उत्तर प्रदेश में 4 चरणों का मतदान पूरा हो चुका है। तीसरे और चौथे चरण में चुनाव पहुंचने के साथ पुरानी पेंशन योजना अहम मसला बन चुकी है। बैलेट पेपर से मतदान को लेकर कर्मचारियों में खासा उत्साह आया है और तीसरे व चौथे चरण में कर्मचारियों ने तगड़ा मतदान किया है। वहीं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों में भी उम्मीद जगी है कि अगर सरकारी कर्मचारियों को सम्मानजनक पेंशन मिलने लगती है तो आगे के चुनावों में निजी कर्मचारियों को भी पेंशन के रूप में एक सुनिश्चित सम्मानजनक धनराशि दिए जाने को लेकर सरकारों पर दबाव बन सकता है।
केंद्र सरकार ने 1 जनवरी, 2004 से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की शुरूआत की थी। एनपीएस एक पेंशन सह निवेश योजना है। यह योजना सुरक्षित और विनियमित बाजार आधारित रिटर्न के जरिए सेवानिवृत्ति का लाभ देती है। इस योजना का विनियमन पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) द्वारा किया जाता है। पीएफआरडीए द्वारा स्थापित राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली न्यास एनपीएस के अंतर्गत सभी जमा राशियों का मालिक है।
1 जनवरी, 2004 से केंद्रीय निकायों के सभी कर्मचारी, जिनकी नियुक्ति उपरोक्त तिथि या उसके बाद हुई हो, इसके तहत आते हैं। विभिन्न राज्य सरकारों ने भी इस ढांचे को अपनाया है और विभिन्न तिथियों से एनपीएस के कार्यान्वयन को प्रभावी किया है।
एनपीएस में निजी क्षेत्र भी शामिल है। विभिन्न कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन से एनपीएस कॉरपोरेट सेक्टर मॉडल विभिन्न संगठनों को उनके नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों की परिधि के भीतर एक संगठित संस्था के रूप में अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस अपना सकते हैं। इसके अलावा ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो उपरोक्त किसी भी सेक्टर के अंतर्गत कवर नहीं है 1 मई, 2009 से ऑल सिटिजन ऑफ इंडिया सेक्टर के अंतर्गत एनपीएस ढांचे में शामिल हो सकता है।
आल टीचर्स इंम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) के नेता विजय कुमार बंधु का कहना है कि पेंशन हमारे जीवन मरण का प्रश्न है। इस समय रिटायर हो रहे लोगों की 1,200 रुपये से लेकर 2,500 रुपये महीने पेंशन बंध रही है और कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के बाद सड़क पर आ जा रहे हैं। बंधु कहते हैं कि पहले कर्मचारी के अंतिम महीने के वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन मिलती थी। साथ ही जीपीएफ के रूप में एकमुश्त राशि मिलती थी और अब इसे मजाक बना दिया गया है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा कहीं से नहीं है।
कैसे दी जाती है पेंशन?
कर्मचारियों की मौजूदा पेंशन व्यवस्था में कर्मचारी के मूल वेतन और डीए के 10 प्रतिशत के बराबर कर्मचारी और इसका 14 प्रतिशत सरकार जमा करती है। इस पैसे को एबीआई, यूटीआई और एलआईसी के पास जमा किया जाता है। जब कर्मचारी रिटायर होता है तो इस जमा राशि का 60 प्रतिशत उसे नकद भुगतान कर दिया जाता है। शेष 40 प्रतिशत राशि पेंशन के लिए रोक ली जाती है। इसी पैसे से होने वाले मुनाफे को कर्मचारियों को पेंशन के रूप में दिया जाता है।
निजी संस्थानों के कर्मचारियों के लिए भी पेंशन की कुछ इसी तरह व्यवस्था है। निजी कर्मचारियों के मूल वेतन का 12.5 कर्मचारी और 12.5 प्रतिशत नियोक्ता देते हैं, जो कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के खाते में जमा होता है। हालांकि व्यावहारिक रूप से देखें तो निजी कर्मचारियों को साल में दिए जाने वाले पैकेज में से ही यह 25 प्रतिशत राशि कटती है। इसी में से पहले 540 रुपये महीने पेंशन खाते में जाता था और अब 1,250 रुपये महीने पेंशन खाते में जाता है।
कुल मिलाकर देखें तो सरकारी कर्मचारियों के पेंशन खाते में ज्यादा धनराशि जाती है, जिससे उनको कुछ ज्यादा पेंशन मिलने की संभावना है और निजी कर्मचारियों के पेंशन खाते में सिर्फ 1250 रुपये महीने जाते हैं, इसलिए उनकी मासिक पेंशन कुछ ज्यादा ही हास्यास्पद रहने की संभावना है।
2004 के बाद स्थाई हुए तमाम ऐसे सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जो 2004 के पहले ठेके पर काम कर चुके थे। उन्हें पेंशन की राशि इतनी कम मिल रही है कि सरकारी कर्मचारी निहायत डरे हुए हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद उनका क्या होगा।
उन्होंने कहा कि नई व्यवस्था कहती है कि जिन कर्मचारियों को रिश्वत मिल सकती है, वे अपना कुछ वैकल्पिक इंतजाम कर लें, क्योंकि सरकार उनसे 20-30 साल काम कराने के बाद भूखे मरने के लिए लावारिस छोड़ देने वाली है।
कानपुर इलाके में तीसरे चरण में मतदान की प्रक्रिया में शामिल रहे राज्य सिविल सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अखिलेश यादव द्वारा पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू किए जाने का मसला कर्मचारियों के बीच पूरे मतदान के दौरान चर्चा में रहा। प्रशिक्षण से लेकर मतदान कराने तक कहीं न कहीं लगातार यह मसला गूंजता रहा। हालांकि इस मसले पर मतदान होने या न होने को लेकर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया, लेकिन उन्होंने संकेत दिए कि अगर इस साल ड्यूटी पर तैनाती वाले कर्मचारियों का मतदान बढ़कर दोगुना हो गया है तो निश्चित रूप से इस योजना का असर है।
नर्सेज एसोसिएशन से जु़ड़े एक नेता कहते हैं कि हम पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली की मांग कर रहे हैं। हालांकि यह कहने पर कि सरकार उतने पैसे दे पाना व्यावहारिक नहीं मान रही है, उन्होंने कहा कि सरकार कुछ आगे बढ़े। जो कर्मचारी 60,000 रुपये महीने पर रिटायर हो रहा है, उसे अगले महीने से 1,200 रुपये पकड़ा देना बहुत बड़ा मजाक है। उन्होंने कहा कि कम से कम एक निश्चित सम्मानजनक राशि मिलनी चाहिए, जिससे सेवानिवृत्त व्यक्ति सम्मानपूर्वक भोजन, कपड़ा, इलाज की व्यवस्था कर सके।
भाजपा के समर्थक रहे राज्य सरकार के एक और कर्मचारी कहते हैं कि सरकार ने रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों की सीमा पर तैनाती कर दी है। उन्होंने कहा कि अब रिटायर होने पर हमको रूस-यूक्रेन के झगड़े में दिल की धड़कन बढ़ानी पड़ेगी, क्योंकि शेयर बाजार गिरा तो उसी के मुताबिक अगले महीने में हमारी पेंशन कम हो जाएगी। सरकार ने पेंशन का पैसा शेयर बाजार के हवाले करना शुरू कर दिया है।
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