महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के गुटों के बीच चल रही सियासी खींचतान और शिवसेना पर कब्जे को लेकर जैसे कई अहम मसलों पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। 3 जजों की बेंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि इस पूरे संकट के दौरान सामने आए मुद्दों को संवैधानिक बेंच को भेजा जाएगा। अब इस मामले में अगली सुनवाई 8 अगस्त को होगी और शायद उस दिन कोई बड़ा फैसला आ सकता है।
बेंच ने चुनाव आयोग को मौखिक निर्देश दिया कि असली शिवसेना किसकी है, इसे लेकर ठाकरे और शिंदे गुटों के बीच चल रही तकरार के मामले में वह अभी कोई फैसला नहीं ले।
जस्टिस सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के गुटों की ओर से दायर तमाम याचिकाओं पर सुनवाई की। इन याचिकाओं में विधायकों की अयोग्यता की कार्यवाही से लेकर, स्पीकर के चुनाव, पार्टी व्हिप को मान्यता देना, शिंदे सरकार का फ्लोर टेस्ट और एकनाथ शिंदे गुट की ओर से शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर दावा करना आदि शामिल है।
ठाकरे गुट की ओर से दायर एक अन्य याचिका में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें उन्होंने एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने तमाम मुद्दों और सवालों को अदालत के सामने रखा। इस पर सीजेआई रमना ने कहा कि अगर स्पीकर इस मामले में फैसले में 1 से 2 महीने का वक्त लेते हैं तो इसका क्या मतलब है। क्या विधायकों को सदन की कार्यवाही में भाग लेने से रोक दिया जाना चाहिए और लिए गए सभी फैसले गैरकानूनी हैं?
सीजेआई ने कहा कि दल-बदल विरोधी कानून असंतोष विरोधी कानून नहीं हो सकता है। सीजेआई ने कहा कि हम किसी भी राजनीतिक दल को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकते और ऐसा करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा।
इसके जवाब में सीनियर एडवोकेट साल्वे ने कहा कि इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है कि शिंदे गुट के विधायकों ने पार्टी छोड़ दी हो।
ठाकरे गुट की दलील
उद्धव ठाकरे गुट की ओर से अदालत में पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि शिवसेना के 40 बागी विधायकों को उनके आचरण के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है। उन्होंने अदालत से कहा कि इन बागी विधायकों का कहना है कि वह एक राजनीतिक दल हैं लेकिन अगर 40 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया है तो फिर उनके राजनीतिक दल का दावा होने का क्या आधार है।
उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यहां पर सारा दावा विधायकों का बहुमत उनके साथ होने को लेकर है लेकिन अगर वे अयोग्य हैं तो यह दावा अपने आप ही गिर जाता है।
चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने कहा, “नियमों के मुताबिक अगर किसी राजनीतिक दल पर कोई दावा किया जाता है तो चुनाव आयोग को इस मामले में फैसला लेना होगा। उन्होंने कहा कि दसवीं अनुसूची पूरी तरह अलग है। अगर विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो वे विधानसभा के सदस्य नहीं रह जाएंगे और ना ही कोई राजनीतिक दल।”
एडवोकेट दातार ने कहा कि विधानसभा के अंदर जो कुछ भी होता है इसका राजनीतिक दल की सदस्यता से कोई लेना देना नहीं है। एडवोकेट दातार ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव आयोग एक अलग संवैधानिक निकाय है और इसलिए दसवीं अनुसूची उसके कामों में दखल नहीं दे सकती।
गुरूवार को हुई सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट ने यह साबित करने की कोशिश की थी कि पार्टी पर उनका नियंत्रण हो। दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें रखी थीं।
ठाकरे गुट ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट पर पार्टी विरोधी रुख को सही ठहराने के लिए नकली कहानी गढ़ने का आरोप लगाया था। इस गुट ने कोर्ट में दलील दी थी कि फ्लोर टेस्ट और शिंदे की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति सहित सभी घटनाएं एक जहरीले पेड़ के फल हैं, जिसके बीज दोषी विधायकों द्वारा बोए गए थे।
ठाकरे गुट ने अदालत से कहा था कि 1/3 विधायक पार्टी में अभी भी शेष हैं और 2/3 विधायक यह नहीं कह सकते कि 'हम पार्टी हैं'।
शिंदे गुट ने कहा था, "... ठाकरे गुट अयोग्यता नोटिस का दावा करता है लेकिन अब तक किसी को भी अयोग्य घोषित नहीं किया गया है। सदन के बाहर आयोजित पार्टी की बैठक में शामिल नहीं होना दलबदल का आधार नहीं है। पार्टी के अंदर असंतोष दलबदल के लिए आधार नहीं है।"
कैबिनेट विस्तार में देर क्यों?
इस सब के बीच, महाराष्ट्र में कैबिनेट का विस्तार कब होगा, इसका भी शिंदे गुट और बीजेपी के विधायकों को बेसब्री से इंतजार है। 30 जून को बनी यह सरकार एक महीने के बाद भी कैबिनेट का विस्तार नहीं कर पाई है। सिर्फ मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री इतने बड़े महाराष्ट्र का कामकाज किस तरह संभाल रहे हैं, यह समझ पाना बेहद मुश्किल है।
शपथ लेने के बाद से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कई बार दिल्ली का दौरा कर चुके हैं। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं से मुलाकात की है।
लेकिन कैबिनेट का विस्तार क्यों नहीं हो पा रहा है, यह समझ से परे है। कैबिनेट विस्तार ना होने की वजह से शिंदे गुट के नेताओं में बेचैनी है। कहा जा रहा है कि 5 अगस्त को कैबिनेट का विस्तार हो सकता है।
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