गीता कोड़ा
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पूर्णिमा दास
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जेजेपी विधायक बबली पार्टी आलाकमान से बहुत दिनों से नाराज चल रहे थे। इस लोकसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार तक नहीं किया। वो काफी दिनों से यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो अगला राजनीतिक फैसला क्या लें, क्योंकि उनके कुछ साथी विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस का दामन थाम लिया, जबकि वो भाजपा सरकार के समर्थन में थे। अपने मतदाताओं से यह बात पूछने के लिए कि वो किधर जाएं, बबली ने एक जनमत सर्वेंक्षण कराया।
जहां बबली, वहां हमः जेजेपी विधायक बबली ने कहा कि 73.5% लोगों ने "जहां बबली वहां हम" विकल्प को चुना, वहीं 17% समर्थकों ने कांग्रेस और 9% ने भाजपा को चुना है। कुल मतपत्रों में से उनके केवल .5% समर्थकों ने जेजेपी में रहने का विकल्प चुना है। यानी बबली के सर्वे में सबसे आखिरी पायदान पर जेजेपी है और उससे थोड़ा आगे भाजपा है। कांग्रेस और भाजपा के बीच में वोट प्रतिशत का अंतर 8 फीसदी है। अगर जेजेपी से तुलना की जाए तो यह अंतर 16.5 फीसदी का है।
बबली ने कुल वोट की संख्या नहीं बताई लेकिन यह कहा कि उनके दफ्तर में जो मतदान पेटियां रखी थीं, उनमें करीब तीन हजार लोगों ने वोट डाले थे। लेकिन इन नतीजों के बाद भी बबली का कहना है कि वे अपने करीबी लोगों से सलाह करेंगे और उसके बाद निर्णय लेंगे। निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा तो आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे। कम से कम अब जेजेपी में बने रहने और भाजपा का दामन थामने की संभावना नहीं के बराबर है।
बबली फंस गए चक्रव्यूह मेंः विधायक बबली की मुसीबत एक नहीं है। कई है। जैसे अगर वो कांग्रेस में जाते हैं तो वहां विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने की संभावना बहुत क्षीण है। क्योंकि टोहाना में कांग्रेस के अपने तमाम नेता दावेदार है। वैसे भी इस बेल्ट में चौधरी बीरेंद्र सिंह का दबदबा है जो वापस कांग्रेस में अपने बेटे ब्रिजेंद्र सिंह के साथ लौट आए हैं। भाजपा में उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला है जो राज्यसभा में जा चुके हैं। लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में बबली ने ही बराला को 52000 से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। बराला उन्हें भाजपा का टिकट हर्गिज नहीं पाने देंगे। जेजेपी में रहने का मतलब अपना अस्तित्व खत्म करना है, क्योंकि पूरी पार्टी बाप-बेटों (अजय चौटाला-दुष्यंत चौटाला-दिग्विजय चौटाला) की पार्टी बनकर रह गई है। बबली इसीलिए परेशान हैं कि करें तो करें क्या।
यह एक विधानसभा क्षेत्र या एक बेल्ट की बात नहीं है कि सिर्फ टोहाना के ग्रामीण या किसान सत्तारूढ़ भाजपा से नाराज हैं। हरियाणा-पंजाब के प्रतिष्ठित अखबार द ट्रिब्यून ने रोहतक के गांवों के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिससे पता चलता है कि गांवों में भाजपा विरोधी लहर इतनी जबरदस्त है कि वो भाजपा के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मुश्किलें पैदा कर सकती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक किसान आंदोलन का प्रभाव हरियाणा के किसानों में बरकरार है। रिपोर्ट बता रही है कि रोहतक बेल्ट में किसानों का एक बड़ा वर्ग भाजपा के 'असंवेदनशील' रवैये से नाराज है।
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