कांग्रेस के लिए ज़्यादा ज़रूरी क्या होनी चाहिए- लोकसभा चुनाव की तैयारी या फिर भारत जोड़ो यात्रा-2 की तैयारी? यह सवाल इसलिए कि दोनों के लिए पार्टी को उतनी ही ताक़त और संसाधन लगाने की ज़रूरत होगी। समय भी क़रीब-क़रीब उतना ही लगेगा।
क़रीब 4 महीने में लोकसभा के चुनाव होंगे। यानी किसी भी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए इसकी तैयारी अब युद्ध स्तर पर करनी होगी। लेकिन इसी बीच कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा-2 की तैयारी में है। देश के पूर्व से लेकर पश्चिम तक क़रीब 2900 किलोमीटर की यात्रा तय किए जाने की योजना है। पिछली भारत जोड़ो यात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक क़रीब 3900 किलोमीटर की यात्रा में क़रीब पाँच महीने लगे थे। इसका मतलब है कि यदि नयी यात्रा में भी क़रीब 4 महीने का वक़्त लग सकता है। तो सवाल है कि आख़िर कांग्रेस पार्टी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहेगी या फिर चुनाव में? लोगों से चंदा जुटाकर काम चलाने की कोशिश में जुटी अपने संसाधन भारत जोड़ो यात्रा में लगाएगी या फिर लोकसभा चुनाव अभियान में? पार्टी के नेता राहुल की यात्रा का प्रबंधन करेंगे या फिर इंडिया गठबंधन के साथ रणनीति बनाएँगे? यदि भारत जोड़ो यात्रा को पहले की तरह सफल बनाना है तो क्या इसकी व्यवस्था इतनी आसान होगी?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा-2 को लेकर क्या कहा है। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल के अनुसार कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने गुरुवार को राहुल गांधी से दूसरी 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू करने का अनुरोध किया है। इस बार यात्रा पूर्व से पश्चिम तक होगी।
वेणुगोपाल ने कहा, 'सीडब्ल्यूसी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष ने शुरू में राहुल गांधी से कहा कि उन्हें पूरे भारत से पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से बड़े पैमाने पर राय मिल रही है कि राहुल गांधी को पूर्व से पश्चिम तक दूसरी यात्रा करनी चाहिए। उसके बाद सभी सीडब्ल्यूसी सदस्यों ने सर्वसम्मति से राहुल गांधी से यात्रा करने का अनुरोध किया।' कांग्रेस सांसद ने आश्वासन दिया कि यात्रा का विवरण और साजो-सामान सहित अंतिम निर्णय बिना किसी देरी के लिया जाएगा।
पहली भारत जोड़ो यात्रा
कांग्रेस ने दशकों में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर पिछले साल पदयात्रा जैसा आयोजन किया था। राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा पिछले साल 7 सितंबर को कन्याकुमारी में शुरू हुई और 30 जनवरी को श्रीनगर में ख़त्म हुई थी। उसमें 130 दिनों में 12 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों में 3,970 किलोमीटर की दूरी तय की गई थी।
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी का आशियाना कंटेनर रहा। यात्रा में शामिल बाक़ी नेता भी कंटेनर में ही रहे। कंटेनर में ही सोने के लिए गद्दे लगाए गए और टॉयलेट भी बनवाए गए थे। यात्रा गुजरने के दौरान हर रोज़ गाँव जैसी बसावट होती थी।
ऐसा इसलिए कि बड़ी संख्या में यात्रा के साथ चलने वाले यात्री होते थे। इसके लिए करीब 60 कंटेनर को आशियाने के रूप में तैयार किया गया था। ये कंटेनर राहुल की यात्रा के साथ नहीं चलते थे, बल्कि दिन के आख़िर में एक जगह पर पहुँच जाते थे और इन्हीं कंटेनरों में रात्रि विश्राम होता था।
कन्याकुमारी से शुरू होने वाली यात्रा हर रोज़ सुबह 7 बजे शुरू होती थी और बीच-बीच में आराम के बाद शाम 7 बजे तक यात्रा चलती थी। हर रोज़ करीब 22 किलोमीटर की यात्रा होती थी। राहुल के साथ क़रीब 300 यात्री होते थे और उनकी पूरी व्यवस्था कंटेनरों में होती थी। इसके अलावा स्थानीय कार्यकर्ता, समर्थक, नेता और अन्य लोग भी जुड़ते थे। इसी वजह से उनकी यात्रा में काफी ज़्यादा भीड़ होती थी। जम्मू कश्मीर में यात्रा पहुँचने तक पार्टी को हर रोज़ रणनीति बनानी पड़ती थी और इसके लिए पूरी व्यवस्था की जाती थी।
हालाँकि, इस यात्रा से कांग्रेस को बड़ा फायदा हुआ। कहा जाता है कि राहुल गांधी की इमेज एक गंभीर नेता के तौर पर बनी और विरोधियों द्वारा गढ़ी गई 'पप्पू' की इमेज से वह बाहर निकले। राहुल गांधी की उस यात्रा का प्रभाव कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में बाद के चुनावों के दौरान दिखाई दिया। इन राज्यों में कांग्रेस ने स्ट्राइक रेट और वोट शेयर में काफी बढ़ोतरी की। हाल के हुए चुनावों में तेलंगाना में उसे इसका फायदा मिलना बताया जा रहा है।
समझा जाता है कि इसी तरह के फायदे के लिए कांग्रेस पार्टी फिर से भारत जोड़ो यात्रा-2 शुरू कर रही है। लेकिन सवाल है कि पार्टी अपने संसाधन इस दौरान चुनाव प्रचार अभियान में कैसे झोंक पाएगी? इसके सामने बीजेपी जैसी पार्टी है, नरेंद्र मोदी-अमित शाह जैसे नेता हैं, आरएसएस जैसा जमीन से जुड़ा संगठन है। बीजेपी ने हाल के तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव जीते हैं और इस वजह से उसके हौसले बुलंद होंगे।
यह ठीक है कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही है और इस कारण बीजेपी के सामने भी कम चुनौती नहीं होगी, लेकिन इंडिया गठबंधन में ही कम चुनौतियाँ नहीं हैं। यदि कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में पूरी तरह व्यस्त होगी तो इंडिया गठबंधन को एकजुट रखने, आने वाली चुनौतियों से निपटने, रणनीति बनाने और इस सबसे बढ़कर देश भर की लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव अभियान को संभालने में कैसे सक्षम होगी? यदि इसका जवाब यह है कि यात्रा भी चुनाव अभियान का हिस्सा होगी तो सवाल है कि यह पूर्व से पश्चिम तक सिर्फ़ एक रूट से गुजरेगी, बाक़ी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार का क्या होगा?
क्या होगा यदि पार्टी चुनाव अभियान को संभालने में जुट जाए और भारत जोड़ो यात्रा को पहले की तरह संसाधन और सपोर्ट नहीं मिले? पहले की तरह समर्थन के बिना यदि भारत जोड़ो यात्रा फीकी रहती है तो क्या उसे चुनावी लाभ मिल पाएगा? कहीं कांग्रेस की दो नावों पर सवार होने जैसी स्थिति तो नहीं हो जाएगी? तब क्या दलील दी जाएगी कि राहुल गांधी की यात्रा के लिए पूरे भारत से पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से बड़े पैमाने पर राय मिली थी?
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