सरकार अब सरकारी कर्मचारियों की तरह ही अन्य सभी वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि यानी पीएफ में कर-मुक्त योगदान की सीमा को दोगुना कर सकती है। फ़िलहाल, सरकारी कर्मचारियों को अधिकतम 5 लाख रुपये प्रति वर्ष तक योगदान पर कर मुक्त होने का लाभ मिलता है और निजी क्षेत्र में काम करने वाले वेतनभोगी कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है।
केंद्रीय बजट 2021-22 में वित्त मंत्री ने कर-मुक्त ब्याज आय का लाभ उठाने के लिए कर-मुक्त वार्षिक पीएफ योगदान को 2.5 लाख रुपये तक सीमित करने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में ऐसे फंडों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया था जहाँ नियोक्ता ने योगदान नहीं दिया हो। आम तौर पर सरकारी कर्मचारियों के पीएफ़ फंड में नियोक्ता का योगदान नहीं होता है जबकि निजी कर्मचारियों के पीएफ़ में आधा कर्मचारी के हिस्से से और आधा नियोक्ता कंपनी के हिस्से का योगदान आता है।
सरकार ने वित्त अधिनियम 2021 में संशोधन कर कर-मुक्त पीएफ कंट्रीब्यूशन की सीमा 2.50 लाख से बढ़ा कर पाँच लाख रुपए कर दी थी। यह 1 अप्रैल 2021 से लागू है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2021 के भाषण में कहा था कि कुछ लोग बड़ी रकम पीएफ़ में जमा कराते हैं और उस पर उन्हें ब्याज मिलता है। उन्होंने कहा था कि पीएफ़ दरअसल मज़दूरों के लिए है, लेकिन इसका फ़ायदा दूसरे लोग उठाते हैं, मजदूरों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे बड़ी रकम इसमें जमा करा सकें। लिहाज़ा, इस पर रोक लगाने के लिए यह तय किया गया था कि अब 2.50 लाख रुपए तक ही जमा कराया जा सकेगा जिस पर आयकर नहीं लगेगा।
लेकिन बाद में सरकार ने इसमें संशोधन कर उस मामले में इस रक़म को बढ़ा कर पाँच लाख कर दिया जिसमें नियोक्ता की ओर से कोई योगदान नहीं दिया गया हो।
हालाँकि, इस क़दम से केवल सरकारी कर्मचारियों को ही फायदा हुआ। हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से यह ख़बर दी है। सूत्रों ने बताया कि 'इस प्रावधान को न्यायसंगत और गैर-भेदभावपूर्ण बनाने और सीमा को बढ़ाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में कई आवेदन मिले क्योंकि यह सबसे प्रभावी सामाजिक सुरक्षा तंत्रों में से एक है।'
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