आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में गिरफ़्तार पत्रकार अर्णब गोस्वामी की रिहाई पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी ने लोगों को ध्यान अपनी ओर खींचा है। कोर्ट ने 'व्यक्तिगत आज़ादी' की सुरक्षा की बात कही और आगे कहा कि अगर शीर्ष अदालत आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो यह विनाश के रास्ते पर ले जाने वाला होगा।
मी लॉर्ड, ‘व्यक्तिगत आज़ादी’ सिर्फ़ अर्णब के लिए क्यों?
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- 13 Nov, 2020

सुप्रीम कोर्ट न्याय की सर्वोच्च संस्था है और उसकी गरिमा का देश का हर व्यक्ति सम्मान करता है। लेकिन उससे इतना तो पूछा जा सकता है कि 'व्यक्तिगत आज़ादी' का जो अधिकार अर्णब गोस्वामी को हासिल है, वो वरवर राव, स्टेन स्वामी, उमर खालिद और अन्य लोगों को हासिल क्यों नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि सभी हाई कोर्ट के लिए यह संदेश है कि वे 'व्यक्तिगत आज़ादी' की सुरक्षा को बरकरार रखने के लिए अपने न्यायिक अधिकारों का प्रयोग करें। क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने अर्णब की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।