पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद को समलैंगिक विवाह लाने पर निर्णय लेना चाहिए। इसने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों को रद्द करने या उसमें बदलाव करने से इनकार कर दिया था।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उनगे गोद लेने के अधिकार के सवाल पर भी सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया है। जानिए, अदालत ने क्या कहा।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दे दिया है। जानिए, इस फ़ैसले के दौरान अदालत ने कौन-कौन सी बड़ी बातें कहीं।
सुप्रीम कोर्ट मंगलवार 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह पर फैसला सुनाने वाला है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि दुनिया के बाकी मुल्कों में इस मुद्दे पर क्या स्थिति है।
समलैंगिक विवाह को लेकर केंद्र सरकार का रुख बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हल्का लचीला दिखा। केंद्र सरकार ने कहा कि वो कुछ कानूनी अधिकार देने के लिए एक कमेटी बनाएगी। कोर्ट में क्या हुआ, जानिएः
हिंदू धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष अवधेशानंद ने लिखा, "समलैंगिक विवाह को वैध बनाना भारत जैसे देश में गंभीर विसंगतियों को पैदा करके। इससे एक राष्ट्र की दिव्य वैदिक मान्यताओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और सामाजिक विकास के विभिन्न तरेकों को नष्ट करके मानव अस्तित्व के लिए हानिकारक साबित होगा।
स्वीकार- द रेनबो पैरेंट्स ने अपने पत्र में लिखा कि “हम अपने बच्चों और दामादों को अपने देश में विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने रिश्ते के लिए अंतिम कानूनी स्वीकृति प्राप्त करने की मांग रखते हैं।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने रविवार 23 अप्रैल को एक प्रस्ताव आम राय से पास कर समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध किया है। बार काउंसिल का यह प्रस्ताव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्योंकि केंद्र सरकार के भी इसके पक्ष में नहीं हैं। तमाम धार्मिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच का रुख इसके पक्ष में लग रहा है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज को लेकर बहस चल रही है। सरकार सहित तमाम धार्मिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। विरोध का आधार परिवार नामक इकाई और लिंग निर्धारण करने के तरीकों को बनाया गया है।
केंद्र की मोदी सरकार ने कहा कि 'सेम सेक्स मैरिज एक अर्बन एलिटिस्ट कॉन्सेप्ट (यानी शहर के कुलीन लोगों की अवधारणा) है जिसका देश के सामाजिक लोकाचार से कोई लेना देना नहीं है।
विवाह से संबंधित सभी व्यक्तिगत और वैधानिक कानून केवल पुरुष और महिला के बीच बने संबंधो को ही मान्यता देते हैं। जबकि उसका स्पष्ट विधायी आधार है, तो दोबारा से कानून बनाने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती।