जैसी कि पहले से आशंका थी कोरोना वायरस और लॉकडाउन से लोगों की मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कतें बढ़ेंगी, अब इसके आँकड़े भी आने लगे हैं। एक हेल्पलाइन पर दो महीने में 45 हज़ार लोगों ने संपर्क किया है।
प्राथमिक भाव भय का था। फिर घृणा। और तब स्वाभाविक क्रम में हिंसा। यह कैसे हुआ जबकि घोषणा युद्ध की की गई थी प्रत्येक देशवासी को योद्धा की पदवी प्रदान की गई थी? तो योद्धा कौन था और वीरता को कहाँ देखा हमने?
मध्य प्रदेश के गुना ज़िले में लौटे मज़दूर परिवार को कोरोना के भय से गाँव में घुसने नहीं दिया गया। चिलचिलाती धूप में गाँव के बाहर बने स्कूल के शौचालय में पूरा परिवार ‘क्वॉरंटीन’ हुआ। शौचालय में ही इन्होंने भोजन पकाया और खाया।
किसी भी संकट की स्थिति में व्यक्ति-विशेष की विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ होती हैं। यदि संक्रामक महामारी की स्थिति हो तो उस समय व्यक्तियों में यह भय उत्पन्न हो जाता है कि कहीं उन्हें या उनके परिवार के सदस्यों में यह संक्रमण न हो जाए।
कोरोना का खौफ भी अजीब है। जहाँ दूर शहरों में फँसे अपनों को घर आने के बेसब्री से इंतज़ार में हैं वहीं 1600 किलोमीटर चलकर अपने घर पहुँचे एक युवक को उसकी माँ और भाई ने घर में घुसने नहीं दिया।