इस बार बजट की ख़ास बातों में एक था- बिना परमानेंट अकाउंट नंबर यानी पैन या सिर्फ़ आधार नंबर पर आयकर जमा हो सकता है। वैसे तो इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि नियम ऐसे हैं कि बिना पैन कार्ड के आप 20,000 रुपए महीने से ज़्यादा के काम नहीं कर सकते। आप इससे भी कम कमाते हों, दिहाड़ी मज़दूरी करते हों तो भी पैसे देने वाला चाहेगा कि आपके पास पैन हो और अगर नहीं होगा तो वह उसे प्राथमिकता देगा जिसके पास पैन होगा। ऐसे में पैन कार्ड दिहाड़ी मज़दूरों के लिए तो मुसीबत हैं लेकिन ताज्जुब की बात है कि करोड़ों की संपत्ति वाले नेताओं के पास पैन कार्ड नहीं हैं या उनके लिए ज़रूरी नहीं है। अगर आप किसी व्यक्ति या संस्था से 30,000 रुपए से ज़्यादा का भुगतान लेते हैं तो नियम है कि उसे स्रोत पर कर (टीडीएस) काटना है। ऐसे में आपके भुगतान से टीडीएस कट जाएगा और आपकी कुल कमाई पर आयकर देय नहीं है तो आपको रिटर्न फ़ाइल करने पर ही ये पैसे वापस मिलेंगे। नहीं करेंगे या नहीं करते हैं तो यह पैसा सरकार के पास रह जाएगा। ऐसे में सामान्य कमाने वाला कौन आयकर रिटर्न दाखिल नहीं करेगा और उसके पास पैन कार्ड नहीं होगा।
दूसरा पैन कार्ड बन जाने की आशंका
इसके बावजूद मंत्री जी ने घोषणा की थी और अख़बारों में ख़बर है कि सिर्फ़ आधार से टैक्स रिटर्न भरा तो नया पैन मिल जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास पैन है और अगर आपने किसी कारण से आधार पर रिटर्न फ़ाइल कर दिया तो आपके पास दो पैन हो जाएँगे। आपने माँगा नहीं पर आपको आवंटित कर दिया जाए तो दोषी कौन होगा - यह भी पता नहीं है। सरकार ने जब पैन के बिना आधार पर रिटर्न दाखिल करने की सुविधा दी है तो आपको दोषी नहीं माना जाना चाहिए और अगर आप पैन होते हुए पैन की बजाय आधार पर रिटर्न फ़ाइल करते हैं तो आपके आधार से पैन ढूँढा जा सकता है, ढूँढा जाना चाहिए और नहीं होने पर ही नया पैन जारी होना चाहिए। पर ख़बरों में ऐसा नहीं है। हालाँकि, पैन नहीं होने पर पैन जारी हो ही जाएगा तो आधार पर रिटर्न दाखिल किया जा सकता है, इस घोषणा का भी कोई मतलब नहीं है।
ख़बरों में यह भी बताया गया है कि देश में 120 करोड़ से ज़्यादा आधार कार्ड हैं, 41 करोड़ के पास पैन हैं लेकिन इन्हें आपस में सिर्फ़ 22 करोड़ लोगों ने लिंक कराया है। ऐसे में आधार पर रिटर्न दाखिल करने वालों को पैन जारी करने का निर्णय ग़लत है। हालाँकि, ख़बर में लिखा है कि इनकम टैक्स रिटर्न में सिर्फ़ आधार का ज़िक्र मिलेगा तो विभाग यह मानेगा कि उसके पास पैन नहीं है और नया पैन जारी कर देगा। मंत्री की घोषणा के बाद यह ‘मानना’ भी ग़लत है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के प्रमुख प्रमोद चंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि यह बजट में मिली अतिरिक्त सुविधा है, जिससे पैन न होने पर रिटर्न की प्रक्रिया बाधित न हो। हालाँकि, जिसके पास पैन नहीं होगा वह रिटर्न किसलिए दाखिल करेगा यह इस ख़बर में भी स्पष्ट नहीं है। ख़बर में यह ज़रूर कहा गया है कि इससे पैन की उपयोगिता ख़त्म नहीं हुई है, क्योंकि क़ानूनन आधार और पैन को आपस में लिंक करना ज़रूरी है। इसकी समय-सीमा 30 सितंबर है।
करोड़पति मंत्रियों-नेताओं के पैन पर सख़्ती क्यों नहीं?
कोबरा पोस्ट ने अक्टूबर 2018 में खुलासा किया था कि बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा समेत 21 दलों के 194 नेताओं ने चुनाव आयोग को ग़लत पैन दिया था। इनमें छह पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम शामिल हैं। कोबरा पोस्ट के अनुसार चुनाव आयोग को ग़लत पैन देने वाले नेताओं में (उस समय की स्थिति के अनुसार) 10 पूर्व कैबिनेट मंत्री, आठ पूर्व मंत्री, 54 मौजूदा विधायक, 102 पूर्व विधायक, एक पूर्व डिप्टी स्पीकर, एक पूर्व स्पीकर, एक पूर्व सांसद, एक उप-मुख्यमंत्री शामिल हैं। चुनाव सुधार पर काम करने वाले एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) द्वारा जारी रिपोर्ट में भी ऐसा ही खुलासा किया गया था। लेकिन इस पर किसी कार्रवाई की ख़बर नहीं है। एडीआर के मुताबिक़, (पिछली लोकसभा के) सात सांसदों और 199 विधायकों ने चुनाव आयोग को अपने पैन की डीटेल नहीं दी है। एडीआर ने चुनाव आयोग के पास जमा कराए गए शपथ पत्र का अध्ययन करने के बाद यह जानकारी दी है।
शपथ पत्र में जानकारी क्यों नहीं दी?
एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 सांसद व 35 विधायक ऐसे भी हैं, जो दूसरी-तीसरी बार चुने गए, लेकिन उनके शपथ पत्र में दी गई पैन की डीटेल में गड़बड़ी है। पैन डीटेल नहीं देने वाले सांसदों और विधायकों में कई करोड़पति हैं। सात सांसदों में से मिज़ोरम के कांग्रेसी सांसद सीएल रुआला की संपत्ति 2.57 करोड़ तो ओडिशा के भुवनेश्वर से सांसद प्रसन्ना कुमार की संपत्ति 1.35 करोड़ रुपए है। हालाँकि इस लिस्ट में लक्षद्वीप के मुहम्मद फैज़ल भी शामिल हैं, जिनकी संपत्ति कुल 5.38 लाख रुपए ही है। इसमें असम में करीमगंज के राधेश्याम बिश्वास (संपत्ति 70.68 लाख), ओडिशा के जाजपुर की सांसद रीता तराई (संपत्ति 16.22 लाख), तमिलनाडु, कृष्णानगरी के सांसद अशोक कुमार (संपत्ति 11.76 लाख) व तिरुवनामलाई के सांसद वनारोजा आर (संपत्ति 37 लाख) के नाम भी शामिल हैं। इन सांसदों ने अपने शपथ पत्र में पैन डिटेल नहीं दी है।
आम लोगों के लिए मुसीबत
आम आदमी को अगर बैंक में खाता खोलना हो, 50,000 रुपए से ऊपर का नकद लेन-देन करना हो या कोई क़र्ज़ लेना हो तो आयकर विभाग द्वारा जारी किया जाने वाला पैन ज़रूरी है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएँगे जब किसी दिहाड़ी मज़दूर से काम करा लिया गया और भुगतान के समय (भिन्न क़िस्म की संस्थाओं द्वारा) पैन कार्ड या परिचय देने के लिए मजबूर किया गया। बहुत सारे लोग इसी कारण दिहाड़ी मज़दूर का काम भी नहीं पाते हैं या पैन लेने के लिए मजबूर हैं।
फिर पैन पर इतना ज़ोर क्यों?
5 दिसंबर 2018 से लागू पैन कार्ड के नए नियमों के अनुसार, ऐसी वित्तीय संस्थाएँ जो कि एक वित्तीय वर्ष में 2.5 लाख रुपये (यानी 20 हज़ार रुपए प्रतिमाह से कुछ ऊपर) या इससे अधिक का लेन-देन करती हैं, उनके लिए पैन अनिवार्य हो जाएगा। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि अगर कोई व्यक्ति वित्तीय वर्ष में 2.50 लाख रुपये (न्यूनतम 20 हज़ार रुपए प्रति माह ही) या इससे अधिक का लेन-देन करता है तो उसे पैन के लिए 31 मई 2019 से पहले आवेदन करना होगा (मैं नहीं जानता अभी इस आदेश की स्थिति क्या है)। पैन कार्ड बनवाने में एक समस्या पिता के नाम को लेकर थी। अगर किसी के पिता का नाम मालूम ही नहीं है या उसका सबूत नहीं है तो पुराने नियमों से पैन कार्ड बन ही नहीं सकता था पर पैनकार्ड होना ज़रूरी है इसलिए पिछली बार घोषित नियमों के तहत केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने पैन कार्ड बनवाने के लिए पिता का नाम देने की अनिवार्यता को ख़त्म करने का फ़ैसला किया था। इससे इसकी अनिवार्यता और पैन कार्ड बनवाने को दी जा रही प्रमुखता को समझा जा सकता है।
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