दुनिया में तीन वैक्सीन को आपातकालीन मंजूरी मिलने से कोविड—19 महामारी से मानव जाति को छूटकारे के आसार तो बने हैं मगर चुनिंदा देशों द्वारा वैक्सीन की जमाखोरी से पिछड़े देशों के लंबे समय तक पीड़ित रहने की आशंका भी बढ़ी है। अभी 10 वैक्सीन जल्द ही बाज़ार में आने को हैं मगर उनकी क़रीब 10 अरब से अधिक खुराकों की अग्रिम बुकिंग हो रही है। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समर्थ देशों से 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' की इस संकुचित प्रवृत्ति से उबरने और ग़रीब और पिछड़े देशों के नागरिकों का भी ध्यान रखने की अपील की है।
दुनिया की कुल आबादी में महज 13 फ़ीसदी जनसंख्या वाले इन देशों ने वैक्सीन की अगले साल उपलब्ध होने वाली कुल खुराकों में से आधी मात्रा की अग्रिम बुकिंग कर ली है। अमेरिका सहित अनेक समर्थ देशों ने तो अपने नागरिकों के लिए पाँच से छह खुराक बुक कर ली हैं जबकि अधिकतम आधी आबादी को दो खुराक के टीकाकरण से ही लोगों में महामारी के लिए प्रतिरोध क्षमता पैदा हो जाएगी। अमेरिका की आबादी 32.82 करोड़ है मगर उसने वैक्सीन की 100 करोड़ से अधिक खुराक की पेशगी दी है। यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की कुल आबादी 44.58 करोड़ है और उसने भी वैक्सीन की 158 करोड़ से अधिक खुराक अग्रिम बुक कर लीं।
अलबत्ता भारत ने लगभग 135 करोड़ आबादी के बावजूद 160 करोड़ खुराक की ही पेशगी दी है। नेपाल और पेरू जैसे कम आबादी वाले देशों द्वारा वैक्सीन की अग्रिम बुकिंग के बावजूद अफ्रीका के ज़्यादातर देशों ने ऐसी पहल नहीं की।
भारत द्वारा आरक्षित वैक्सीन की खुराक कुल आबादी के क़रीब 60 फ़ीसदी यानी 75 से 80 करोड़ लोगों के काम आएगी। यहाँ फ़ाइज़र और कोवैक्सीन ने वैक्सीन के आपात प्रयोग की अनुमति मांगी है। रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन के भी आपात मंजूरी मांगने के आसार हैं। भारत में ढाई अरब से अधिक वैक्सीन बनाने की व्यवस्था एवं क्षमता उपलब्ध है।
इसलिए महामारी के वैश्विक उन्मूलन में तो हमारा योगदान महत्वपूर्ण रहेगा मगर घरेलू मोर्चे पर वैक्सीन को शून्य से 20 से 80 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान पर लाने—ले जाने और उसके भंडारण की समुचित व्यवस्था अभी तक नहीं हुई।
वैक्सीन के लिए कांच की शीशियों और सीरिंजों के उत्पादन का ऑर्डर भी अभी तक निर्माताओं को नहीं मिला है। इसके उलट अमेरिका में ये औपचारिकताएँ अक्टूबर में ही पूरी हो चुकीं।
कोविड—19 महामारी के जल्द टीकाकरण की घोषणा के बावजूद मोदी सरकार की तैयारी मौजूदा टीकाकरण तंत्र के सहारे ही महामारी के टीके लगाने की लग रही है। वैक्सीन खरीदने, उसके भंडारण तथा लाने—ले जाने की व्यवस्था पर सरकार ने अभी तक चुप्पी ही लगा रखी है।
भारत के गर्म जलवायु में वैक्सीन को असरदार बनाए रखने के लिए लगातार शून्य से 20 से 80 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान पर रखना होगा। देश में सालाना छह करोड़ टीकों के भंडारण एवं लाने—ले जाने की कोल्ड चेन है। यह बच्चों एवं गर्भवती माताओं के टीकाकरण के लिए है मगर अगले आठ महीने में 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण का घोषित लक्ष्य इससे पूरा कैसे होगा? इसमें वैक्सीन भंडारण के 29,000 केंद्र, 89,000 डीप फ्रीजर एवं अन्य उपकरण, 736 ज़िला वैक्सीन भंडार तथा वैक्सीन के थोक भंडारण के लिए 258 फ्रीजर अथवा एसी लगे ठंडे कमरों का बुनियादी ढाँचा है।
वैक्सीन लाने—ले जाने के लिए रेफ्रिजरेटेड वाहनों की ठंडक और संख्या भी बढ़ानी होगी। वैक्सीन को प्रधानमंत्री की इच्छानुसार सभी ब्लाॅक मुख्यालयों तक पहुँचाने के लिए उसे वहाँ ठंडा रखने की व्यवस्था चाहिए जो अभी तक नहीं है। इसलिए महामारी का टीकाकरण जल्द शुरू करने संबंधी उनके बयान से साफ़ है कि वैक्सीन का प्रयोग फ़िलहाल शहरों और निर्धारित तापमान वाली कोल्ड चेन से जुड़े क्षेत्रों तक सीमित रहेगा।
देश के दूरदराज अंचलों को कम से कम छह महीने इंतज़ार करना पड़ सकता है। क्योंकि दूरदराज क्षेत्रों में वैक्सीन को समुचित ठंडे तापमान पर ले जाने के लिए जिन इंसुलेटेड बाॅक्स की आवश्यकता है उनकी उत्पादक कंपनी से भारत सरकार अभी तो बातचीत शुरू ही कर रही है।
यह कंपनी बी मेडिकल सिस्टम्स, लक्जमबर्ग की है और इसके इंसुलेटेड बाॅक्स वैक्सीन को ठंडा रखने के लिए बिजली के अलावा मिट्टी के तेल और सोलर पैनल से भी ऊर्जा ग्रहण कर सकेंगे। इस कंपनी के अलावा हालाँकि जर्मनी की कंपनी वैक्यूटेक को भी इसमें महारत हासिल है मगर भारत सरकार ने फ़िलहाल लक्जमबर्ग की कंपनी से ही बात शुरू की है। बी मेडिकल सिस्टम्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लक प्रोवोस्ट एवं उपमुख्य कार्यकारी अधिकारी जैसल दोशी की भारत में नीति आयोग से बातचीत शुरू हुई है। जैसल दोशी गुजराती मूल के हैं।
अब होगी तैयारी?
अनुमान है कि केंद्र सरकार इस कंपनी से समझौते के बाद इंसुलेटेड बाॅक्स का आयात शुरू करेगी। साथ ही साथ इंसुलेटेड बाॅक्स बनाने के लिए गुजरात में ही कारखाना लगाने को प्रोत्साहित किया जाएगा। बी मेडिकल सिस्टम्स के इंसुलेटेड बाॅक्स में वैक्सीन को शून्य से 80 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान पर रखने की क्षमता बताई जा रही है। माना जा रहा है कि नीति आयोग में विषेशज्ञ दल से बैठक में रजामंदी के बाद प्रोवोस्ट एवं दोशी पुणे, अहमदाबाद एवं हैदराबाद में उन तीनों कंपनियों में भी बातचीत कर सकते हैं जहाँ वैक्सीन निर्माण का जायजा लेने पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी गए थे। साथ ही टीकाकरण के लिए एक लाख प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की भी आवश्यकता है।
पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया, अहमदाबाद में जायडस बायोटेक पार्क एवं हैदराबाद में भारत बायोटेक कंपनियों की प्रयोगशाला में करोड़ों की तादाद में कोविड-19 महामारी की वैक्सीन बना कर भारत सहित पूरी दुनिया को दी जाएंगी। शोधकर्ताओं के मुताबिक़, सीमित वैक्सीन निर्माण क्षमता के कारण दुनिया की कुल आबादी को तीन से चार साल में उपलब्ध हो पाएगी। असमर्थ मुल्कों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोवैक्स अलायंस के ज़रिए सभी को समान रूप से वैक्सीन उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है।
इस वैश्विक तंत्र में समृद्ध और मध्यम आय वाले देश पैसा देंगे और कम आय वाले देशों को लाभ मिलेगा। यूरोपीय देशों, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन एवं वैलकम ट्रस्ट ने आठ अरब अमेरिकी डॉलर इस काम के लिए जमा किए हैं।
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