जाएगी और वह पहले ही इतनी पुख्ता है कि इस पर किसी को शक होने की गुंजाइश ही नहीं है। कार्रवाई सेबी को करनी है, नियम एजेंसियों को लागू करने हैं पर वो तो अब होता नहीं है। अडानी समूह के खिलाफ क्या होगा। लेकिन यह तय हो गया कि नियमों का उल्लंघन करने वालों को सरकार भी नहीं बचा सकती है, संरक्षण भले देती रहे।
(Hindenburg Research Report / हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट)
अपनी राय बतायें