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भारत में रोजगार की समस्या को छुपा रहे हैं सरकारी आँकड़े: अर्थशास्त्री

भारत में रोजगार बढ़ने के सरकारी आँकड़ों पर निजी क्षेत्र के अर्थशास्त्रियों ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि भारत में रोज़गार के बढ़ते अवसर मुख्य रूप से स्व-रोजगार लोगों, अवैतनिक श्रमिकों और अस्थायी कृषि श्रमिकों की वजह से है। यानी ये वो नौकरियाँ हैं जिनको नियमित वेतन नहीं मिलता है और काम भी नियमित रूप से नहीं मिल पाता है।

अर्थशास्त्रियों की यह टिप्पणी इस सप्ताह श्रम विभाग द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के बाद आई है, जिसमें दिखाया गया है कि 2017-18 से हर साल 2 करोड़ नए रोज़गार के अवसर पैदा हुए हैं। जबकि सिटीबैंक की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2012 से हर साल केवल 88 लाख नौकरियाँ ही बढ़ीं।

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हर साल 2 करोड़ नौकरियों के बढ़ने के दावे को लेकर अर्थशास्त्री कुछ और आँकड़ों से भी सवाल उठा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब नौकरी बढ़ी है तो आय भी बढ़नी चाहिए और ऐसे में ख़पत भी। अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था में कमज़ोर खपत की ओर इशारा किया है जो 2023-24 में केवल 4 प्रतिशत बढ़ी है। यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की आधी गति है। यह दुनिया भर में 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सतत रोजगार केन्द्र के प्रमुख अमित बसोले ने कहा, 'यह साफ़ है कि बड़ी बढ़ोतरी कृषि और स्वरोजगार से हो रही है, जिसमें खुद का काम या अवैतनिक पारिवारिक कार्य शामिल है।' वित्तीय वर्ष 2022-23 तक उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बसोले ने कहा कि रोज़गार में उछाल की तुलना नियमित वेतन वाली औपचारिक नौकरियों से नहीं की जा सकती है। 

केंद्रीय बैंक ने सोमवार को एक बयान में कहा था कि मार्च 2024 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था में रोज़गार 46.7 मिलियन बढ़कर कुल 643.3 मिलियन हो गया। यह एक साल पहले 596.7 मिलियन था। बसोले ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक के डेटाबेस से पता चलता है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2022-23 के बीच 100 मिलियन नयी नौकरियों में से 48 मिलियन का योगदान कृषि कार्य का था। उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें नौकरियाँ नहीं कहूँगा। वे सिर्फ़ कृषि या गैर-कृषि स्व-रोज़गार में काम करने वाले लोग हैं, क्योंकि व्यवसायों से श्रमिकों की पर्याप्त माँग नहीं है।'
केंद्रीय बैंक ने 2023-24 में रोजगार में वृद्धि का एक प्रोविजनल अनुमान दिया, लेकिन इसने उन क्षेत्रों की जानकारी नहीं दी जिनमें ये रोजगार बढ़े। वह डेटा केवल पिछले वर्ष तक ही उपलब्ध था।

केंद्रीय बैंक और सरकार ने रायटर द्वारा प्रतिक्रिया मांगे जाने पर ईमेल का जवाब नहीं दिया। 

रिपोर्ट के अनुसार भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनब सेन ने कहा, 'हाँ, उन लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जो रोज़ग़ार में हैं। लेकिन इस वृद्धि का बड़ा हिस्सा कृषि और केजुअल काम में आया है।' उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार का बढ़ना 'बेहद प्रतिगामी' है, क्योंकि यह देश के उस लक्ष्य के खिलाफ है, जिसके तहत अधिक से अधिक भारतीयों को कृषि कार्य से बाहर निकाला जाना है। उन्होंने कहा, सवाल यह है कि क्या आप वाकई मानते हैं कि इतना रोजगार हो रहा है? ऐसा लगता नहीं है।'

रिपोर्ट के अनुसार स्वतंत्र अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे ने कहा, 'यदि पर्याप्त रोजगार सृजित हो रहा है, तो पर्याप्त आय भी सृजित होनी चाहिए और इसका व्यापक स्तर पर उच्च उपभोग में बदलना चाहिए। हम उपभोग व्यय में इतनी असमानता क्यों देख रहे हैं?'

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार 2014 में 2 करोड़ नौकरियाँ प्रति वर्ष देने के वादे पर सत्ता हासिल की थी। हालाँकि, उन्हें तब से विश्लेषकों और राजनीतिक विरोधियों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वे इसे पूरा करने में विफल रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस सप्ताह कहा, 'मोदी सरकार का एकमात्र मिशन यह सुनिश्चित करना है कि युवा बेरोजगार रहें।' 

इस साल के आम चुनाव के लिए मोदी की पार्टी के घोषणापत्र में बुनियादी ढांचे, फार्मास्यूटिकल्स और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश के माध्यम से रोजगार पैदा करने का वादा किया गया था। लेकिन पार्टी अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने में विफल रही। इसके लिए नौकरियों की कमी और महंगाई को जिम्मेदार ठहराया गया। 

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क़मर वहीद नक़वी
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