मामला क्या है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2010 में इज़रायली कंपनी से क़रार हुआ, जिसके तहत 5 रोटोमैक्स इंजन खरीदे गए और हर इंजन के लिए 87.45 लाख रुपए की कीमत तय हुई।डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन की प्रयोगशाला एअरोनॉटिकल डेवलपमेंट इस्टैमलिशमेंट ने ठीक वही इंजन 24.30 लाख में खरीदे थे। यानी भारतीय वायु सेना के लिए खरीदे गए इंजन की कीमत तीन गुणे अधिक थी।
सरकार को घाटा
इससे इज़रायली कंपनी को 3.16 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस इंजन की कीमत 21-25 लाख रुपए है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि इज़रायली कंपनी ने तीन गुणी कीमत लेने के बावजूद बग़ैर सर्टिफिकेट वाला इंजन ही भारतीय वायु सेना को दे दिया।
अपग्रेडेशन में देरी
सीएजी ने इस पर भी चिंता जताई है कि 2002 में मीडियम लिफ़्ट एमआई-17 हेलिकॉप्टर के अपग्रेडेशन पर फ़ैसला हुआ, लेकिन 18 साल बाद भी वह काम अब तक नहीं हुआ है। सीएजी ने कहा है, 'इससे हेलिकॉप्टर सीमित क्षमता के साथ ही काम करते हैं और इससे उनके कामकाज की तैयारियों पर बुरा असर पड़ा है।'सीएजी ने रुख कड़ा करते हुए कहा है कि 'इसी तरह 90 एमआई 17 हेलिकॉप्टर को अपग्रेड करने में 15 साल लग गए, वह काम इज़रायली कंपनी की मदद से 2017 में पूरा हुआ।'
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