कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को टेरर फंडिग केस में बुधवार शाम को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। उन पर दस लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। एनआईए कोर्ट से जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा देने का आग्रह किया गया था। यासीन मलिक ने कहा कि वह अदालत से कुछ भी दया दिखाने की मांग नहीं करेंगे और फैसला अदालत पर छोड़ दिया। यासीन मलिक को सजा सुनाने के खिलाफ बुधवार को पूरा कश्मीर बंद था। कुछ स्थानों पर जनता और सुरक्षा बलों में झड़प की सूचनाएं हैं। लोगों ने यासीन मलिक की सजा के खिलाफ प्रदर्शन किया।
हालांकि यासीन मलिक को दो मामलो में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है लेकिन दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। यासीन मलिक इस सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।
अदालत की कार्यवाही में भाग लेने वाले वकील के मुताबिक यासीन ने अदालत में कहा कि अगर मैं 28 साल में किसी आतंकवादी गतिविधि या हिंसा में शामिल रहा हूं, अगर भारतीय खुफिया एजेंसियां यह साबित कर दें तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। मैं फांसी स्वीकार कर लूंगा। मैंने सात प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। मलिक ने कहा कि आखिर उन्हें भारतीय पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने क्यों वीजा दिया और पूरी दुनिया में जाने की छूट दी। अगर मैं किसी आतंकी गिरोह में होता तो मुझे अटल से वीजा मिलता। बाहर जाने दिया जाता। अलगावादी नेता यासीन मलिक ने कहा कि मैं महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति में यकीन रखता हूं और पिछले कई दशक से कश्मीर में अहिंसा की गतिविधियों में शामिल था। इसीलिए मैंने फैसला किया है कि मैं अदालत से रहम की भीख नहीं मांगूंगा।
अलगाववादी नेता को मौत की सजा देने की एनआईए की मांग पर उन्होंने कहा, मैं कुछ भी नहीं मांगूंगा. मामला इस अदालत में है और मैं इसे अदालत पर छोड़ता हूं। एनआईए के विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) ने अदालत को बताया कि कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए यासीन मलिक कुछ हद तक जिम्मेदार है। इस पर अदालत ने कहा, चलो इस सब में नहीं जाते हैं। तथ्यों पर टिके रहें। यह एक टेरर फंडिंग का मामला है। अदालत ने पहले उन्हें इस मामले में दोषी ठहराया था। एनआईए का कहना है कि मलिक ने टेरर फंडिंग मामले में भी अपना गुनाह कबूल कर लिया था।
एनआईए का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने बुधवार को मलिक के खिलाफ अधिकतम सजा की मांग की। हालांकि, अधिवक्ता अखंड प्रताप सिंह (अदालत द्वारा नियुक्त न्यायमित्र) ने न्यूनतम सजा (आजीवन कारावास) की मांग की। इस बीच सजा के बिंदु पर यासीन मलिक ने कहा, मैं पहले ही कोर्ट में अपनी बात रख चुका हूं और अब यह कोर्ट का विवेक है।
इससे पहले अदालत ने एनआईए को स्थानीय अधिकारियों की मदद से दोषी यासीन मलिक की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर एक हलफनामा देने को कहा था। मलिक को अपनी आय और संपत्ति (चल और अचल) के सभी स्रोतों का खुलासा करते हुए एक हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया गया है।
अदालत ने पहले यासीन मलिक को धारा 120बी आईपीसी, 121 आईपीसी, 121ए आईपीसी, 13 यूएपीए आर/डब्ल्यू 120बी आईपीसी, 15 यूएपीए आर/डब्ल्यू 120बी आईपीसी, 17 यूएपीए, 18 यूएपीए, 20 यूएपीए, 38 यूएपीए और 39 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया था। उन पर यूएपीए भी लगा हुआ है।
16 मार्च को, एनआईए कोर्ट ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के संस्थापक हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन, और यासीन मलिक, शब्बीर शाह, मसरत आलम और अन्य सहित कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था।
अदालत ने कश्मीरी राजनेता और पूर्व विधायक राशिद इंजीनियर, व्यवसायी जहूर अहमद शाह वटाली, बिट्टा कराटे, आफताब अहमद शाह, अवतार अहमद शाह, नईम खान, बशीर अहमद भट, उर्फ पीर सैफुल्ला और कई अन्य के खिलाफ आरोप तय करने का भी आदेश दिया था। है। .
अदालत ने कहा कि, बहस के दौरान, किसी भी आरोपी ने यह तर्क नहीं दिया कि व्यक्तिगत रूप से उनकी कोई अलगाववादी विचारधारा या एजेंडा नहीं है या उन्होंने अलगाव के लिए काम नहीं किया है या तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से अलग करने की वकालत नहीं की
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