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गुजरात के मोरबी में हुए हादसे को लेकर राज्य सरकार ने पहली कार्रवाई की है। इस मामले में मोरबी नगरपालिका के चीफ अफसर (सीओ) संदीप सिंह जाला को निलंबित कर दिया गया है। मोरबी के जिलाधिकारी जीटी पांड्या ने द इंडियन एक्सप्रेस को यह जानकारी दी है।
मोरबी जिले में रविवार शाम को हुए हादसे में अब तक कम से कम 140 लोगों की मौत हो चुकी है और 150 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। इसके कई वीडियो भी सामने आए हैं जिसमें लोगों को पुल के गिरने के बाद मदद के लिए चिल्लाते हुए देखा जा सकता है।
इस मामले की जांच स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी कर रही है। पुलिस ने इस मामले में नौ लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज किया था।
2 नवंबर को पुलिस ने इस मामले में संदीप सिंह जाला से पूछताछ की थी। जाला ने पुलिस को बताया था कि यह सस्पेंशन ब्रिज मोरबी नगरपालिका का था लेकिन इस साल की शुरुआत में इसकी मरम्मत के लिए इसे ओरेवा समूह को दे दिया गया था।
जाला ने ओरेवा समूह पर आरोप लगाया था कि इस समूह ने नगर पालिका को बिना बताए और बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के इस सस्पेंशन ब्रिज को खोल दिया। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यही निकल कर आया है कि बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के और बिना नगर पालिका की इजाजत के आखिर ओरेवा समूह ने इस पुल को आम लोगों के लिए कैसे खोल दिया?
सवाल यह भी है कि इतनी बड़ी संख्या में आखिर लोगों को इस सस्पेंशन ब्रिज पर किसने जाने दिया। सस्पेंशन ब्रिज को मरम्मत के बाद खोला गया था इसलिए सुरक्षा के इंतजामों को लेकर भी तमाम तरह के सवाल उठे थे।
पुलिस को अपनी जांच में पता चला है कि ओरेवा समूह ने पुल की मरम्मत के लिए जिन ठेकेदारों को रखा था वे तकनीकी रूप से योग्य नहीं थे।
इस मामले को लेकर गुजरात की बीजेपी सरकार पर तमाम विपक्षी दलों ने हमला बोल दिया था। सोशल मीडिया पर भी गुजरात की बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया और लोगों ने कहा कि यह कोई हादसा नहीं है बल्कि यह घटना लापरवाही के कारण हुई है और इस वजह से बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इस मामले में कुल 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार किए गए 9 में से 4 अभियुक्तों- दीपक पारेख, दिनेशभाई महासुखराय दवे, ठेकेदार प्रकाशभाई लालजीभाई परमार और देवांगभाई प्रकाशभाई परमार को 5 नवंबर तक की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया था।
इस मामले में मोरबी के डीएसपी पीए जाला ने स्थानीय अदालत को बताया सस्पेंशन ब्रिज की केबल में जंग लगी हुई थी और अगर इसकी केबल की मरम्मत कर दी गई होती तो यह हादसा नहीं हुआ होता।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने अदालत को बताया था कि किसी भी तरह के जीवन रक्षक उपकरण या लाइफगार्ड वगैरह भी नहीं लगाए गए थे जबकि पुल की मरम्मत के रूप में केवल प्लेटफार्म को बदला गया था।
जाला ने अदालत को बताया कि यह सस्पेंशन ब्रिज एक केबल पर टिका था और इसकी कोई ऑयलिंग या ग्रीसिंग नहीं की गई थी। उन्होंने अदालत को बताया कि इस बात का भी कोई लिखित दस्तावेज नहीं है कि पुल में क्या काम किया गया और यह कैसे किया गया।
ओरेवा कंपनी के मैनेजर्स में से एक दीपक पारेख ने एक स्थानीय अदालत से कहा था कि यह भगवान की इच्छा थी कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई।
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