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पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर इतना उतावलापन क्यों?

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानि एनसीईआरटी इन दिनों अपने पाठयक्रम मे बदलाव कर रहा है। पाठ्यक्रम में हो रहे बदलाव का प्रमुख कारण स्कूली बच्चों के कंधों से बस्ते का बोझ कम करना है। तमाम शिक्षाविद इसको लेकर पहले से शिफारिश करते रहे हैं। बस्ते का बोझ कम करने के लिहाज से यह एक अच्छा कदम है। लेकिन हालिया बदलाव बस्ते का बोझ कम करने की बजाए एक विचारधारा और राजनीति को चुभने वाली विषयवस्तु को हटाने के प्रयास ज्यादा लग रहे हैं। हालिया बदलावों को लेकर तमाम तबकों से शिकायतें भी आ रही हैं। सबसे ज्यादा विरोध हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में हुए बदलाव पर हो रहा है। इस विरोध का कारण का इसमें निराला और फिराख गोरखपुरी की कविताओं को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है।  
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’ जैसे बड़े कवियों को हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में स्थान न दिये जाने पर साहित्यकारों ने भी हैरानी जताई है। अमर उजाला के प्रयागराज एडिशन के युवा पेज पर छपी खबर के अनुसार ममता कालिया, नासिरा शर्मा जैसे साहित्यकारों ने हैरानी जताई है। नासिरा शर्मा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि निराला और फिराक को पाठ्यक्रम से हटाना अफसोस जनक है, पाठ्यक्रम मे बदलाव पहले भी होते रहे हैं, लेकिन किसी शीर्ष व्यक्ति की रचना हटाई जा रही है तो उसकी किसी दूसरी रचना को शामिल किया जाना चाहिए। एनसीईआरटी को अपने फैसले की समीक्षा करनी चाहिए।
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एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में बदलाव की यह प्रक्रिया केवल हिंदी साहित्य तक ही सीमित नहीं है। इतिहास के पाठ्यक्रम में भी ऐसा ही बदलाव किया है।  इसमें से मुगल काल से जुड़े कई हिस्सों को किताबों से हटाया गया है। पाठ्यक्रम में किये गये यह सभी बदलाव 2023-24 के सत्र से लागू भी कर दिये जाएंगे। इतिहास की किताब से 'राजा और इतिहास: द मुगल कोर्ट्स (16वीं और 17वीं सदी)' से संबंधित अध्यायों और विषयों को हटा दिया है। राज्य के माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इतिहास की किताब 'थीम्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री-पार्ट II' में द मुग़ल दरबार से जुड़ा यह अध्याय था।
कक्षा 12वीं  की इतिहास की किताबों से हटाए गए विषयों में 'अकबरनामा' (अकबर के शासनकाल का आधिकारिक इतिहास) और 'बादशाह नामा' (मुगल सम्राट शाहजहाँ का इतिहास), मुगल शासक और उनके साम्राज्य, पांडुलिपियों की रचना, रंग चित्रण, आदर्श राज्य, राजधानियाँ और दरबार, उपाधियाँ, उपहार, शाही परिवार, शाही नौकरशाही, मुगल अभिजात वर्ग, सूचना और साम्राज्य, सीमाएँ प्रमुख हैं।
नागरिक शास्त्र की किताब से 'विश्व राजनीति में अमेरिकी आधिपत्य' और 'शीत युद्ध काल' जैसे अध्यायों को हटा दिया गया है। 12वीं कक्षा के छात्रों को पढ़ाई जाने वाली किताब 'पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस' से 'राइज ऑफ़ पॉपुलर मूवमेंट्स' और 'एरा ऑफ़ वन पार्टी डोमिनेंस' को भी हटा दिया गया है। इसमें कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के प्रभुत्व की प्रकृति के बारे में पढ़ाया गया था। 10वीं कक्षा की किताब 'डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स-2' से 'लोकतंत्र और विविधता', 'लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन', 'लोकतंत्र की चुनौतियाँ' जैसे पाठ भी हटा दिए गए हैं।
पाठ्यक्रम में यह बदलाव केवल स्कूली शिक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे विश्वविद्यालय के स्तर पर भी लागू किया जा रहा है। इसी क्रम में गोरखपुर विश्वविद्यायलय के एम.ए. हिंदी के चौथे सेमेस्टर के पाठ्यक्रम लोकप्रिय साहित्य का एक पेपर तैयार किया गया है। इस पेपर को वैकल्पिक विषय के तौर पर पढ़ाया जाएगा। लोकप्रिय साहित्य के इस पेपर में इब्ने शफी, गुलशन नंदा, वेदप्रकाश शर्मा का ‘वर्दी वाला गुंडा’ और हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ को शामिल किया गया है।
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पाठ्यक्रमों में हो रहे बदलावों के बीच उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद भी अपने पाठ्यक्रम में बदलाव कर रहा है। हालिया बदलावों को छोड़ दिया जाए तो यूपी बोर्ड का पाठ्यक्रम बहुत बड़ा और बहुत ज्यादा जटिल माना जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से इसमें बदलाव भी किये गये हैं जोकि नाकाफी साबित हुए हैं। अब, उत्तर प्रदेश शिक्षा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम को ही राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त स्कूलों मे लागू करने की नीति पर चल रहा है। 
पाठ्यक्रमों में हो रहे बदलाव पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इसका कारण सरकारें अपने मनमुताबिक जीचें बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास करती हैं। केंद्र और तमाम राज्यों में बीजेपी की सरकार आने के बाद से यह सवाल लगातार उठता रहा है। पाठ्यक्रम में हुए हालिया बदलाव बीजेपी की राजनीति के लिए सबसे ज्यादा मुफीद हैं। भारत में मुसलमानों का आगमन 700 ईसा पूर्व से है उसके कुछ समय बाद से ही उनका शासन भी शुरु हो जाता है, लेकिन बीजेपी हमेशा मुगल काल और मुगल शासकों पर ही हमलावर रही है। उनके पहले के इतिहास पर बीजेपी ने अक्सर चुप्पी साधकर रखी है। मुगल काल की तमाम चीजों को किताबों से हटाना, इतिहास की किताबों से मुगल काल को हटाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। पाठ्यक्रम में हुआ हालिया बदलाव संघ भाजपा को चुभने वाली विषयवस्तु को हटाने की कोशिश ज्यादा लग रही है।
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क़मर वहीद नक़वी
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