प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने का मसला अब और जटिल होता नजर आ रहा है। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने के मामले में प्रतिनिधित्व की जांच पद के ग्रेड/कैटेगरी के मुताबिक की जानी चाहिए, न कि पूरे क्लास या ग्रुप के मुताबिक। न्यायालय ने यह भी कहा कि पात्रता के लिए आंकड़े एकत्र करने में कैडर को यूनिट माना जाना चाहिए। अगर पूरी सेवा के आंकड़े लिए जाते हैं तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाता है।
न्यायालय के फैसले से और जटिल होता नजर आ रहा है प्रमोशन में आरक्षण
- देश
- |
- |
- 28 Jan, 2022

न्यायालय के इस फैसले से यह अर्थ निकलता है कि जिस पद पर संबंधित व्यक्ति का प्रमोशन किया जाना है, सरकार को यह देखना है कि उस पद पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं।
न्यायालय के इस फैसले को सरलता से समझने की कवायद करें तो संभवतः यह अर्थ निकलता है कि जिस पद पर संबंधित व्यक्ति का प्रमोशन किया जाना है, सरकार को यह देखना है कि उस पद पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं।
उदाहरण के लिए अगर पुलिस विभाग में किसी व्यक्ति का सिपाही पद से सब इंसपेक्टर पद पर प्रमोशन करना है तो सरकार इस आधार पर नहीं कर सकती है कि सब इंसपेक्टर, थानाध्यक्ष, सर्किल ऑफिसर, एएसपी, एसएसपी, डीआईजी और आईजी पदों पर अनुसूचित जाति व जनजाति का प्रतिनिधित्व कम है, इसलिए सिपाही का प्रमोशन सब इंसपेक्टर के रूप में किया जा रहा है। या अगर किसी व्यक्ति का प्रमोशन थानेदार से सीओ पद पर करना है तो सरकार को यह देखना होगा कि सीओ पद पर अनुसूचित जाति व जनजाति का उचित प्रतिनिधित्व है या नहीं।