उत्तर पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली की अदालत ने एसएचओ के खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया है। यह मामला दंगों के दौरान पांच लोगों से मारपीट करने और उन्हें राष्ट्रगान के लिए मजबूर करने का है। अदालत ने इसे हेट क्राइम (घृणा अपराध) कहा है।
इस घटना का वीडियो वायरल हुआ था। उस वीडियो में कुछ पुलिसकर्मियों को मोहम्मद वसीम सहित पांच लोगों को पीटते हुए दिखाया गया था, जिसमें पुलिस वाले उन लोगों से राष्ट्रगान और वंदे मातरम गाने को कह रहे थे। न गाने पर पीट रहे थे। इसकी शिकायत मोहम्मद वसीम ने की थी।
कड़कड़डूमा कोर्ट के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी उद्भव कुमार जैन ने पुलिस को आईपीसी की धारा 295 ए (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 342 (गलत तरीके से कारावास) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। यह एफआईआर फरवरी-मार्च 2020 में ज्योति नगर पुलिस स्टेशन में SHO पद संभालने वाले अधिकारी पर दर्ज करने को कहा है।
18 जनवरी के इस आदेश में कहा गया है कि "मौजूदा SHO इस मामले में जांच करने के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी, जो इंस्पेक्टर रैंक से नीचे का न हो, को नियुक्त करे और जांच के दौरान कथित अपराधों में शामिल अन्य अज्ञात पुलिस अधिकारियों की भूमिका का पता लगाए।"
पुलिस को 11 फरवरी तक जांच रिपोर्ट जमा करनी है। लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों ने शुक्रवार 31 जनवरी को कहा कि अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और कानूनी विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
कोर्ट के आदेश में एसएचओ की भूमिका पर टिप्पणी की गई है। कोर्ट ने कहा “स्पष्ट रूप से, SHO पुलिस स्टेशन ज्योति नगर, तोमर (पूरा नाम नहीं दिया गया) और अन्य अज्ञात पुलिस अधिकारी शिकायतकर्ता/पीड़ित के खिलाफ घृणा अपराधों में शामिल थे। उन्हें किसी भी आड़ में बचाया नहीं जा सकता। यह नहीं कहा जा सकता कि उनके द्वारा किए गए कथित अपराध उनके आधिकारिक कर्तव्य निभाने के मकसद से किए गए थे।''
शिकायतकर्ता ने पहले पुलिस के पास अर्जी दी कि उस एसएचओ और पुलिस कर्मियों पर केस दर्ज किया जाए। लेकिन पुलिस ने जब नहीं सुना तो वसीम ने अपने वकील महमूद प्राचा के जरिये अदालत का दरवाजा खटखटाया। ये वही महमूद प्राचा हैं जो ईवीएम धांधली के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
वसीम ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि जब वह दंगों के बीच अपनी मां की तलाश के लिए 24 फरवरी, 2020 को दोपहर 3:30 बजे घर से निकले, तो उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों के साथ सड़क पर भगवा गमछा पहने लोगों के एक समूह को देखा। शिकायत के मुताबिक वसीम ने पूर्व विधायक कपिल मिश्रा, जो अब भाजपा में हैं, को हाथ में लाउडस्पीकर लिए हुए भी देखा। आरोप है कि मिश्रा ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि इसके बाद, SHO ने अपने कर्मियों से कहा कि वसीम को ऐसी जगह फेंक दो जहां अन्य घायल लोग पड़े हों। अदालत ने वसीम की शिकायत पर भरोसा किया है।
अदालत ने पाया कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर), जो उसने मांगी थी, कपिल मिश्रा की कथित भूमिका पर चुप थी। जूडिशल मैजिस्ट्रेट जैन ने कहा, "...ऐसा लगता है कि जांच अधिकारी पुलिस अधिकारियों को लेकर अधिक चिंतित था। या तो वह कथित आरोपी नंबर 3 (कपिल मिश्रा) के खिलाफ जांच करने में विफल रहा, या उसने उक्त आरोपी के खिलाफ आरोपों को छिपाने की कोशिश की।" .
कपिल मिश्रा की कथित भूमिका पर टिप्पणी
अदालत ने कहा, ''सांप्रदायिक सद्भाव को प्रभावित करने वाले बयान इस देश में किसी भी नागरिक के लिए अलोकतांत्रिक और अनावश्यक हैं। जहां धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धांत संविधान में बुनियादी रूप समाहित हैं। और उनकी बहुत अहमियत है।''
फरवरी 2020 में, पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगों के बीच, दिल्ली पुलिस कर्मियों के एक समूह को कैमरे पर फैज़ान नामक एक व्यक्ति सहित पांच लोगों को पीटते और गाली देते हुए देखा गया, जब वे जमीन पर लेट गए तो उन्हें लाठियों से मारा गया। बाद में फैजान की मौत हो गई थी। उनके मामले में दिल्ली पुलिस ने पिछले साल जुलाई में दो पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की थी। हाई कोर्ट ने उसी महीने फैजान की मौत की जांच के लिए सीबीआई को निर्देश दिया था।
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