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चुनाव के बीच में ही हरियाणा विधानसभा को भंग क्यों करना पड़ा?

हरियाणा विधानसभा अब चुनाव के बीच ही भंग हो जाएगी। हरियाणा मंत्रिमंडल ने बुधवार को राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से राज्य विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की है। 13 सितंबर से ऐसा करने की सिफारिश की गई है।

विधानसभा भंग करने की यह सिफारिश ऐसे समय में की गई है, जब सैनी सरकार के सामने अब कोई चारा ही नहीं बचा था। ऐसी नौबत इसलिए आई कि हरियाणा सरकार ने खुद को बचाने के लिए विधानसभा का सत्र ही नहीं बुलाया। दरअसल, नियम यह है कि किसी भी हालत में विधानसभा को छह महीने के अंदर सत्र बुलाना ही होता है। यानी दो सत्रों के बीच अवधि छह महीने से ज़्यादा नहीं हो सकती है। 

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सदन की कार्यवाही के बिना छह महीने की अवधि 12 सितंबर को समाप्त होने वाली थी। संविधान के अनुच्छेद 174 के अनुसार, राज्यपाल को राज्य विधानमंडल के सदन या दोनों सदनों को अपनी इच्छानुसार बैठक के लिए बुलाना होता है, लेकिन अंतिम बैठक और अगले सत्र की पहली बैठक की तिथि के बीच छह महीने का अंतर नहीं होना चाहिए।

यही वजह है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सैनी सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर 14वीं विधानसभा को भंग करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब इस प्रस्ताव को राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह भंग हो जाएगी। नियमों के अनुसार होता यह है कि विधानसभा सचिवालय से अधिसूचना जारी होने के बाद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी नई सरकार बनने तक कार्यवाहक सीएम बने रहेंगे। 

क्यों आ गया था संवैधानिक संकट

नायब सिंह सैनी की सरकार ने 13 मार्च को आखिरी बार विधानसभा का सत्र बुलाया था। इसके बाद कई बार सत्र बुलाए जाने की बात कही गई, लेकिन सत्र बुलाया नहीं गया। 12 सितंबर तक सत्र बुलाया जाना था, लेकिन चुनाव होने के कारण अब सत्र नहीं बुलाया जा सकता।

तो सवाल है कि आख़िर यह सत्र क्यों नहीं बुलाया गया?

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विधानसभा सत्र बुलाए नहीं जाने के पीछे का एक बड़ा कारण सरकार के पास बहुमत नहीं होना था। पहले दस विधायकों वाली जजपा ने समर्थन वापस ले लिया था और बाद में तीन निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद कहा जा रहा था कि सरकार अल्पमत में आ गई थी। इसके बावजूद सरकार ने कई बार दावा किया कि उसके पास समर्थन पूरा है। वैसे, अल्पमत जैसी स्थिति के बावजूद विपक्ष ने बहुमत साबित करने की मांग भी नहीं की।

बहरहाल, विधानसभा का सत्र नहीं बुलाए जाने की वजह से सैनी सरकार संवैधानिक संकट में फंस गई थी। इस संकट से निपटने के लिए सरकार ने विधानसभा भंग का फ़ैसला किया है। वैसे, सरकार के पास इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं था। 

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क़मर वहीद नक़वी
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