सद्गुरु जग्गी वासुदेव की ईशा फाउंडेशन को बिना पर्यावरण क्लीयरेंस लिए निर्माण की इजाजत है। लाइव लॉ के मुताबिक यह बात केंद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में कही है। ईशा फाउंडेशन द्वारा कोयंबटूर के प्रतिबंधित इलाके में पक्के निर्माण को लेकर पर्यावरणवादी अपनी चिन्ता जताते रहे हैं।
लाइव लॉ के मुताबिक केंद्र ने सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को 2014 में अपने कोयंबटूर कैंपस में किए गए निर्माण कार्य के लिए पर्यावरण मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार के 2006 के एक पर्यावरण कानून के तहत कार्रवाई की थी।
जनवरी 2022 में, तमिलनाडु प्रशासन ने ईशा फाउंडेशन के निर्माण पर रोक लगा दी थी। उसने कहा था कि जग्गी वासुदेव के एनजीओ ईशा फाउंडेशन ने 2006 में केंद्र के पर्यावरण प्रभाव आकलन नोटिफिकेशन के तहत मंजूरी प्राप्त किए बिना निर्माण कार्य शुरू कर दिया था।
ईशा फाउंडेशन ने तमिलनाडु सरकार के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा था कि पर्यावरण संरक्षण संशोधन नियम 2014 ने शैक्षणिक संस्थानों को इस संबंध में छूट दे रखी है।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल आर शंकरनारायणन ने हाईकोर्ट को बताया कि ईशा फाउंडेशन शिक्षा को बढ़ावा देने वाला संस्थान होने के आधार पर छूट मिली हुई है। शंकरनारायणन ने कहा कि छूट के पीछे का मकसद इस एनजीओ का उत्पीड़न को रोकना और “संतुलन बनाना” था।मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस टी राजा और जस्टिस डी कृष्ण कुमार की बेंच मामले को बुधवार 28 सितंबर को सुनेगी।
द हिंदू अखबार के मुताबिक 11 जनवरी को, हाईकोर्ट ने कोयंबटूर के जिला पर्यावरण अभियंता को ईशा फाउंडेशन के खिलाफ मुकदमा चलाने से रोक दिया था। द हिन्दू के मुताबिक उस समय ईशा फाउंडेशन के वकील सीएस वैद्यनाथन ने दावा किया था कि राज्यस्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण भी शैक्षणिक संस्थानों सहित कुछ श्रेणियों के प्रतिष्ठानों को छूट देने के प्रावधान के बारे में स्पष्ट था।
हालांकि, तमिलनाडु सरकार के महाधिवक्ता आर. शुनमुगसुंदरम ने कहा था कि यह केंद्र को तय करना है कि 2014 के नियम 2006 के नोटिफिकेशन पर प्रभाव डाल सकते हैं या नहीं।
विवादों में जग्गी गुरु
जग्गी वासुदेव तमाम विवादों में घिरे रहे हैं। ताजा विवाद असम का है। जहां काजीरंगा नेशनल पार्क में उन्होंने रात को नेशनल पार्क के जंगल में खुद कुली जीप ड्राइव की। उनके बगल असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा बैठे थे। और पीछे असम के पर्यटन मंत्री जयंतीमल्ल बरुआ बैठ थे। इस पर असम के पर्यावरण प्रेमियों में पुलिस में इन तीनों की शिकायत देते हुए एफआईआर दर्ज करने और गिरफ्तारी की मांग की थी। विवाद बढ़ने पर ईशा फाउंडेशन ने कहा कि जग्गी वासुदेव असम सरकार के निमंत्रण पर गए थे। काजीरंगा नेशनल पार्क में एक और भी घटनाक्रम हुआ। वहां असम सरकार ने श्री श्री रविशंकर को योग आधारित शिविर लगाने की अनुमति दी। दोनों ही कार्यक्रमों में पर्यावरण नियम तोड़े गए। दुनिया के हर नेशनल पार्क में शाम 5 बजे के बाद फॉरेस्ट स्टाफ के अलावा किसी को जाने की जरूरत नहीं है। जबकि असम के सीएम सरमा का कहना है कि ऐसा कोई नियम नहीं है। फॉरेस्ट अधिकारी किसी को भी रात में जाने की इजाजत दे सकती हैं।
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