जुलाई, 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद कारखाना उत्पादन वृद्धि गिर कर 0.3 प्रतिशत तक जा पहुँची थी। हालाँकि आईआईपी में बढोतरी दर्ज़ की गई थी, लेकिन भारत की रेटिंग से यह साफ़ था कि औद्योगिक स्थिति अच्छी नहीं है।
दोपहियों की बिक्री गिरी
घटती नौकरियों और ग्रामीण इलाक़ों तथा छोटे शहरों में बढ़ती आर्थिक दिक़्क़तों ने ऑटो इंडस्ट्री पर गहरा असर डालना शुरू कर दिया है। इस वजह से 13 सालों में पहली बार स्कूटर्स की बिक्री घटी है। इसके अलावा कारें और स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी) की बिक्री की गति भी पिछले 5 साल में सबसे कम रही है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, 2018-19 में 67 लाख स्कूटर्स बिके थे और यह उससे पिछले साल बिके स्कूटर्स के मुक़ाबले 0.27 फ़ीसदी कम है। इससे पहले 2005-06 में दोपहिया वाहनों की बिक्री 1.5 फ़ीसदी गिरी थी। देश भर में बिकने वाले कुल दोपहिया वाहनों में लगभग एक तिहाई संख्या स्कूटर्स की होती है। ख़बर के मुताबिक़, मोटसाइकिलों की बिक्री की बात करें तो इसमें 8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के साथ प्रदर्शन अच्छा रहा है लेकिन हालात यहाँ भी ख़राब ही दिख रहे हैं।
उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में कमी
इसके अलावा कछ दिन पहले उपभोक्ता मामलों में शोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी कैन्टर वर्ल्डपैनल ने अपने ताज़ा शोध में पाया है कि भारत में उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में साल 2018 में 1 प्रतिशत की कमी आई है। एक साल पहले इसमें 7.5 फ़ीसद का इजाफ़ा हुआ था। कैन्टर के आँकड़े बाज़ार के ट्रेंड पर शोध करने वाली कंपनी नीलसन के आँकड़ों के उलट हैं। नीलसन ने कहा था कि इसी दौरान उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह यह है कि नीलसन सिर्फ़ ब्रान्डेड वस्तुओं को ध्यान में रख कर विश्लेषण करता है, जबकि कैन्टर के शोध में 96 कैटगरी की तमाम चीजें शामिल होती हैं, जिनमें असंगठित क्षेत्र में बनी बग़ैर ब्रान्ड की चीजें भी होती हैं। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि ब्रान्डेड वस्तुओं की बिक्री भले ही बढ़ी हो, कुल मिला कर उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री गिरी है।विकास दर कम
चालू वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही के सरकारी आँकड़ों की घोषणा से ठीक पहले दुनिया की जानी मानी आर्थिक रेटिंग संस्था फ़िच रेटिंग्स ने अपने 'ग्लोबल इकनॉमिक आउटलुक' में भारत के बारे में कहा है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में हमारी विकास दर 6.8% ही रहेगी।पहले अनुमान था कि विकास दर 7.1% रह सकती है। विश्व बैंक ने इसके बारे में 7.5%का अनुमान लगाया था, लेकिन ख़ुद भारत सरकार के स्टेटेस्टिक्स और प्रोग्राम इम्पलीमेंटेशन मंत्रालय ने जबसे 2018-19 की दूसरी तिमाही के नतीजे को 6.6% बताया, दुनियाँ चौंक पड़ी और सब अपने काग़ज़ दुरुस्त करने लगे। पहली तिमाही में यह दर 7% थी।
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