20 साल जेल की सजा काट रहे डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को अब पैरोल के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से इजाजत लेनी पड़ेगी। अदालत ने बलात्कार के दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बार-बार पैरोल दिए जाने पर सवाल उठाए हैं। बलात्कार के दोषी को जनवरी में 50 दिन की पैरोल दी गई थी, यह लगभग 10 महीने में उसकी सातवीं और पिछले चार वर्षों में नौवीं पैरोल थी।
उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को 10 मार्च को राम रहीम का आत्मसमर्पण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। उसी दिन उनकी पैरोल समाप्त होने वाली है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह अगली बार राम रहीम को पैरोल देने के लिए अदालत से अनुमति का अनुरोध करे।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को यह जानकारी देने का आदेश दिया है कि इस तरह से कितने लोगों को पैरोल दिया गया है। अदालत एसजीपीसी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
गुरमीत राम रहीम सिंह को जनवरी महीने में ही 50 दिन की पैरोल मिली है। उससे भी दो महीने पहले उनको 21 दिन की पैरोल मिली थी। पिछले 24 महीनों में राम रहीम सिंह की यह सातवीं और पिछले चार वर्षों में नौवीं पैरोल है।
फरवरी 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले डेरा प्रमुख को 21 दिन की पैरोल दी गई थी। फरलो को पंजाब एवं हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि छुट्टी का आदेश अनुचित और अवैध है।
राम रहीम को 2017 में दो शिष्याओं के साथ बलात्कार के आरोप में 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और बाद में 2002 में पत्रकार राम चंदर छत्रपति और डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्याओं सहित दो हत्या के मामलों में आजीवन कारावास की सजा मिली थी।
राम रहीम को 2021 में डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या की साजिश रचने का भी दोषी ठहराया गया था। डेरा प्रमुख और तीन अन्य को 16 साल से अधिक पहले एक पत्रकार की हत्या के लिए 2019 में दोषी ठहराया गया था।
हरियाणा अच्छे आचरण कैदी (अस्थायी रिहाई) अधिनियम, 2022 के अनुसार, दोषी कैदियों को नियमित पैरोल दी जा सकती है। हालाँकि, कई हत्याओं या गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए कैदी पैरोल के लिए पात्र नहीं हैं।
संगीन मामलों के दोषी तथा सख्त सजा काट रहे किसी शख्स को इतनी ज्यादा बार और इतनी कम अवधि में पैरोल पर रिहाई मिल रही है, जबकि आम आदमी को हफ्ते की पैरोल पर बाहर आने की कवायद में महीनों लग जाते हैं और पैरोल की अवधि भी बहुत सीमित होती है।
पैरोल के लिए अपने वकीलों के जरिए वजह बताना अपरिहार्य है और इसके लिए अनिवार्य तौर पर जेल अधीक्षक की संस्तुति चाहिए होती है और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर या कमिश्नर अपने तौर पर पैरोल पर फैसला लेते हैं। उसके लिए कुछ शर्तें रखी जाती हैं। पैरोल के नियम काफी सख्त हैं।
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