कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में अब तक सफलता के बड़े-बड़े दावे करती रही सरकार ने पहली बार माना है कि कोरोना से लड़ने में ग़लती हुई होगी। इस बात को बीजेपी के कोई छोटे-मोटे नेता ने नहीं माना है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के सबसे विश्वास पात्र व्यक्ति और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने माना है। उन्होंने सोमवार को कहा कि 'हमसे कुछ ग़लती हुई होगी, हम कहीं कम पड़ गए होंगे'। हालाँकि इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि उनकी निष्ठा सही थी।
गृह मंत्री की यह सफ़ाई उस संदर्भ में है जिसमें सरकार पर पूरे कोरोना मामले से निपटने में विफलता के आरोप लगते रहे हैं। चाहे वह कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पहले से तैयारी का मामला हो या फिर बिना तैयारी के लॉकडाउन का फ़ैसला। प्रवासी मज़दूरों के दूसरे राज्यों व शहरों में फँसे होने, भूखों रहने की नौबत आने और सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के मामले में भी सरकार की ख़ूब किरकिरी हुई। तब्लीग़ी जमात के मामले में धार्मिक एंगल देने को लेकर भी आलोचना होती रही है। और अब जिस तरह से लॉकडाउन हटाया जा रहा है उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
ये सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं कि जब क़रीब 600 कोरोना मरीज़ थे और हर रोज़ 40-50 केस आ रहे थे तो लॉकडाउन किया गया था और अब जब ढाई लाख से ज़्यादा पॉजिटिव मरीज़ आ चुके हैं और हर रोज़ क़रीब 10 हज़ार नये मरीज़ सामने आ रहे हैं तो लॉकडाउन को हटाया जा रहा है। हालाँकि एक सफ़ाई यह भी दी गई है कि 24 मार्च को इसलिए लॉकडाउन लगाया गया था कि तैयारी नहीं थी और अब लॉकडाउन के दौरान तैयारी का मौक़ा मिल गया है।
सवाल है कि 30 जनवरी को भारत में पहला मामला आया था तब से क्या तैयारी नहीं की गई थी? और अब यदि ऐसी तैयारी हो गई है कि लॉकडाउन हटाया जा सकता है तो अस्पतालों की हालत क्यों नहीं सुधरी है और ख़बरें ऐसी क्यों आ रही हैं कि अस्पताल बेड कम पड़ने की बात कहकर मरीज़ों को भर्ती नहीं ले रहे हैं?
ऐसे सवालों के बीच ही गृह मंत्री ने जो सोमवार को बात स्वीकार की है वह सामान्य बात नहीं है। विपक्ष पर निशाना साधते हुए अमित शाह ने कहा, 'कुछ वक्रदृष्टा लोग हैं, जो विपक्ष के लोग हैं... मैं उनको सवाल पूछना चाहता हूँ... हमारी तो कहीं चूक भी हुई होगी, पर हमारी निष्ठा बरोबर थी। हमसे ग़लती हुई होगी, हम कहीं कम पड़ गए होंगे, कुछ नहीं कर पाए होंगे। मगर आपने क्या किया। कोई स्वीडन में बात करता है, कोई अंग्रेज़ी में, देश की कोरोना की लड़ाई लड़ने के लिए। कोई अमेरिका में बात करता है। आपने क्या किया, ये हिसाब तो जनता के देश को दो जरा। मैं हिसाब देने आया हूँ। नरेंद्र मोदी सरकार ने, जैसे ही कोरोना की आफ़त आई, देश के 60 करोड़ लोगों के लिए 170000 करोड़ का पैकेज देश की जनता के लिए दिया। आप हमसे सवाल पूछते हैं? इंटरव्यू के अलावा, कांग्रेस पार्टी ने कुछ नहीं किया।'
लॉकडाउन शुरू होने के बाद से प्रवासी मज़दूरों को जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ा और जिस तरह की तसवीरें और वीडियो सामने आए, वे रूह कँपा देने वाले थे। इस पर सरकार की चौतरफ़ा आलोचना होती रही। सरकार की तरफ़ से प्रवासी मज़दूरों पर ज़्यादा बयान नहीं आए। जब मई में श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने का फ़ैसला लिया गया तो सरकार की तरफ़ से बयान भी आने शुरू हुए। किराए को लेकर विवाद भी हुआ।
शायद उन्हीं आलोचनाओं के संदर्भ में अमित शाह ने सोमवार को माना कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। गृह मंत्री ने कहा, “ओडिशा में भी 3 लाख से अधिक लोग घर लौटे। उन्होंने निश्चित रूप से कठिनाई का सामना किया है। मैंने भी यह देखा है। इस पर दुख है। यहाँ तक कि हमारे प्रधानमंत्री को भी दुख हुआ है। मोदीजी ने 1 मई को श्रमिक ट्रेनें शुरू कीं। सभी शिविरों से रेलवे स्टेशनों तक पहुँचने के लिए सिटी बसें और अंतरराज्यीय बसें चलवाई गईं। राज्य सरकारों ने ख़र्च उठाया। रेलवे ने उन्हें भोजन और पानी दिया। जब भी वे रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते थे, राज्य सरकारें उन्हें क्वॉरेंटीन सेंटरों के अंदर ले जाती थीं, उन्हें उनके गाँवों में ले जाती थीं। भोजन और रहने की व्यवस्था की गई, और उन्हें 1,000-2,000 रुपये दिए गए ... राज्यों और केंद्र ने इस समस्या के बारे में सोचा है। और यही कारण है कि 1.25 करोड़ लोग अपनी पत्नी, बच्चों और बूढ़े माता-पिता के साथ सुरक्षित घर पहुँच गए हैं।’
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