बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ख़राब प्रदर्शन के कारण आलोचनाओं का सामना कर रही कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता अब आपस में भिड़ रहे हैं। आलोचकों के अलावा ख़ुद कांग्रेस ने भी यह माना है कि उसके ख़राब प्रदर्शन के कारण ही महागठबंधन सत्ता की दौड़ में पिछड़ गया और एनडीए को सत्ता में आने का मौक़ा मिल गया। सीधे तौर पर बिहार में महागठबंधन की हार का जिम्मेदार कांग्रेस को बताया जा रहा है।
जमकर हुआ हंगामा
बिहार के लचर प्रदर्शन से तो पार्टी आलाकमान परेशान है ही, पार्टी नेताओं की आपसी गुटबाज़ी के कारण भी संगठन को नुक़सान हो रहा है। कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने के लिए पटना स्थित सदाकत आश्रम में बुलाई गई विधायकों की बैठक में दो नेताओं के समर्थक आपस में उलझ पड़े। इस दौरान काफी देर तक हंगामा होता रहा और गाली-गलौज भी हुई। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। यह सब पर्यवेक्षक बनकर आए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मौजूदगी में हुआ।
#WATCH | Bihar: A ruckus erupted at Congress office in Patna during Congress Legislative Party meeting (CLP) today; Chhattisgarh CM & party leader Bhupesh Baghel was also present. pic.twitter.com/B2DQBHkezC
— ANI (@ANI) November 13, 2020
न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, जब विधायक दल के नेता के चुनाव की बारी आई तो नवनिर्वाचित विधायक सिद्धार्थ सिंह और विजय शंकर दुबे के समर्थकों में हाथापाई और धक्का-मुक्की शुरू हो गयी। दोनों के समर्थकों ने अपने-अपने नेता के समर्थन में जमकर नारेबाज़ी की।
घटना का वीडियो वायरल होने के बाद ख़ुद बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा सामने आए और उन्होंने इसे नज़रअंदाज करने की कोशिश की। झा ने एएनआई से कहा, ‘मुझे हंगामे के बारे में नहीं पता, मैं इस मामले का संज्ञान लूंगा।’
दो विधायकों के ग़ैर-हाज़िर रहने को लेकर उन्होंने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। झा के मुताबिक़, एक विधायक अबीदुर रहमान की तबीयत ठीक नहीं है जबकि दूसरे विधायक मनोहर प्रसाद कल ही उनसे मिले थे लेकिन वह आज नहीं आए।
सवर्ण कार्ड खेला
काफी झगड़े के बाद कांग्रेस ने इन दोनों ही नेताओं की दावेदारी को दरकिनार कर दिया और अजीत शर्मा को विधायक दल का नेता बनाया है। पार्टी ने ऐसा करके एक बार फिर सवर्ण कार्ड खेला है। इससे पहले उसने जब मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था तो तब भी माना गया था कि यह कोशिश सवर्ण मतदाताओं को फिर से अपने पाले में लाने की है। हालांकि चुनाव नतीजों से नहीं लगता कि उसका यह कार्ड चला है।
नेताओं की दी जिम्मेदारियां
भूपेश बघेल और पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अविनाश पांडे ने शर्मा के नाम की घोषणा की। दोनों नेताओं ने पार्टी विधायकों के साथ देर तक बातचीत भी की। इसके अलावा राजेश कुमार राम को चीफ व्हिप, छत्रपति यादव और प्रतिमा कुमारी दास को डेप्युटी चीफ़ व्हिप की जिम्मेदारी दी गई है। एक अन्य विधायक आनंद शंकर दुबे को विधायक दल का कोषाध्यक्ष बनाया गया है।दो विधायकों के विधायक दल की बैठक में नहीं आने को लेकर बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौर ने कहा कि कांग्रेस के सभी 19 विधायक पार्टी के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने विधायकों में टूट की ख़बरों को अफ़वाह बताया। उन्होंने कहा कि दोनों ही विधायक तेजस्वी यादव के द्वारा बुलाई गई बैठक में मौजूद थे।
बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस के विधायकों को बीजेपी तोड़ सकती है। मध्य प्रदेश, गुजरात से लेकर गोवा और कई राज्यों में ऐसा हो चुका है। आरजेडी भी इस आशंका से सहमी हुई है।
महागठबंधन को लगेगा झटका
अगर कांग्रेस के विधायक टूट कर बीजेपी में जाते हैं तो इससे सीधा झटका महागठबंधन को लगेगा। क्योंकि महागठबंधन के पास भी सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 122 विधायकों से सिर्फ 12 विधायक कम हैं। ऐसे में 125 विधायकों वाले एनडीए में 4 विधायक भी अगर कभी बग़ावत करते हैं तो सत्ता उसके हाथ से निकल जाएगी और महागठबंधन को मौक़ा मिल सकता है।
हालात दोनों तरफ एक जैसे हैं। लेकिन कई राज्यों में जिस तरह कांग्रेस के विधायक थोकबंद ढंग से टूटे हैं, ऐसे में बिहार में भी यह आशंका जताई जा रही है।
कांग्रेस विधायकों के टूटने से बीजेपी को सियासी फायदा यह मिलेगा कि महागठबंधन कमजोर हो जाएगा और उसके लिए बहुमत का आंकड़ा जुटाने की संभावनाएं और कम हो जाएंगी। दूसरी ओर एनडीए की सरकार 5 साल तक आसानी से चल सकेगी।
वेंटिलेटर पर कांग्रेस!
चुनाव नतीजे बताते हैं कि एक वक़्त बिहार में बड़ी ताक़त रह चुकी कांग्रेस वहां आज लगभग वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी है। कांग्रेस इस बार उससे बहुत कम जनाधार रखने वाले वाम दलों से भी स्ट्राइक रेट में बहुत ज़्यादा पिछड़ गई है। उसने महागठबंधन के साथ मिलकर 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और वह सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल कर पाई है। उसकी तुलना में वाम दलों ने शानदार प्रदर्शन किया, जो सिर्फ 29 सीटों पर लड़कर 16 सीटें महागठबंधन को जिताने में सफल रहे। कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 27 फ़ीसदी और वाम दलों का 55 फ़ीसदी रहा।
तारिक़ अनवर ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा था, ‘महागठबंधन में शामिल आरजेडी, वाम दलों का प्रदर्शन हमसे कहीं बेहतर रहा है और अगर हमारा प्रदर्शन भी उनके जैसा होता तो आज बिहार में महागठबंधन की सरकार होती।’
एनडीए की बैठक कल
दूसरी ओर, सरकार गठन की रणनीति में जुटे बिहार एनडीए के घटक दलों के प्रमुख नेताओं की शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर बैठक हुई। बैठक के बाद नीतीश ने पत्रकारों को बताया कि 15 नवंबर को दिन में 12.30 बजे एनडीए के घटक दलों के विधायकों की बैठक होगी। शुक्रवार शाम को ही नीतीश ने गवर्नर फागू चौहान को अपना इस्तीफ़ा भेज दिया था।
बिहार के राजनीतिक गलियारों से ख़बरें आ रही हैं कि सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के इच्छुक नहीं हैं। इसके पीछे कारण जेडीयू के ख़राब प्रदर्शन को बताया गया है। हालांकि बीजेपी उन्हें मनाने की कोशिश में जुटी है।
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