मोदी सरकार ने चीनी सीजन 2022-23 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) को 305 रुपये प्रति क्विंटल पर मंजूरी दे दी है। लेकिन किसान संगठनों ने 15 रुपये की बढ़ोतरी को बहुत कम बताया है। किसान संगठनों की बात वाजिब भी है। यूपी समेत तमाम चीनी मिलों पर किसानों का अभी भी बहुत बड़ा बकाया है। हालात ये हैं कि यूपी की मुख्य गन्ना बेल्ट वेस्ट यूपी में 8 अगस्त को गन्ना किसान बकाया भुगतान को लेकर बड़ा प्रदर्शन करने वाले हैं।
सरकार ने अब जो बढ़ोतरी की है, वो राशि गन्ने के लिए है, जिसकी मूल चीनी रिकवरी दर 10.25% है। केंद्र सरकार ने चीनी की रिकवरी में 10.25% से अधिक की प्रत्येक 0.1% की वृद्धि के लिए ₹ 3.05 प्रति क्विंटल के प्रीमियम और रिकवरी में प्रत्येक 0.1% की कमी के लिए FRP में ₹ 3.05 प्रति क्विंटल की कमी की भी घोषणा की है। आसान शब्दों में ऐसे समझिए कि जिस गन्ने से ज्यादा चीनी निकलेगी, उस पर पैसा ज्यादा मिलेगा, जिस गन्ने से कम चीनी निकलेगी, उस पर कम पैसा मिलेगा।
पिछले सीजन के लिए भी एफआरपी 10% की मूल वसूली दर के साथ 290 रुपये प्रति क्विंटल था। जबकि केंद्र ने दावा किया कि बढ़ोतरी गन्ना किसानों के हितों की रक्षा करेगी। लेकिन किसान संगठनों ने कहा कि इनपुट लागत में बढ़ोतरी की तुलना में एफआरपी बहुत कम है और वसूली दर में 0.25% की वृद्धि उनके लिए एक झटका है।
केंद्र ने यह भी फैसला किया है कि चीनी मिलों के मामले में कोई कटौती नहीं होगी जहां वसूली 9.5 फीसदी से कम है। सरकार ने कहा कि ऐसे किसानों को मौजूदा चीनी सीजन 2021-22 में 275.50 रुपये प्रति क्विंटल के स्थान पर आगामी चीनी सीजन 2022-23 में गन्ने के लिए ₹282.125 प्रति क्विंटल मिलेगा।
किसानों को उनकी लागत का कम से कम 50 फीसदी वापस मिले, इसका इंतजाम करने की कोशिश नई गन्ना नीति में की गई है। लेकिन बात नहीं बन पा रही है। यदि चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य नहीं बढ़ाया जाता है, तो चीनी मिलें एफआरपी प्रदान नहीं कर पाएंगी। महाराष्ट्र में, किसानों को एफआरपी प्रदान करने की कोशिश में बहुत सारी सहकारी चीनी मिलें घाटे में चली गई हैं। इसलिए सिर्फ एफआरपी बढ़ाने से इस सेक्टर की समस्या का समाधान नहीं हो सकता। आयात को भी नियंत्रित किया जाना चाहिए। मूल वसूली दर बढ़ाना किसानों के साथ धोखाधड़ी है। अगर बुनियादी वसूली दर में वृद्धि हुई, तो एफआरपी में न्यूनतम वृद्धि भी किसानों के लिए कोई मायने नहीं रखती है।
यूपी सबसे बड़ा उदाहरण
गन्ने का सीधा सा गणित है। किसान जेब से पैसा लगाकर गन्ना बोता है और फिर फसल को चीनी मिलों तक पहुंचाता है। चीनी मिलें बाद में उसे पैसा देती हैं। उस पैसे से किसान फिर अगली फसल की तैयारी करता है। लेकिन गन्ना किसानों के मामले में पूरे देश में उल्टी गंगा बह रही है। किसानों को पुराना भुगतान मिल नहीं रहा है और तब तक अगला सीजन आ जाता है। सरकार न्यूनतम रेट बढ़ाकर और उसकी खबर छपवाकर खुश हो लेती है लेकिन जमीन पर सब ठनठन गोपाल होता है। इसी वजह से कुछ किसानों ने तो गन्ना बोना ही बंद कर दिया है और वो दूसरी फसरों की तरफ चले गए हैं। एक तरफ तो बकाया और दूसरी तरफ जिस तरह से खाद और डीजल के रेट बढ़े हैं, उससे गन्ना किसान जबरदस्त ढंग से प्रभावित हुए हैं। खाद की कालाबाजारी के बारे में सरकार अगर नहीं जानती तो अफसोस के अलावा और क्या किया जा सकता है।
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ईंधन और खाद की कीमतें बढ़ने की वजह से उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हुई है। इस बढ़ोतरी की तुलना में, एफआरपी पर्याप्त नहीं है।
-अजीत नवाले, महासचिव, अखिल भारतीय किसान सभा
यूपी में जिस तरह से गन्ना किसानों का बकाया है। आंकड़ों के जरिए किसानों का हाल समझा जा सकता है और ऐसी ही स्थिति कमोबेश हर राज्य में है।
हाल ही में खत्म हुए चीनी सीजन में यूपी की 120 मिलों ने किसानों से 35,198 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा। यूपी के गन्ना विभाग में 6 जुलाई को प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में सभी मिलों पर किसानों का बकाया 5 जुलाई तक 7,400 करोड़ रुपये था। यूपी में सबसे बड़ा डिफॉल्टर निजी स्वामित्व वाला बजाज समूह है, जो 14 चीनी मिलों का संचालन करता है। राज्य की बाकी चीनी मिलों पर 3,200 करोड़ रुपये का बकाया है।
अब यहां रुक कर जरा भारत सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के मुताबिक देश के गन्ना किसानों का 1,15,196 करोड़ रुपये बकाया है, जिसमें 1 अगस्त तक किसानों को 1,05,322 करोड़ का भुगतान कर दिया गया है। अगर इसकी तुलना अकेले यूपी से की जाए तो आसानी से समझ में आ सकता है कि किसानों को भुगतान की रफ्तार बहुत धीमी है। ये आंकड़े महज सरकारी फाइलों के लिए हैं। जमीनी हकीकत ये है कि गन्ना किसान गहरे कर्ज में डूबा हुआ है और सरकार गन्ने पर समर्थन मूल्य बढ़ाकर खुश हो रही है।
वेस्ट यूपी सबसे बड़ा गन्ना बेल्ट है। यहां के किसानों की जिन्दगी गन्ने के फसल से चलती है। सबसे ज्यादा बकाया भी इसी इलाके में है। 8 अगस्त को किसानों का बहुत बड़ा प्रदर्शन शामली में होने जा रहा है, क्योंकि शामली वेस्ट यूपी की मुख्य जगह है, जहां मुजफ्फरनगर के किसान भी आसानी से आ जाते हैं।
लेकिन इन प्रदर्शनों से न तो सरकार प्रभावित होती है और न पैसा मारने वाली चीनी मिलें। किसान बस अपनी भड़ास निकालकर चले आते हैं। लेकिन सरकार के मंत्री और अधिकारी से जब पूछा जाता है तो ऐसा लगता है कि सरकार ने जो पैसे गन्ने की खरीद पर बढ़ाए हैं, उससे किसान अब करोड़पति हो जाएगा।
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