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रफ़ाल सौदे के बीच अंबानी का अरबों का बक़ाया माफ़

फ़्रांस ने अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली एक कंपनी का 143.7 मिलियन यूरो यानी लगभग 1200 करोड़ रुपये का कुल बक़ाया माफ़ कर दिया था और यह तब किया गया था जब फ़रवरी और अक्टूबर 2015 के बीच भारत और फ़्रांस 36 लड़ाकू विमानों की बिक्री को लेकर बातचीत कर रहे थे। फ़्रांस की पत्रिका 'ला मोंद' ने इस बारे में ख़बर प्रकाशित की है। ख़बर के सामने आने के बाद रफ़ाल सौदे को लेकर चल रहा सियासी बवाल और तेज़ हो सकता है। चुनाव के ठीक मौक़े पर आई इस सनसनीखेज ख़बर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 
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बता दें कि भारत में रफ़ाल विमानों को बनाने का ठेका यानी ऑफ़सेट कॉन्ट्रैक्ट उद्योगपति अनिल अंबानी को मिला है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बेहद हमलावर रहे हैं और उन्हें उद्योगपति अनिल अंबानी का दोस्त बताते रहे हैं। 

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ख़बर के मुताबिक़, अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली फ़्रांसीसी कंपनी का नाम रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ़्रांस था। अनिल अंबानी की कंपनी की फ़्रांस के कर विभाग के अधिकारियों द्वारा 2007 से 2010 के बीच जाँच की गई थी और इस पर 60 मिलियन यूरो की देनदारी थी। ख़बर में यह भी कहा गया है कि अनिल अंबानी की कंपनी ने कर के रूप में 7.6 मिलियन यूरो का भुगतान करने की पेशकश की थी लेकिन फ़्रांस के अधिकारियों ने इससे इनकार कर दिया था। 

ख़बर के मुताबिक़, 2010 से 2012 के दौरान फ़्रांसीसी अधिकारियों के द्वारा इस मामले में एक और जाँच की गई थी। इसमें अनिल अंबानी की कंपनी को अतिरिक्त 91 मिलियन यूरो की रकम कर के रूप में देने के लिए कहा गया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़्रांस स्थित दसॉ एविएशन के साथ 36 रफ़ाल लड़ाकू विमान ख़रीदने की घोषणा की थी, तब फ़्रांस को रिलायंस द्वारा दी जाने वाली बक़ाया कुल राशि 151 मिलियन यूरो थी।

ख़बर के मुताबिक़, जब फ़रवरी और अक्टूबर 2015 के बीच भारत और फ़्रांस रफ़ाल लड़ाकू विमानों की बिक्री को लेकर बातचीत कर रहे थे, उसी दौरान फ़्रांसीसी कर अधिकारियों ने अनिल अंबानी के 143.7 मिलियन यूरो के बक़ाया कर को माफ़ कर दिया था। ख़बर के मुताबिक़, 151 मिलियन यूरो के मूल बक़ाया कर के बजाय रिलायंस से सिर्फ़ 7.3 मिलियन यूरो ही लेकर इस मामले का निपटारा कर दिया गया। 

फ्रांस में भ्रष्टाचार विरोधी एनजीओ शेरपा ने 26 अक्टूबर, 2018 को राष्ट्रीय वित्तीय कार्यालय (पीएनएफ) में एक शिकायत दर्ज कराई थी। इस एनजीओ ने अनुरोध किया था कि इस मामले में भ्रष्टाचार की आशंका के चलते जाँच शुरू होनी चाहिए। 

रिलायंस ने दी सफ़ाई

इस पूरे विवाद पर अब रिलायंस कम्युनिकेशन की ओर से सफ़ाई सामने आई है। रिलायंस कम्युनिकेशन ने कहा है कि रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ़्रांस उसकी सहयोगी कंपनी है। यह कंपनी फ़्रांस में केबल नेटवर्क और दूरसंचार के बुनियादी ढाँचे से सबंधित काम देखती है। कंपनी ने कहा है कि अब से लगभग 10 साल पहले यानी 2008 से 2012 के दौरान कंपनी को 2.7 मिलियन यूरो यानी 20 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ था। फ़्रांसीसी कर अधिकारियों ने इस अवधि के लिए 1,100 करोड़ से अधिक का कर देने की माँग की थी। फ़्रांसीसी कर निपटान प्रक्रिया के क़ानून के अनुसार, कंपनी की ओर से 56 करोड़ रुपये का भुगतान करके दोनों ओर से समझौते पर हस्ताक्षर कर मामले का निपटारा कर लिया गया था। कंपनी ने कहा है कि उसे इस समझौते से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हुआ है और किसी ने भी उसका किसी तरह से साथ नहीं दिया है।  

रफ़ाल विमान सौदों पर अंग्रेज़ी के दो बड़े अख़बारों 'द हिंदू' और 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने कई ख़बरें प्रकाशित कीं थी और इनमें कई गंभीर आरोप लगाये गये थे। इन रिपोर्टों में प्रधानमंत्री कार्यालय पर सबसे गंभीर आरोप यह थे कि रक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञों की कमेटी को नज़रअंदाज़ कर प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में समानांतर बातचीत कर रहा था। 

कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने रफ़ाल डील पर नए सिरे से सुनवाई के लिए अपनी सहमति दे दी थी। कोर्ट ने केंद्र सरकार की सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए लीक हुए दस्तावेज़ों की वैधता को मंजूरी दे दी थी। ये दस्तावेज़ रक्षा मंत्रालय से लीक हुए थे। कोर्ट ने यह भी कहा था कि रफ़ाल मामले में रक्षा मंत्रालय से लीक हुए दस्तावेजों का भी वह परीक्षण करेगा। 

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केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि सरकारी गोपनीयता क़ानून के अंतर्गत इन दस्तावेज़ों को छापना अवैध है और इसके साथ ही दस्तावेज़ों की चोरी का आरोप भी लगाया गया था। केंद्र ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरनाक भी बताया गया था।

रफ़ाल सौदे में गड़बड़ी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के अलावा आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। 

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क़मर वहीद नक़वी
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