जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद पर गोली चलाने के अभियुक्त नवीन दलाल को शिवसेना ने हरियाणा चुनाव में अपना उम्मीदवार बना कर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। नवीन दलाल की उपलब्धि क्या है, इसका ज़िक्र उसने अपने पर्चे में किया है। उस पर तीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। उस पर संसद के पास खुलेआम फ़ायरिंग का आरोप है। पार्टी ने उसमें जो ख़ूबियाँ देखीं, वे हैं- 'देशभक्ति' और गोरक्षा। अजीब बात यह है कि 'देशभक्ति दिखाने' और गोरक्षा के लिए दलाल पर आपराधिक केस दर्ज है। सवाल है कि शिवसेना के टिकट पर उम्मीदवारी के लिए क्या नवीन दलाल की यही योग्यता है? इस पर शिवसेना और नवीन दलाल के जवाब एक ही हैं।
चुनावी हलफनामे में नवीन दलाल ने लिखा है कि उसके ख़िलाफ़ चल रहे तीन आपराधिक मामलों में से दो केस वर्ष 2014 से जुड़े हैं। एक केस बहादुरगढ़ में आईपीसी की धारा 147/149 (दंगा करना) के तहत दर्ज है। दूसरा दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में कई धाराओं में केस दर्ज है जिसमें दलाल पर आरोप है कि वह गाय का कटा हुआ सर लेकर बीजेपी के हेडक्वार्टर में घुस गया था। तीसरा मामला पिछले साल उमर ख़ालिद पर हमला करने से जुड़ा है। आरोप है कि दलाल ने अपने एक साथी दरवेश शाहपुर के साथ मिलकर ख़ालिद पर हमला किया था।
दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने दलाल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। बता दें कि स्वतंत्रता दिवस से दो दिन पहले राजधानी के अति सुरक्षित संसद भवन से चंद क़दम की दूरी पर स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया के बाहर उमर ख़ालिद पर जानलेवा हमला हुआ था। हमलावर ने ख़ालिद को निशाना बनाकर गोली चलाई, लेकिन वह बाल-बाल बच गए थे। बाद में हमलावर हवा में गोली चलाते हुए मौक़े से भाग गया। भागते समय उसकी पिस्तौल गिर गई थी। यह हमला तब हुआ था जब कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में 'ख़ौफ़ से आज़ादी' नाम के कार्यक्रम में भाग लेकर उमर बाहर निकले थे और अपने कुछ साथियों के साथ चाय पी रहे थे। बाद में दोनों अभियुक्तों की गिरफ़्तारी तब हुई जब उन्होंने इस घटना का वीडियो जारी किया और दावा किया था कि देश के लिए यह स्वतंत्रता दिवस का गिफ़्ट है। दलाल फ़िलहाल जमानत पर है।
दलाल ने कथित तौर पर उमर पर इसलिए हमला किया था क्योंकि वह मानता था कि उमर ने देश विरोधी नारे लगाए थे। उमर खालिद तब चर्चा में आए थे जब उनपर देश विरोधी नारा लगाए जाने का आरोप लगा था। जेएनयू में डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) की तरफ़ से नौ फ़रवरी 2016 को अफ़जल गुरु की बरसी पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसी को लेकर आरोप लगाया गया था कि उमर ख़ालिद, अनिर्बाण भट्टाचार्य और कन्हैया कुमार ने कार्यक्रम में देश विरोधी नारे लगाए थे। हालाँकि तीन साल बाद भी यह आरोप साबित नहीं हुआ है। मामला अभी कोर्ट में चल रहा है।
वैचारिकता समान
इन सबके बावजूद शिवसेना के प्रत्याशी बनाए जाने पर 29 वर्षीय नवीन दलाल कहता है कि राष्ट्रवाद और गोरक्षा पर उसके और शिवसेना के विचार एक जैसे हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, शिवसेना के हरियाणा (दक्षिण) प्रमुख विक्रम यादव भी ऐसी ही बात दोहराते हैं। अख़बार के अनुसार, यादव ने कहा, 'वह राष्ट्र विरोधी नारा लगाने वालों के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं और गोरक्षा के लिए लड़ते रहे हैं। इसीलिए हमने उनका चुनाव किया है।'
लेकिन सवाल उठता है कि शिवसेना के नेता यादव उस घटना का ज़िक्र करते हुए उसे राष्ट्रवादी बता रहे हैं जिसमें दलाल ने जानलेवा हमला किया था। यादव, नवीन दलाला का यह कहते हुए बचाव करते हैं कि 'देशभक्ति दिखाने' का यह उसका तरीक़ा था। यादव ने कहा, 'उनके पास कोई व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है (खालिद के साथ)। वह परेशान थे कि इन लोगों ने राजधानी में एक विश्वविद्यालय में भारत विरोधी नारे लगाए थे। वह इस बात से भी नाराज़ थे कि उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए नवीन के नज़रिए से, यह उनकी देशभक्ति दिखाने का एक तरीक़ा था।' पार्टी की ओर से कहा गया कि क़रीब छह माह पहले ही दलाल पार्टी में शामिल हो गए थे।
विवादित लोगों को टिकट क्यों?
हाल के दिनों में देश में कई राजनीतिक दलों ने ऐसे लोगों को टिकट देना शुरू किया है, जिन्होंने राष्ट्रवाद के नाम पर विवादित बयान दिए हैं। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा, साक्षी महाराज, नलिन कतील, अनंतकुमार हेगड़े जैसे नाम प्रमुख हैं। साध्वी प्रज्ञा ने तो महात्मा गाँधी के हत्यारे गोडसे को देशभक्त तक कह दिया था और वह चुनाव भी जीत गईं। नलिन कतील ने भी गोडसे के पक्ष में बोला था। अनंतकुमार हेगड़े ने साध्वी प्रज्ञा की बात का समर्थन किया था। साक्षी महाराज भी गोडसे को देशभक्त बता चुके हैं। लेकिन अजीब बात यह है कि पार्टी ने कभी इन नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं की। हालाँकि, कार्रवाई करने की बात ज़रूर कहते रहे।शिव सेना ने जो आधार बताते हुए नवीन दलाल को टिकट दिया है, क्या वह नैतिकता के पैमाने पर सही है? जिस पर खुलेआम पिस्तौल से हत्या करने का आरोप लगा हो उसे टिकट देकर शिवसेना क्या साबित करना चाहती है?
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