ऊपर की तस्वीर देखिए। देखने भर से ही सिहरन पैदा हो गई न! सफ़ाई कर्मी गंदगी में डूब जाते हैं। नीचे उतरते ही साँसें अटक जाती हैं। और कई बार तो जान ही चली जाती है। सीवर लाइन की सफ़ाई करते हुए सफ़ाई कर्मियों की मौत की ख़बरें लगातार आती रही हैं। ऐसी मौतों की गिनती तक के लिए अभी तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है। हालाँकि, जब तब कुछ आँकड़े ज़रूर बताए जाते हैं। इसका कारण ढूंढने या बचाव के उपाय के लिए नीति बनाने की तो बात ही दूर है। तो सवाल है कि इतना ख़तरनाक काम आख़िर करता कौन है? आख़िर ये लोग कौन हैं?
शहरी सीवर, सेप्टिक टैंक साफ़ करने वाले 92% कर्मी एससी, एसटी, ओबीसी
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- 30 Sep, 2024
सीवर और सैप्टिक टैंकों की सफ़ाई के दौरान सफ़ाई कर्मियों की मौत के मामले लगातार आते रहे हैं। आख़िर इतना ख़तरनाक काम करने वाले लोग कौन हैं? जानिए, आँकड़े क्या कहते हैं।

इस सवाल को अब ढूंढने की कोशिश की गई है। भारत के शहरों और कस्बों में सीवरों और सेप्टिक टैंकों की ख़तरनाक सफ़ाई में लगे लोगों की गणना करने के अपने तरह के पहले प्रयास में, 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 3,000 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों से जुटाए गए सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक प्रोफाइल किए गए 38,000 श्रमिकों में से 91.9% अनुसूचित जाति यानी एससी, अनुसूचित जनजाति यानी एसटी या अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी समुदायों से हैं। द हिंदू ने यह रिपोर्ट दी है। यदि इनको भी अलग-अलग करके देखा जाए तो श्रमिकों में से 68.9% अनुसूचित जाति, 14.7% अन्य पिछड़ा वर्ग, 8.3% अनुसूचित जनजाति तथा 8% सामान्य वर्ग से थे।