सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण पर मुहर लगाते हुए 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा पर अपना रुख बदलने का संकेत दिया है। यह सुप्रीम कोर्ट के ही अपने पहले के फ़ैसले से अहम बदलाव होगा!
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में 1993 के अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में कहा था कि आरक्षित सीटों, पदों की कुल संख्या उपलब्ध सीटों या पदों के 50% से अधिक नहीं हो सकती है। इसके साथ ही इसने यह भी कहा था कि आरक्षण की संवैधानिक प्रावधान के तहत अकेले आर्थिक पिछड़ापन एक मानदंड नहीं हो सकता। 1991 का वह फ़ैसला ऐतिहासक था और लेकिन सोमवार को उस ऐतिहासिक फ़ैसले के ख़िलाफ़ से इतर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अलग रुख अख़्तियार किया।
अदालत का यह रुख ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को दिए 10 फ़ीसदी आरक्षण के मामले में सुनावाई के दौरा सामने आया है। आर्थिक आधार पर यह आरक्षण दिया गया है, लेकिन इसमें सवर्ण जाति के लोगों को ही शामिल किया गया है और एससी, एसटी व ओबीसी को इस दायरे से बाहर रखा गया है।
पाँच जजों वाली पीठ में से तीन जजों ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का पक्ष लिया और उन्होंने कहा कि 50 फीसदी की अधिकतम सीमा का उल्लंघन संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है। उनका यह तर्क याचिकाकर्ताओं की इस दलील पर आया है कि सुप्रीम कोर्ट ही कह चुका है कि आरक्षण 50 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।
ईडब्ल्यूएस के मामले में पाँच जजों की पीठ ने बहुमत के आधार पर 50 फीसदी की सीमा के पार भी आरक्षण की पैरवी की है। लेकिन इससे पहले ऐसे ही कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट इसको लेकर सवाल करता रहा था।
पिछले साल जब मराठा आरक्षण को लेकर सुनवाई चल रही थी तो सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलीलों को सुनने के बाद सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था और उनसे इस बात पर जवाब मांगा था कि क्या 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण दिया जा सकता है।
उस वक़्त यह सवाल उठा था कि यदि 50 फ़ीसदी की सीमा के परे जाकर मराठाओं को आरक्षण दिया जाएगा तो क्या पूरे देश में हर जाति के लोग आरक्षण की मांग नहीं करने लगेंगे? क्या जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की माँग ज़ोर नहीं पकड़ेगी? क्योंकि जिस तरह मराठा आरक्षण के लिए हिंसा की हद तक चले गए थे उसी तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं।
कर्नाटक 70, आंध्र प्रदेश 55 और तेलंगाना 62 फ़ीसदी तक आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं। राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ जातियां आरक्षण की ज़ोरदार मांग करती रही हैं और यहां हिंसक प्रदर्शन तक हो चुके हैं।
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