बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच मैनपुरी और रामपुर के उपचुनाव में जोरदार सियासी लड़ाई होने जा रही है। मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट पर 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और इसके नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे। मैनपुरी लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई है। जबकि रामपुर सीट समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आज़म खान की विधानसभा की सदस्यता रद्द होने के चलते खाली हुई है।
मैनपुरी लोकसभा सीट पर दशकों से समाजवादी पार्टी का कब्जा है। 1996 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मैनपुरी से सांसद बने और उसके बाद भी कई बार यहां से चुनाव जीते।
बीजेपी ने एलान किया है कि वह मैनपुरी और रामपुर सीट पर पूरी ताकत के साथ चुनावी लड़ाई लड़ेगी। क्योंकि यह दोनों सीटें सपा के कब्जे वाली हैं इसलिए सपा इन सीटों पर जीत हासिल करने को लेकर दबाव में है। मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक होने के साथ ही उत्तर प्रदेश के बड़े नेता भी थे इसलिए सपा को इस सीट पर सहानुभूति के वोट भी मिलेंगे। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि सपा मैनपुरी सीट पर किसे उम्मीदवार बनाएगी।
खबरों के मुताबिक, सपा तेज प्रताप सिंह यादव को यहां से मैदान में उतार सकती है। तेज प्रताप सिंह यादव मुलायम सिंह यादव के भाई रतन सिंह यादव के पोते और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं। तेज प्रताप यादव ने 2014 में मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और जीते थे।
मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के बारे में कहा जा रहा है कि वह मैनपुरी से चुनाव लड़ना चाहते हैं।
मैनपुरी लोकसभा सीट की करहल विधानसभा सीट से अखिलेश यादव 2022 में विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक बने थे। इस सीट पर आने वाली 5 विधानसभा सीटों में से 2 बीजेपी के पास हैं इसलिए बीजेपी भी यहां चुनावी लड़ाई में कमजोर नहीं है। बीजेपी इस बात को लेकर लगातार मंथन कर रही है कि वह ऐसे किस नेता को उम्मीदवार बनाए जो मैनपुरी में कमल खिला सके।
बीजेपी ने साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी सीट से सपा से बीजेपी में आए वरिष्ठ नेता प्रेम सिंह शाक्य को मैदान में उतारा था। 2019 में मुलायम सिंह यादव को 5,24,926 जबकि प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे।
35 फीसदी यादव मतदाता
मैनपुरी की सीट पर 35 फीसदी यादव मतदाता हैं जबकि अन्य 65 फीसदी में शाक्य, ठाकुर, ब्राह्मण, अनुसूचित जाति और मुस्लिम समुदाय के मतदाता हैं। निश्चित रूप से इस सीट पर यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इसलिए इस तरह की चर्चा है कि बीजेपी यहां से शिवपाल सिंह यादव को उम्मीदवार बनने का ऑफर दे सकती है। बताना होगा कि मैनपुरी से लेकर इटावा, औरैया, कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद और फर्रुखाबाद तक यादव मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है और बीजेपी यादव समुदाय के किसी नेता पर दांव लगा सकती है।
रामपुर में 10 बार जीते हैं आज़म
सपा के दिग्गज नेता आज़म खान रामपुर विधानसभा सीट से 10 बार विधायक रह चुके हैं। उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म इसी जिले की स्वार टांडा सीट से विधायक हैं। आज़म की पत्नी तंजीन फातिमा भी रामपुर सीट से सपा के टिकट पर विधायक रह चुकी हैं। रामपुर सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
बीजेपी लोकसभा उपचुनाव में रामपुर सीट पर जीत हासिल कर चुकी है लेकिन विधानसभा उपचुनाव को जीतना उसके लिए आसान नहीं होगा। सपा के लिए इस सीट पर जीत का दारोमदार आज़म खान के ही कंधों पर ही है। यहां आज़म के करीबी किसी नेता को ही सपा टिकट देगी। लेकिन देखना होगा कि बीजेपी क्या इस विधानसभा सीट पर पहली बार कमल खिला पाएगी।
बीजेपी 12 नवंबर को रामपुर में मुस्लिम सम्मेलन करने जा रही है। इस सम्मेलन में पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और योगी सरकार के बड़े मंत्री शामिल होंगे। बीजेपी ने हाल ही में पसमांदा मुसलमानों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए कई सम्मेलन किए हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में अब सिर्फ डेढ़ साल का वक्त है और उससे पहले मैनपुरी और रामपुर के नतीजे उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की सियासी जमीन के बारे में भी बताएंगे।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी को विधान परिषद के चुनाव में भी जबरदस्त कामयाबी मिली थी और उसके बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला गोकर्णनाथ में भी वह चुनाव जीत चुकी है। देखना होगा कि मैनपुरी और रामपुर के सियासी दंगल में क्या सपा उसकी इस जीत के काफिले को रोक पाएगी?
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