भीमा कोरेगांव मामले में पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। वह छह साल से जेल में थीं। उनको 2018 में यूएपीए में गिरफ़्तार किया गया था और उनपर माओवादी से संबंध के आरोप लगाए गए हैं। अब इतने सालों बाद ज़मानत मिलने पर उनको जेल से रिहा किया जाएगा। हालाँकि, अदालत ने उनपर कुछ शर्तें भी लगाई हैं।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि यूएपीए की धारा 43डी(5) के अनुसार जमानत देने पर प्रतिबंध सेन के मामले में लागू नहीं होगा। बेंच ने यह भी कहा कि सेन एक उम्रदराज महिला हैं और उनको कई बीमारियाँ भी हैं। इसके अलावा अदालत ने लंबे समय तक कारावास, मुकदमे की शुरुआत में देरी और आरोपों की प्रकृति को भी ध्यान में रखा।
31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एलगार परिषद सम्मेलन हुआ था और उसके अगले दिन भीमा कोरेगाँव में हिंसा हुई थी। जनवरी, 2018 में पुलिस ने वामपंथी कार्यकर्ता के पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनो गोन्जाल्विस जैसे एक्टिविस्टों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था। बाद में कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया था। आरोप लगाया गया है कि इस सम्मेलन के बाद भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़की। हालाँकि इनकी गिरफ़्तारी के बाद से ही कई लोग यह दावा कर रहे हैं कि इस मामले में इनको जानबूझ कर इसलिए फँसाया जा रहा है क्योंकि वे दलित समुदाय के अधिकारों की पैरवी करते हैं।
2018 में चूँकि इस युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे और टकराव भी हुआ। इस सम्बन्ध में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई। भिडे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक हैं और एकबोटे भारतीय जनता पार्टी के नेता और विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं। हिंसा के बाद दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने इन पर मुक़दमा दर्ज कर गिरफ़्तार करने की माँग की थी। लेकिन इस बीच हिंसा भड़काने के आरोप में पहले तो बड़ी संख्या में दलितों को गिरफ़्तार किया गया और बाद में सामाजिक कार्यकर्ताओं को। इसमें शोमा सेन भी शामिल थीं।
भीमा कोरेगांव मामले के संबंध में कथित माओवादी संबंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन्हें 6 जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है और मुकदमे का इंतजार कर रही है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने अदालत द्वारा यह पूछे जाने पर कि उसकी हिरासत क्यों जरूरी है, 15 मार्च को अदालत को बताया था कि उसकी आगे की हिरासत की ज़रूरत नहीं है। इस बयान को कोर्ट ने भी संज्ञान में लिया।
अदालत ने निर्देश दिया कि सेन विशेष अदालत की अनुमति के बिना महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगी, अपना पासपोर्ट सरेंडर करेंगी और अपना पता व मोबाइल नंबर जांच अधिकारी को देंगी।
कोर्ट ने कहा कि उन्हें अपने मोबाइल फोन की लोकेशन और जीपीएस को भी पूरे समय सक्रिय रखना चाहिए और डिवाइस को जांच अधिकारी के डिवाइस के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि उनकी लोकेशन का पता चल सके।
डिवीजन बेंच बॉम्बे हाई कोर्ट के जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने सेन को जमानत के लिए अपने मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत से संपर्क करने का निर्देश दिया था।
16 आरोपियों में से छह को जमानत
शोमा सेन (62) इस मामले में जमानत पाने वाले सोलह आरोपियों में से छठी एक्टिविस्ट हैं। सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत (2021) मिली, जबकि आनंद तेलतुम्बडे (2022), वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा (2023) को योग्यता के आधार पर जमानत मिली। वरवरा राव को मेडिकल आधार पर जमानत दे दी गई है और गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य कारणों से नजरबंद कर दिया है। एक अन्य आरोपी, फादर स्टेन स्वामी की जुलाई 2021 में हिरासत में मृत्यु हो गई।
शोमा सेन मामले में शीर्ष अदालत के सामने दलील
गिरफ्तार प्रोफेसर का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने इस बात पर जोर दिया कि शोमा सेन को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत मामले से जोड़ने या प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ उनके कथित संबंध स्थापित करने के सबूतों की कमी है।
वरिष्ठ वकील ने शोमा सेन के स्वयं के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर किसी भी आपत्तिजनक साक्ष्य के नहीं होने पर जोर दिया और सह-अभियुक्त व्यक्तियों से बरामद अहस्ताक्षरित दस्तावेजों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया।
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