हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की कथित ब्लैकमेलिंग के आगे झुकने से इनकार कर दिया। आप ने कांग्रेस से 10 सीटें मांगी थीं। कांग्रेस ने साफ मना कर दिया। इसके बाद आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कांग्रेस को तीन सीटों पर राजी करने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस दो से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी। आखिर में आप ने सोमवार शाम को हरियाणा में अपने प्रत्याशी 20 सीटों पर घोषित कर दिए। आप की घोषणा से कम से कम हरियाणा कांग्रेस के नेता खासे खुश नजर आए कि किसी तरह पीछा छूटा। लेकिन खुद आप ने अपने पिछले चुनावी प्रदर्शनों पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें उसे नोटा से कम वोट मिले और सारे प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आप को कुरुक्षेत्र सीट दी थी लेकिन प्रदेश अध्यक्ष सुशील गुप्ता चुनाव हार गए।
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में आप ने हरियाणा की 90 सीटों में से 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसके प्रत्याशियों को नोटा के पक्ष में पड़े वोटों से भी कम वोट मिले। केंद्रीय चुनाव आयोग के मुताबिक केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों को 1,000 से कम वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई।
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चुनाव आयोग के अनुसार, हरियाणा में AAP का वोट शेयर 0.48 प्रतिशत रहा, जबकि NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) को 0.53 प्रतिशत मिला। आप ने हरियाणा में जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन करारी हार के बाद उसने गठबंधन तोड़ दिया था। जेजेपी ने 10 सीटें जीती थीं और नतीजे आने के बाद वो भाजपा से मिल गई और राज्य में फिर से भाजपा सरकार आ गई। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव से भाजपा ने जेजेपी को जबरदस्त झटका दिया और गठबंधन से निकाल बाहर किया।
आप ने हरियाणा चुनाव 2019 के लिए अपने घोषणापत्र में ड्यूटी के दौरान मारे गए सशस्त्र बलों के जवानों के परिजनों को 1 करोड़ रुपये देने, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने और नशा मुक्त राज्य बनाने का वादा किया था। हरियाणा में केजरीवाल ने आप के लिए कोई रैली नहीं की।
केजरीवाल की हसरत
केजरीवाल की तमन्ना है कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी की सरकार बने, क्योंकि उनका जन्म भिवानी जिले में हुआ था। जब वो आयकर विभाग में लगे तो आयकर ट्रिब्यूनलों में भटकने वाले हरियाणा के छोटे-छोटे व्यापारियों की मदद कर या गाइड कर काफी मदद की। फिर वो आरटीआई (जनाने का अधिकार) की ओर मुड़े और इसी के साथ उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ती गई। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर यानी हरियाणा से करने के बारे में सोचा। हरियाणा के वैश्य समुदाय ने इसमें उनकी मदद की। केजरीवाल के साथ कई शहरों में उस शहर के वैश्य समुदाय और समान विचारधारा वाले लोगों को बैठकों में बुलाया गया। लेकिन इन बैठकों के टिकट बेचे जाते थे। सबसे महंगी टिकट पांच हजार रुपये की थी, जिसमें आगन्तुक केजरीवाल से हाथ मिला सकता था।
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केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस के कथित भ्रष्टाचार पर हमला करके की थी। उसी समय दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था। अन्ना हजारे कांग्रेस के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सामने आये, केजरीवाल और सिसोदिया ने अन्ना हजारे का साथ पकड़ लिया। तब तक पार्टी का अस्तित्व नहीं था। अन्ना हजारे के पीछे एक शख्स छाता लेकर दिल्ली में चलता था, वह मनीष सिसोदिया था। इतिहास को लंबा सफर तय नहीं करना पड़ा, वही केजरीवाल अब कांग्रेस की मदद से अपनी पार्टी को हरियाणा में खड़ा करना चाहते हैं। दिल्ली, पंजाब में कांग्रेस के सफाये के लिए आप ही जिम्मेदार है। लेकिन हरियाणा में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और बाकी कांग्रेस नेताओं ने केजरीवाल की दाल गलने नहीं दी। अब जिस तरह से आप ने सोमवार को 20 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं तो आरोप यह लग रहा है कि इससे भाजपा फायदा उठाना चाहेगी या भाजपा-कांग्रेस के असंतुष्टों को टिकट देकर आप सन्नाटे में सीटी बजा सकती है।
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