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कोरोना बाद न्यूरोलॉजिकल, मनोरोग का जोखिम: लांसेट अध्ययन

एक अध्ययन से पता चला है कि सांस से जुड़े दूसरे संक्रमणों की तुलना में कोरोना रोगियों को संक्रमण के दो साल बाद न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग संबंधी बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है। द लांसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित 12.5 लाख से अधिक रोगियों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड के एक अध्ययन में यह कहा गया है।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि वयस्कों में अवसाद और एंजाइटी का बढ़ता जोखिम दो महीने से भी कम समय तक रहता है और बाद में वह उस स्तर तक आ जाता है जिस पर सांस संबंधी दूसरे संक्रमण के बाद रहता है। जब से कोरोना महामारी शुरू हुई है, इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि कोविड से उबरे लोगों में न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग संबंधी ख़तरा बढ़ सकता है।

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इसी शोध समूह द्वारा किए गए एक पिछले अध्ययन में बताया गया था कि संक्रमण के बाद पहले छह महीनों में कोरोना से उबरे लोगों को कई न्यूरोलॉजिकल और मानसिक स्वास्थ्य का ख़तरा बढ़ जाता है।

हालाँकि, अब तक लंबी अवधि में इन इलाजों के जोखिमों की पड़ताल करने वाले बड़े पैमाने पर कोई डाटा नहीं हैं। मिंट की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में प्रोफेसर पॉल हैरिसन ने कहा, 'पिछले निष्कर्षों की पुष्टि करने के अलावा कि कोरोना संक्रमण के बाद पहले छह महीनों में कुछ न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग का जोखिम बढ़ सकता है, इस अध्ययन से पता चलता है कि इनमें से कुछ बढ़े हुए जोखिम कम से कम दो साल तक रह सकते हैं।'

रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन के प्रमुख लेखक हैरिसन ने कहा, 'परिणामों का रोगियों और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए काफी अहम प्रभाव पड़ता है। इससे पता चलता है कि कोरोना संक्रमण से जुड़ी न्यूरोलॉजिकल समस्या के नए मामले की महामारी थमने के बाद काफी समय तक रहने की संभावना है।'

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अध्ययन से यह समझने में भी मदद मिलती है कि यह कोरोना के बाद क्यों होता है, और इन स्थितियों को रोकने या इलाज के लिए क्या किया जा सकता है। अध्ययन में दो साल की अवधि में स्वास्थ्य पर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से जुटाए गए 14 न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया। इनमें से ज्यादातर रिकॉर्ड अमेरिका से लिए गए थे।

यूएस-आधारित TriNetX नेटवर्क में जिनके स्वास्थ्य रिकॉर्ड रखे गए थे उनमें से, 1,284,437 लोगों को 20 जनवरी, 2020 को या उसके बाद कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी। उन्हें अध्ययन में शामिल किया गया था। इनमें 185,748 बच्चे, 18 से 64 वर्ष के बीच के 856,588 वयस्क, और 65 से अधिक उम्र के 242,101 वयस्क शामिल थे।

अध्ययन में पाया गया कि वयस्कों में अवसाद या एंजाइटी का जोखिम शुरू में कोरोना संक्रमण के बाद बढ़ गया, लेकिन कुछ ही समय के बाद वह कम हो गया।

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क़मर वहीद नक़वी
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