हरियाणा सरकार ने मंगलवार देर रात डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को 20 दिन की पैरोल दे दी, जबकि चुनाव आयोग ने हरियाणा में उसके प्रवेश, सार्वजनिक भाषण देने या किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने पर प्रतिबंध सहित कड़ी शर्तें तय कीं।
अपनी दो शिष्याओं से रेप के मुजरिम रोहतक की सुनारिया जेल में 20 साल की सजा काट रहे सिंह को पैरोल हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले मतदान से चार दिन पहले मिली है।
एक अधिकारी के अनुसार, रोहतक मंडल के आयुक्त संजीव वर्मा ने पैरोल आवेदन को मंजूरी दे दी और कहा कि डेरा प्रमुख बुधवार सुबह सुनारिया जेल से बाहर आएगा। पैरोल अवधि के दौरान, वह यूपी के बागपत जिले के बरनावा में अपने डेरे पर रहेगा।
इससे पहले, जेल विभाग ने एमसीसी के मद्देनजर पैरोल याचिका हरियाणा के सीईओ पंकज अग्रवाल के कार्यालय को भेज दी थी। सीईओ ने सरकार से डेरा प्रमुख की पैरोल के लिए "आकस्मिक परिस्थितियों" का विवरण मांगा था। इससे पहले इस साल 13 अगस्त को, उसे 21 दिन की छुट्टी पर जेल से रिहा किया गया और वह उत्तर प्रदेश के बागपत में अपने डेरे पर रहा था।
चुनाव के कारण राज्य सरकार ने शनिवार को उसकी पैरोल फाइल सलाह के लिए सीईओ को भेज दी। इसके बाद सीईओ ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर चुनाव प्रक्रिया के दौरान दोषी को पैरोल पर रिहा करने के लिए आकस्मिक और बाध्यकारी परिस्थितियों को जानने की मांग की। सीईओ कार्यालय को सोमवार को राज्य सरकार ने सूचित किया। जिसमें राम रहीम की पैरोल याचिका के पीछे डेरा प्रमुख के पिता की बरसी, कुछ करीबी लोगों की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति और रक्तदान शिविर का उल्लेख किया गया है।
सरकारी प्रतिक्रिया की जांच करने के बाद, सीईओ ने कहा, “चूंकि चुनाव आचार संहिता लागू है, इसलिए यह (पैरोल याचिका) हमारे विचार जानने के लिए हमारे पास आई है… हमने राज्य सरकार को वापस लिखा है और कहा है कि वे पैरोल पर विचार कर सकते हैं। लेकिन पत्र (याचिका) में जो तथ्य बताये गये, उसकी सत्यता की जांच हो। इसके अलावा, अगर सरकार पैरोल देती है तो चुनाव के मद्देनजर अन्य शर्तों को भी पूरा किया जाना चाहिए।“
उन्होंने साफ किया कि सीईओ को केवल अपना विचार देना है जबकि पैरोल देने का निर्णय राज्य सरकार या जेल विभाग का है।
एक अधिकारी ने पहले कहा था कि आम तौर पर, "चुनाव प्रक्रिया की गरिमा बनाए रखने और समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद दोषियों को रिहा नहीं किया जाता है।" लेकिन राम रहीम के मामले में जो हुआ वो सामने है।
इस बीच, अंशुल छत्रपति ने कहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान डेरा प्रमुख को पैरोल देना "लोकतांत्रिक मूल्यों, निष्पक्ष चुनाव और निष्पक्ष मतदान के अधिकार का उल्लंघन" होगा। उन्होंने दावा किया कि जेल से बाहर आने के बाद राम रहीम ''किसी खास पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए अपने भक्तों को संदेश भेजकर मतदान को प्रभावित कर सकते हैं।'' अंशुल ने यह भी कहा, "सत्ता के भूखे राजनेता पिछले कई वर्षों से तथाकथित संत के आगे झुकते रहे हैं और डेरा प्रमुख ने खुद को बचाने के लिए राजनीतिक दलों का पूरा फायदा उठाया।" अंशुल के अनुसार, 2020 के बाद से, डेरा प्रमुख को पहले ही कई बार पैरोल या फर्लो दी जा चुकी है, जिससे उन्हें विशेष रूप से चुनावों से पहले 255 दिनों तक जेल से बाहर रहने की सुविधा मिली है।
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