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हेल्पलाइन पर 2 माह में आए मानसिक तनाव के 45 हज़ार फ़ोन; एक और संकट!

जैसी कि पहले से आशंका थी कोरोना वायरस और लॉकडाउन से लोगों की मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कतें बढ़ेंगी, अब इसके आँकड़े भी आने लगे हैं। कोरोना वायरस को देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए महाराष्ट्र में गठित 'बीएमसी- एम पावर वन ऑन वन' हेल्पलाइन पर दो महीने में 45 हज़ार लोगों ने संपर्क किया है। इसमें से 52 फ़ीसदी तो ऐसे लोग थे जो लॉकडाउन के बाद की स्थिति को लेकर चिंतित थे। 

कोरोना वायरस के बाद मानसिक तनाव की ख़बरें आ रही हैं। कई जगह से ख़बरें आईं कि कोरोना के डर से लोगों ने आत्महत्या कर ली। दिल्ली में सर्दी-जुकाम के बाद एक युवक ने सिर्फ़ कोरोना के संदेह में ही हॉस्पिटल की बिल्डिंग से छलांग लगा दी थी। ऐसी स्थिति दुनिया भर में आई है। इसको लेकर उस चीन में व्यापक शोध भी हुआ जिसके वुहान शहर में कोरोना का पहला मामला आया था। 

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जब चीन में बड़े पैमाने पर कोरोना पॉजिटिव के मामले आने लगे थे और लोग खौफ में थे तब जैक मा फ़ाउंडेशन ने इस पर काम किया। चीन के बड़े क़ारोबारी रहे जैक मा के इस फ़ाउंडेशन ने कोरोना के मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों के नोट के आधार पर रिपोर्ट तैयार की। इसमें ख़ासतौर पर मनोवैज्ञानिक बदलावों को देखा गया। इसमें पाया गया कि हॉस्पिटल भर्ती होने वाले 48 फ़ीसदी मरीजों में मनोवैज्ञानिक तनाव के लक्षण दिखे। ये लक्षण इस वायरस के संक्रमण के बाद मरीज़ की भावनात्मक प्रतिक्रिया के बाद आए। 

अधिकतर मरीज़ों में दिखा था कि उन्हें पछतावा है और उनमें ग़ुस्सा है। उनमें अकेलापन, बेबसी, डिप्रेशन, अत्यधिक चिंता, फ़ोबिया यानी डर, चिड़चिड़ापन, नींद नहीं आना और पैनिक अटैक की भी समस्याएँ आईं।

कोरोना संकट के दौर में ऐसी ही मानसिक परेशानियों की आशंका को लेकर मानसिक स्वास्थ्य पर सेवा देने वाली कंपनी Mpower, महाराष्ट्र सरकार और बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के बीच एक साझेदारी हुई। इसने एक अप्रैल से हेल्पलाइन शुरू की। हालाँकि इसे महाराष्ट्र के लिए शुरू किया गया, लेकिन देश भर से लोगों ने संपर्क साधा। अधिकतर लोगों में भविष्य को लेकर डिप्रेशन और चिंता नज़र आई। 'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, Mpower के प्रवक्ता ने कहा कि संपर्क करने वालों में 18 से 85 वर्ष के लोग थे। लेकिन 26 की उम्र से लेकर 40 की उम्र तक के रेंज में 55 फ़ीसदी लोग शामिल थे। 

52 फ़ीसदी जो फ़ोन आए उनमें एंज़ाइटी की दिक्कत थी। 22 फ़ीसदी लोग आसोलेशन को लेकर परेशान थे, 11 फ़ीसदी लोग डिप्रेशन में, 5 फ़ीसदी लोगों को नींद आने की दिक्कतें थीं और 4 फ़ीसदी लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी उनकी पुरानी बीमारी के फिर से लौटने को लेकर चिंतित थे।

इसमें अलग-अलग तरह की समस्याओं को लेकर भी लोग फ़ोन कर रहे हैं। अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है, 'रत्नागिरि के गुहागर के एक 72 वर्षीय व्यक्ति ने कहा कि वह चाहते हैं कि मुंबई में एक पेइंग गेस्ट में रहने वाला उनका पोता वापस गाँव लौट आए।'

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पंजाब की एक 18 वर्षीय महिला ने फ़ोन कर कहा कि उन्हें लगता है कि परिवार में उनकी उपेक्षा हो रही है। इसके लिए वह ख़ुद को भी दोष दे रही थीं। लखनऊ की एक अन्य 18 वर्षीय महिला ने फ़ोन किया क्योंकि वह साँप व कीड़ों और अपने पिता की मृत्यु के बारे में पिछले दो महीनों से अजीब-अजीब सपने देख रही थीं।

एक दर्जी ने कहा कि वह भविष्य के बारे में चिंतित थे और उन्हें आत्महत्या करने जैसे विचार आ रहे थे। एक और फ़ोन करने वाला उदास महसूस कर रहा था क्योंकि वह अपने परिवार से दूर था और वह घर लौटने के लिए अनुमति पाने की हर कोशिश कर हार चुका था।

हेल्पलाइन में महिला कॉलर्स (31%) की तुलना में पुरुष कॉलर्स (69%) की संख्या अधिक है। यह हेल्पलाइन चौबीसों घंटे तीन शिफ़्ट में चलती है। लगभग 20% लोगों ने हेल्पलाइन को कॉल किया लेकिन काउंसलर से बात होने से पहले ही उन्होंने कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया। इससे पता चलता है कि लोग मानसिक स्वास्थ्य को एक कलंक के तौर पर भी लेते हैं।

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अमित कुमार सिंह
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