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समलैंगिक विवाहः सरकार ढीली पड़ी, कुछ अधिकार देने को तैयार, कमेटी बनेगी

लाइव लॉ के मुताबिक समलैंगिक विवाह (same sex marriage) के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत के सॉलिसिटर जनरल ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार इस बात की जांच करने के लिए एक समिति का गठन करने के लिए सहमत है कि क्या समान-लिंग वाले जोड़ों को कुछ कानूनी अधिकार दिए जा सकते हैं। हालांकि "विवाह" के रूप में उनके रिश्ते की कानूनी मान्यता का सवाल इसमें शामिल नहीं है।

पिछली सुनवाई पर, संविधान पीठ ने एसजी तुषार मेहता को सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा था कि क्या समलैंगिक जोड़ों को उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ अधिकार दिए जा सकते हैं। पीठ ने पूछा था कि क्या कोई कार्यकारी दिशानिर्देश जारी किया जा सकता है ताकि समलैंगिक जोड़े संयुक्त बैंक खाते खोलने, जीवन बीमा पॉलिसियों में भागीदार नामित करने, भविष्य निधि प्रदान करने आदि जैसे वित्तीय सुरक्षा उपाय कर सकें।

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आज जैसे ही संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की, एसजी मेहता ने पीठ को सूचित किया कि उन्होंने सुझावों के संबंध में निर्देश ले लिया है। उन्होंने कहा-

सरकार प़ॉजिटिव है। हमने जो फैसला किया है वह यह है कि इसके लिए एक से अधिक मंत्रालयों के बीच समन्वय की आवश्यकता होगी। इसलिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा।


-तुषार मेहता, एसजी सुप्रीम कोर्ट, 3 मई 2023, सोर्सः लाइव लॉ

एसजी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होने वाले वकील अपने सुझाव दे सकते हैं और उन समस्याओं से अवगत करा सकते हैं जिनका वे सामना कर रहे हैं और सरकार "जहां तक ​​​​कानूनी रूप से जरूरी है" उनका समाधान कर सकती है। मान लीजिए कि सरकार कहती है कि पीएफ में नामांकन परिवार के सदस्य या कोई और है, तो आपको किसी और चीज में जाने की जरूरत नहीं है।"

चीफ जस्टिस की सलाहः लाइव लॉ के मुताबिक CJI चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल और इस मामले में उपस्थित वकीलों की चर्चा के लिए सप्ताहांत में बैठक हो सकती है। CJI ने स्पष्ट किया कि इस कवायद से मामले में केंद्र सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रत्युत्तर तर्कों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

लाइव लॉ के मुताबिक सीजेआई ने टिप्पणी की है कि पिछली बार SG द्वारा किए गए सबमिशन से ऐसा महसूस होता है कि SG भी स्वीकार करतें है कि लोगों (समलैंगिक) को संबंध बनाने का अधिकार है और यह अधिकार एक स्वीकृत सामाजिक वास्तविकता है। तो ठीक उसी तरह बैंक खाते, बीमा पॉलिसी - ऐसे व्यावहारिक मुद्दे हैं जिन्हें सरकार इस कम्युनिटी के बारे में हल कर सकती है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस मामले में पर्याप्त संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं, और इसलिए सरकार द्वारा केवल "प्रशासनिक निर्देश" भर देने से मुद्दों को पूरी तरह से हल नहीं किया जा सकता है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा - 

वे विवाह का दर्जा देने के लिए अनिच्छुक हैं। वे समलैंगिक साहचर्य से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को शादी के बिना हल करने के भी इच्छुक नहीं हैं। इसलिए, बेंच के क्या सुझाव है, क्या किया जा सकता है, उस दिशा में कुछ प्रयास या कदम उठाया जाएं। तो आइए हम बिना किसी पूर्व धारणा के उसे स्वीकार करें।


-जस्टिस संजय किशन कौल, सुप्रीम कोर्ट, 3 मई 2023, सोर्सः लाइव लॉ

लाइव लॉ के मुताबिक बहरहाल, CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि अदालत समलैंगिक जोड़ों के विवाह के अधिकार के संबंध में संवैधानिक मुद्दे का फैसला करेगी, चाहे सरकार जो भी रियायतें दे।

लाइव लॉ के मुताबिक बहस के दौरान वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि मर्यादा का शादी से कोई लेना-देना नहीं है। मेरी शादी रजिस्टर्ड नहीं है। तो क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है? मैं किसी कानून से किसी मान्यता की तलाश नहीं कर रहा हूं। सेक्स कपल्स ने कभी शादी की मांग नहीं की। वो कहते हैं कि शादी गरिमा के बारे में नहीं है, जो लोग विधवा हैं वे गरिमा के बिना नहीं हैं। 

इस पर चीफ जस्टिस ने जवाब दिया कि सेम सेक्स जोड़े का अस्तित्व कहीं और से आयात नहीं किया गया है और वो भी समाज का एक हिस्सा है। बात यह नहीं है कि अकेले लोगों की कोई गरिमा नहीं है।... सवाल पसंद का है। 

समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अब अगली सुनवाई 9 मई को होगी। समझा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट में गर्मी की छुट्टियां होने से पहले इस पर कोई न कोई फैसला आ जाएगा।
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क़मर वहीद नक़वी
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